Home
Categories
EXPLORE
True Crime
Comedy
Business
Society & Culture
Health & Fitness
Sports
Technology
About Us
Contact Us
Copyright
© 2024 PodJoint
00:00 / 00:00
Podjoint Logo
US
Sign in

or

Don't have an account?
Sign up
Forgot password
https://is1-ssl.mzstatic.com/image/thumb/Podcasts113/v4/fa/33/a3/fa33a36a-aef3-24e6-776f-fdf90909170f/mza_3609065250551219792.jpg/600x600bb.jpg
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
Adiraj Edutainment
12 episodes
5 days ago
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन ________________________________________ तर तर्कु तोचि फारशु | नीतिभेदू अंकुशु | वेदान्तु तो महारसु | मोदकु मिरवे ||११|| एके हातीं दंतु | जो स्वभावता खंडितु | तो बौद्धमतसंकेतु | वार्तिकाचा ||१२|| मग सहजे सत्कारवादु | तो पद्यकर वरदु | धर्मप्रतिष्ठा तो सिद्धु | अभयहस्तु ||१३|| देखा विवेकवंतु सुविमळु | तोचि शुंडादंडु सरळु | जेथ परमानंद केवळु | महासुखाचा ||१४|| तरी संवादु तोचि दशनु | जो समता शुभ्रवर्णु | देव उन्मेषसूक्ष्मेक्षणु | विघ्नराजु ||१५|| ________________________________________
Show more...
Books
Arts
RSS
All content for श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare is the property of Adiraj Edutainment and is served directly from their servers with no modification, redirects, or rehosting. The podcast is not affiliated with or endorsed by Podjoint in any way.
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन ________________________________________ तर तर्कु तोचि फारशु | नीतिभेदू अंकुशु | वेदान्तु तो महारसु | मोदकु मिरवे ||११|| एके हातीं दंतु | जो स्वभावता खंडितु | तो बौद्धमतसंकेतु | वार्तिकाचा ||१२|| मग सहजे सत्कारवादु | तो पद्यकर वरदु | धर्मप्रतिष्ठा तो सिद्धु | अभयहस्तु ||१३|| देखा विवेकवंतु सुविमळु | तोचि शुंडादंडु सरळु | जेथ परमानंद केवळु | महासुखाचा ||१४|| तरी संवादु तोचि दशनु | जो समता शुभ्रवर्णु | देव उन्मेषसूक्ष्मेक्षणु | विघ्नराजु ||१५|| ________________________________________
Show more...
Books
Arts
Episodes (12/12)
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 56-60 | Ravi Vare

| श्री ज्ञानेश्वरी वाचन |

अध्याय 1

ओवी 56-60

जैसें शारदी - चिये चंद्रकळे | माजीं अमृतकण कोंवळे | ते वेंचिती मनें  मवाळें | चकोरतलगें ||५६||

 तियांपरी श्रोतां | अनुभवावी हे कथा |  अतिहळुवारपण चित्ता | आणूनियां ||५७||

 हे शब्देंविण संवादिजे | इंद्रियां  नेणता भोगिजे | बोलाआदि झोंबिजे | प्रमेयासी ||५८||

 जैसे भ्रमर परागु नेती |  परी कमळदळें नेणती | तैसी परी आहे सेवितीं | ग्रंथीं इये ||५९||

 का आपुला  ठावो न सांडितां | आलिंगिजे चंद्र प्रकटतां | हा अनुराग भोगितां | कुमुदिनी  जाणे ||६०||

Show more...
5 years ago
55 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 51-55| Ravi Vare

ना तरी शब्दब्रह्मब्धि | मथियला व्यसबुद्धि | निवडिलें निरवधि | नवनीत हें  ||५१||

मग ज्ञानाग्निसंपर्कें कडासिलें विवेकें | पद आले परिपाकें | आमोदासी  ||५२|| 

जें अपेक्षिजे विरक्तीं | सदा अनुभविजे संतीं | सोहंभावें पारंगतीं  | रमिजे जेथ ||५३||

 जें आकर्णिजे भक्तीं | जें आदिवंद्य त्रिजगतीं | तें  भीष्मपर्वीं संगती | सांगिजेल ||५४||

 जें भगवदीता म्हणिजे | जे  ब्रह्येशांनीं प्रशंजिसे | जे सनकादिकीं सेविजे | आदरेंसीं ||५५||

Show more...
5 years ago
55 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 46-50| Ravi Vare

.

