संसार सागर में समय की सापेक्षता सबके साथ सन्निहित है। स्वयं में निरपेक्ष होते हुए भी वह शाश्वत सापेक्ष है। अगर हम यह मान लें कि वक्त ही जगत में हमें लाया है और कालांतर में वही लेकर जायेगा तो इस कबूतर की तरह हम भी दुनियाभर के झंझावातों से भयमुक्त हो जायेंगे। क्या स्थूल वस्तुओं के साथ हम निरपेक्ष रह सकते हैं। आइए निरपेक्षता के पाठ को पढ़ते हैं इस कबूतर के जोड़े से।
मनोहर का मस्तिष्क अनियन्त्रित हो गया है। सामान्य जन की भाषा में उसे हम पागल कह सकते हैं। मनोहर जीवन के उस तिराहे पर हैं जहाँ उनका अतीत अच्छा नहीं था लेकिन वर्तमान और भविष्य तो अन्धकार के सागर में गोते लगा रहा है। मानव जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का उनके लिए क्या महत्व है? इस पर विचार करते हुए सुनते हैं हमारी कविता " मनोहर "।
पेशेवर डॉक्टर सेवक है या व्यापारी? क्या सेवक को व्यापार करने का प्रयास नहीं करना चाहिए या व्यापारी को सेवा नहीं करनी चाहिए? जैसे अच्छे और बुरे विचार शरीर के अभिन्न अंग हैं वैसे ही जगत के बाजार में सेवा, व्यापार का अभिन्न अंग है। सेवा में कितना व्यापार होना चाहिए यह वाद-विवाद का विषय है। इस विवाद में न पड़ते हुए डाक्टर के कर्म को सुनते हैं हमारी कविता " चिकित्सक का धर्म " से।
अवसर मिलने पर उसका लाभ लेना मानवीय स्वभाव है। अवसर का लाभ लेना अगर हमारे लिये अच्छा है तो हमारे जन प्रतिनिधियों के लिये भी अच्छा होना चाहिए क्योंकि वे आखिरकार हमारा ही तो प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। चुनाव के पहले गठजोड़ का अवसर सभी दलों को मिला हुआ है। गठबन्धन के अवसर को राजनीतिक दल कैसे भुना रहे हैं? सुनिए हमारी कविता "अवसर" से।
जीवन के जीव से अलग होने के पहले शरीर किन-किन भौतिक, रासायनिक और मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं से होकर गुजरता है? काया की गति और गतिविधियों में क्रमिक ह्रास काल जनित है। तन की इस अवस्था में उसके शरीर में स्थित अंगतंत्र ही उसका साथ नहीं देते। इसी अवस्था की अनुभूति करयेगी हमारी कविता " काँपती काया " ।
एक बार फिर चुनाव का मौसम आने वाला है। सत्ता की चाहत रखने वाले नेतागण अपनी बाजीगरी दिखाने लगे हैं। उनके गठजोड़ पर गाँव के चौराहों पर
चर्चाओं का बाजार गरम है। आइए इस गर्मागर्म माहौल में अपना हाथ सेंकते हैं हमारी कविता "चौराहे पर राजनीतिक चर्चा" से।
एक समय था जब भाजपा को अयोध्या के श्रीराम मन्दिर आन्दोलन के कारण साम्प्रदायिक पार्टी कहा जाता था। लेकिन उसी समय जनता ने भाजपा सरकार चुनकर यह बता दिया कि जनभावना का सम्मान करने वाली पार्टी साम्प्रदायिक नहीं हो सकती। आज राम नाम की शक्ति का ही परिणाम है कि भारत देश का शासन राम नाम का जप करने वालों के हाथ में है। विपक्षियों के किसी नेता में उन्हें साम्प्रदायिक कहने का साहस नहीं है। राम राज्य का अर्थ यह कदापि नहीं है कि दूसरे धर्म के लोगों से भेदभाव हो। हमारे राम सबके हैं, इसी भावना को महसूस करते हैं हमारी कविता "राजनीति में राम" से।
राजनीति का अर्थ है सत्ता के लिए संघर्ष। येन केन प्रकारेण सत्ता मिलनी चाहिए। सत्ता मिल जाने के बाद तो कुर्सी बचाने के लिए संघर्ष होता है। राज्य की नीतियों का निष्पादन तो नौकरशाह करते हैं जो सैद्धांतिक रूप में राजनीति नहीं करते। व्यावहारिक रूप में राजनीति तो हम सभी कहीं न कहीं करते ही हैं। राजनीतिज्ञों के आपसी सम्बन्धों की व्यंगात्मक प्रस्तुति है हमारी नयी कविता " सत्ता का खेल "।
