
अक्सर शारीरिक संबंधों में प्रगाढ़ता को ही प्रेम समझ लिया जाता है। नवयुवक और युवतियाँ शारीरिक आकर्षण को ही प्रेम समझने की भूल कर जाते हैं जिसका वीभत्स परिणाम काया के पैंतीस टुकड़ों के रूप में आता है। हमारे संस्कार, नैतिक मूल्य वास्तव में प्रेम और आकर्षण के अन्तर को बताते हैं और हमें मानवीय मूल्यों की ओर ले जाते हैं। व्यक्ति की विचारधारा भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। व्यक्तिगत अहंनिष्ठ आकर्षण का दर्शन करायेगी हमारी कविता " देह के पैंतीस टुकड़े "।