Show more...
5 years ago
57 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 41-45| Ravi Vare

ना तरी नगरांतरीं वसिजे | तरी नगरचि होईजे | तैसें व्यासोक्तितेजें | धवळत  सकळ ||४१||

कीं प्रथम वयसाकाळीं | लावण्याची नव्हाळी | प्रकटे जैसी आगळी |  अंगना अंगीं ||४२||

 ना तरी उद्यानीं माधवी घडे | तेथ वनशोभेची खाणी उघडे |  आदिलापासोनि अपाडें | जियापरी ||४३||

 नाना घनीभूत सुवर्ण | जैसें  न्याहाळिंता साधारण | मग अळंकारीं बरवेपण । निवाडुदावी ।।४४।।

 तैसें  व्यासोक्ती अळंकारिलें   | आवडे ते बरवेपण पातलें | तें जाणोनि काय  आश्रयिलें | इतिहासीं ||४५||

Show more...
5 years ago
59 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 36-40| Ravi Vare

|| श्रीज्ञानेश्वरी ||   अध्याय : १

ओवी : ३६ - ४०

माधुर्यीं मधुरता | शृंगारीं सुरेखता | रूढपण उचितां | दिसलें भलें ||३६||

एथ कळाविदपन कळा | पुण्यासि प्रतापु आगळा | म्हणऊनि जनमेजयाचे  अवलीळा |  दोष हरले ||३७||

आणि पाहतां नावेक | रंगीं सुरंगतेची आगळिक | गुणां  सगुणपणाचें बिक | बहुवस एथ ||३८||

भानुचेनि तेजें धवळलें | जैसें  त्रेलोक्य  दिसे उजळिलें | तैसें व्यासमती कवळिलें | मिरवे विश्व ||३९||

कां सुक्षेत्रीं बीज घातलें | तें आपुलियापरी विस्तारलें | तैसें भारतीं  सुरवाडलें | अर्थजात ||४०||

#1minute_पाच_ओवी  #माउलींच्याचरणी

Show more...
5 years ago
56 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 31-35| Ravi Vare

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन

अध्याय : १  ओवी : ३१ - ३५

ना तरी सकळ धर्मांचें माहेर | सज्जनांचें जिव्हार | लावण्यरत्नभांडार | शारदेंचें ||३१||

नाना  कथारूपें भारती | प्रकटली असे त्रिजगतीं | आविष्करोनि महामती | व्यासाचिये  ||३२||

 म्हणोनि हा काव्यां रावो | ग्रंथ गुरुवतीचा ठावो | एथूनी रसां झाला  आवो | रसाळ - पणाचा ||३३||

तेवींचि आइका आणीक एक | एथूनी शब्धश्री सच्छास्त्रिक | आणि महाबोधीं कोंवळीक | दुणावली ||३४|

एथ चातुर्य शाहणें झालें | प्रमेय रुचीस आलें | आणि सौभाग्य पोखलें | सुखाचें एथ ||३५||

Show more...
5 years ago
56 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
|| श्रीज्ञानेश्वरी || अध्याय : १ ओवी : 26-30 |Ravi vare

|| श्रीज्ञानेश्वरी ||

अध्याय : १  ओवी : २६-३०

का तीर्थें जियें त्रिभुवनीं | तियें घडती समुद्रा ― वगहानीं | ना तरी  अमृतरसास्वादनीं | रस सकळ ||२६||

तैसा पुढतपुढती तोचि | मियां अभिवंदिला  श्रीगुरुचि | जो अभिलाषित मनोरुचि | पुरविता तो ||२७|| 

आतां अवधारा कथा गहन  | जे सकळां कौतुकां जन्मस्थान | कीं अभिनव उद्यान | विवेकतरूचें ||२८||

 ना  तरी सर्व सुखाची आदि | जे प्रमेयमहानिधि | नाना नवरस - सुधाब्धि |   परिपूर्ण हे ||२९||

 कीं परमधाम  प्रकट | सर्व विद्यांचें मूळ पीठ |  शास्त्रजातां वसौट | अशेषांचें ||30||

 ना तरी सकळ धर्मांचें माहेर |  सज्जनांचें जिव्हार | लावण्यरत्नभांडार | शारदेंचें ||३१||