व्यक्ति का जीवन संघर्षों की कहानी है। इन्हीं संघर्षों में ही शारीरिक तथा मानसिक पीड़ा और आनंद सन्निहित है। शरीर की जीवन यात्रा में इन अनुभूतियों से प्राणिमात्र का चोली-दामन का साथ है। श्मशान मानव जीवन यात्रा का अन्तिम सत्य है। काया से किए हुए सारे कर्म और धर्म का बन्धन यहीं टूट जाता है। पीड़ा देने वाले आग के अंगारे यहाँ पीड़ा का अंत करते हुए प्रतीत होते हैं।
प्राणिमात्र का जीवन सरल और सहज है। हम मनोविकारों के प्रभाव में आकर ही इसे दुरूह और आडम्बरयुक्त बना देते हैं।वाह्य आडम्बरों के कारण ही समस्यायें आती हैं। ढोंग ही समाज में फैले समस्त कुत्सित मनोविकारों का मूल है। आइये इन्हीं विचारों पर कुठाराघात करते हैं हमारी कविता "तारिणी" से।
जिस प्रकार सबसे छोटी और सबसे बड़ी संख्या को बताया नहीं जा सकता उसी प्रकार सबसे प्राचीन और आधुनिक को हम नहीं बता सकते। प्रत्येक प्राचीन काल का अगला समय आधुनिक होता है और आज का आधुनिकीकरण कल प्राचीन हो जायेगा तथा भविष्य आज की तुलना में आधुनिक होगा। प्राचीन से अर्वाचीन के इन्हीं संदर्भों को ध्यान में रखते हुए मानव जीवन मूल्यों पर काल के प्रभाव को देखते हैं हमारी कविता " प्राचीन से अर्वाचीन " में।
योग जीवन जीने की कला है।यह शरीर, चित्तवृत्तियाँ, मनोविकार और मस्तिष्क के परिशोधन का संस्थान है। भारतीय सनातन परंपरा का यह संस्थान भारतीयता का धरोहर है। विश्व को उद्देश्यपूर्ण शांति से जीवन जीने की कला योगसूत्र ने ही दी है। योग के विभिन्न आयामों पर सुनते हैं हमारी कविता " योग "।
स्वस्थ शरीर में स्वच्छ मन का निवास होता है और हमारा स्वास्थ्य हमारे पर्यावरण पर निर्भर करता है। विकास की अन्धी दौड़ में हमने अपने परिवेश का न केवल दोहन किया है अपितु इसे प्रदूषित करके अपने ही पैर पर कुठाराघात कर लिया है। प्रदूषण की विभीषिका और समस्या के समाधान पर सुनते हैं हमारी कविता " पर्यावरण "।
आधुनिक शिक्षा का नया फलसफा है कि शिक्षक पेशेवर हों और अपने पेशे के लिए कुछ भी करें। पेशेवर व्यक्ति अपने कार्य में दक्ष तो होता है इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता लेकिन पेशा व्यापार का अनुगामी होता है, इसे भी स्वीकार करना पड़ेगा। शिक्षक होने के लिए पहली शर्त होनी चाहिए कि वह व्यापारी न हो क्योंकि पेशे में जैसे ही व्यापार हावी होता है पेशा नेपथ्य में चला जाता है और फिर व्यापार ही व्यापार रह जाता है। व्यवसाय में व्यापार होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। हम इसे नहीं रोक सकते। लेकिन शिक्षा के व्यावसायिकता पर रोक अवश्य लगायी जानी चाहिए। आज के सन्दर्भ में शिक्षा के व्यापारीकरण पर व्यंग्य सुनते हैं हमारी कविता
" व्यापारिक विद्यापीठ " से।
रंग का प्राणिमात्र के जीवन में अत्यधिक महत्व है। रंग से ही उनकी रंगत है और रंग से ही वे बेरंग हो जाते हैं। रंग शब्द को अनेक अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। हमारे रग रग में रंग की भूमिका को प्रकट करेगी हमारी कविता " रंग "।
हम भारत के लोग अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से देश का शासन करते हैं। हमारा प्रतिनिधि जब पार्टी प्रतिनिधि बन जाय तो हमारा क्या होगा?
