
आधुनिक शिक्षा का नया फलसफा है कि शिक्षक पेशेवर हों और अपने पेशे के लिए कुछ भी करें। पेशेवर व्यक्ति अपने कार्य में दक्ष तो होता है इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता लेकिन पेशा व्यापार का अनुगामी होता है, इसे भी स्वीकार करना पड़ेगा। शिक्षक होने के लिए पहली शर्त होनी चाहिए कि वह व्यापारी न हो क्योंकि पेशे में जैसे ही व्यापार हावी होता है पेशा नेपथ्य में चला जाता है और फिर व्यापार ही व्यापार रह जाता है। व्यवसाय में व्यापार होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। हम इसे नहीं रोक सकते। लेकिन शिक्षा के व्यावसायिकता पर रोक अवश्य लगायी जानी चाहिए। आज के सन्दर्भ में शिक्षा के व्यापारीकरण पर व्यंग्य सुनते हैं हमारी कविता
" व्यापारिक विद्यापीठ " से।