Show more...
5 years ago
59 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
|| श्रीज्ञानेश्वरी || अध्याय : 1 ओवी : 21 - 25 | Ravi Vare

|| श्रीज्ञानेश्वरी ||

अध्याय : १    ओवी : २१ - २५

आतां अभिनव वाग्विलासिनी | जे चातुर्यार्थकलाकामिनी | ते श्रीशारदा  विश्वमोहिनी | नमिली मियां ||२१||

 मज हृदयीं सद्गुरु | जेणें तारिलों हा  संसारपूरु | म्हणऊनी विशेषें अत्यादरु | विवेकावरी ||२२||

 जैसें डोळ्यां  अंजन भेटे | ते वेळीं दृष्टीसी फांटा फुटे | मग वास पाहिजे तेथ प्रगटे |  महानिधी ||२३||

 कां चिंतामणि आलिया हातीं | सदा विजयवृत्ति मनोरथीं | तैसा  मी पूर्णकाम श्रीनिवृत्ति | ज्ञानदेवो म्हणे ||२४||

 म्हणोनि जाणतेनें गुरु  भजिजे | तेणें कृतकार्य होईजे | जैसें मूळसिंचनें  सहजें | शाखापल्लव  संतोषती ||२५||

Show more...
5 years ago
58 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
|| श्रीज्ञानेश्वरी || अध्याय : 1 ओवी : 16-20 | Ravi Vare

|| श्रीज्ञानेश्वरी ||     अध्याय : १   ओवी : १६-२०

मज अवगमलिया दोनी | मीमांसा श्रवणस्थानीं | बोधमदामृत मुनी | अली सेविती  ||१६||

 प्रमेयप्रवालसुप्रभ | द्वैताद्वैत तेंचि निकुंभ | सरिसेपणें एकवटती  इभ | मस्तकावरी ||१७||

 उपरि दशोपनिषदें | जियें उदारें ज्ञानमकरंदें |  तियें कुसुमें मुगुटीं सुगंधें | शोभती भाळीं  ||१८|| 

अकार चरणयुगुल | उकार  उदर विशाल | मकार महामंडल | मस्तकाकारें ||१९||

 हे तिन्ही एकवटले | तेथ  शब्दब्रम्ह कवळलें | ते मियां श्रीगुरुकृपा नमिलें | आदिबीज ||२०||


Show more...
5 years ago
54 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 11-15| Ravi Vare

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन

Show more...
5 years ago
52 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 6-10| Ravi Vare

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन

___________________________________________________

पदबंध नागर || तेंची रंगाथिले अंबर | जेथ साहित्य वाणें सपूर | उजाळाचे  ||६||

 देखा काव्य  नाटका | जे निर्धारितां सकौतुका | त्याचि रुणझुणती  शुद्रघंटिका | अर्थध्वनि ||७||

 नाना प्रेमयांची परी | निपुणपणे पाहता कुसरी  | दिसती उचित पदे माझारी | रत्ने भली ||८||

 जेथ व्यासदिकांची मती | तेंचि  मेखळा मिरवती | चोखाळपणे झळकती | पल्लवसडका ||९||

 देखा षडदर्शने म्हणिपती |  तेंचि भुजांची आकृती | म्हणऊनी विसंवादे धरिती | आयुधे हाती ||१०||

____________________________________________________

Show more...
5 years ago
57 seconds

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन

Show more...
5 years ago
1 minute

श्री ज्ञानेश्वरी वाचन | अध्याय 1 | ओवी 1-5| Ravi Vare
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन ________________________________________ तर तर्कु तोचि फारशु | नीतिभेदू अंकुशु | वेदान्तु तो महारसु | मोदकु मिरवे ||११|| एके हातीं दंतु | जो स्वभावता खंडितु | तो बौद्धमतसंकेतु | वार्तिकाचा ||१२|| मग सहजे सत्कारवादु | तो पद्यकर वरदु | धर्मप्रतिष्ठा तो सिद्धु | अभयहस्तु ||१३|| देखा विवेकवंतु सुविमळु | तोचि शुंडादंडु सरळु | जेथ परमानंद केवळु | महासुखाचा ||१४|| तरी संवादु तोचि दशनु | जो समता शुभ्रवर्णु | देव उन्मेषसूक्ष्मेक्षणु | विघ्नराजु ||१५|| ________________________________________