आज हमारे नेता जी हमारी समस्याओं को सुलझाने के बजाय पार्टी की समस्याओं को सुलझाने में उलझे रहते हैं। हमारे हित में उनका हित उन्हें क्यों नहीं समझ आता? आइए समस्याओं के इसी भँवर जाल को सुनते हैं हमारी कविता " जन प्रतिनिधि " से।
क्या जगत में जीव का अस्तित्व जीवन से है या जीवन का जीव से अथवा दोनों की सम्भूति एक दूसरे के साहचर्य में ही निहित है? नर और नारी युगल से ही नवल सृजन होता है जिससे जीवन और जीव की निरंतरता जगत में अनन्तकाल से बनी हुई है और बनी रहेगी। पत्नी स्वयं में पूर्ण है पर पति के दिवंगत होने पर अपूर्णता का आभास करती है। मन के इसी भ्रम के साथ-साथ क्षण भंगुर संसार में जीव और जीवन की अनन्तता का दर्शन करायेगी हमारी कविता " जीवन और जीव "।
अक्सर शारीरिक संबंधों में प्रगाढ़ता को ही प्रेम समझ लिया जाता है। नवयुवक और युवतियाँ शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम समझने की भूल कर जाते हैं जिसका वीभत्स परिणाम काया के पैंतीस टुकड़ों के रूप में आता है। हमारे संस्कार, नैतिक मूल्य वास्तव में प्रेम और आकर्षण के अन्तर को बताते हैं और हमें मानवीय मूल्यों की ओर ले जाते हैं। व्यक्ति की विचारधारा भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्तिगत अहंनिष्ठ आकर्षण का दर्शन करायेगी हमारी कविता " देह के पैंतीस टुकड़े "।
परंपरा और आधुनिकता प्रत्येक समाज की पहचान है। समय के साथ हर किरदार में परिवर्तन हो रहा है। वर्तमान समय में ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे सदियों की परम्पराओं को छोड़कर भारतीय नारी, पुरुष से समानता के लिए तथाकथित देवी स्वरूप को छोड़कर सामान्य नारी ही बने रहना चाहती है। आधुनिक नारी यही चाहती है कि पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार प्राप्त हो।
आइये इसी समानता की आकांक्षा को सुनते है हमारी कविता "आधुनिक नारी" से।
सत्ता राजनीति के दलदल का कमल है। सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति सेवा के माध्यम से सत्ता तक पहुँचता है। विचारधारा और सिद्धांत राजनीतिज्ञ का दाहिना और बाँया हाथ हुआ करता था लेकिन वर्तमान समय में ऐसा प्रतीत होता है जैसे उसके दोनों हाथ कट चुके हैं। सेवा के नाम पर सत्ता के लिए दलबदल आम बात हो गई है। आइए सुनिये दलबदल पर हमारी कविता "दलबदलू "।