
स्वस्थ शरीर में स्वच्छ मन का निवास होता है और हमारा स्वास्थ्य हमारे पर्यावरण पर निर्भर करता है। विकास की अन्धी दौड़ में हमने अपने परिवेश का न केवल दोहन किया है अपितु इसे प्रदूषित करके अपने ही पैर पर कुठाराघात कर लिया है। प्रदूषण की विभीषिका और समस्या के समाधान पर सुनते हैं हमारी कविता " पर्यावरण "।