| श्री ज्ञानेश्वरी वाचन |
अध्याय 1
ओवी 56-60
जैसें शारदी - चिये चंद्रकळे | माजीं अमृतकण कोंवळे | ते वेंचिती मनें मवाळें | चकोरतलगें ||५६||
तियांपरी श्रोतां | अनुभवावी हे कथा | अतिहळुवारपण चित्ता | आणूनियां ||५७||
हे शब्देंविण संवादिजे | इंद्रियां नेणता भोगिजे | बोलाआदि झोंबिजे | प्रमेयासी ||५८||
जैसे भ्रमर परागु नेती | परी कमळदळें नेणती | तैसी परी आहे सेवितीं | ग्रंथीं इये ||५९||
का आपुला ठावो न सांडितां | आलिंगिजे चंद्र प्रकटतां | हा अनुराग भोगितां | कुमुदिनी जाणे ||६०||
ना तरी शब्दब्रह्मब्धि | मथियला व्यसबुद्धि | निवडिलें निरवधि | नवनीत हें ||५१||
मग ज्ञानाग्निसंपर्कें कडासिलें विवेकें | पद आले परिपाकें | आमोदासी ||५२||
जें अपेक्षिजे विरक्तीं | सदा अनुभविजे संतीं | सोहंभावें पारंगतीं | रमिजे जेथ ||५३||
जें आकर्णिजे भक्तीं | जें आदिवंद्य त्रिजगतीं | तें भीष्मपर्वीं संगती | सांगिजेल ||५४||
जें भगवदीता म्हणिजे | जे ब्रह्येशांनीं प्रशंजिसे | जे सनकादिकीं सेविजे | आदरेंसीं ||५५||
ना तरी नगरांतरीं वसिजे | तरी नगरचि होईजे | तैसें व्यासोक्तितेजें | धवळत सकळ ||४१||
कीं प्रथम वयसाकाळीं | लावण्याची नव्हाळी | प्रकटे जैसी आगळी | अंगना अंगीं ||४२||
ना तरी उद्यानीं माधवी घडे | तेथ वनशोभेची खाणी उघडे | आदिलापासोनि अपाडें | जियापरी ||४३||
नाना घनीभूत सुवर्ण | जैसें न्याहाळिंता साधारण | मग अळंकारीं बरवेपण । निवाडुदावी ।।४४।।
तैसें व्यासोक्ती अळंकारिलें | आवडे ते बरवेपण पातलें | तें जाणोनि काय आश्रयिलें | इतिहासीं ||४५||
|| श्रीज्ञानेश्वरी || अध्याय : १
ओवी : ३६ - ४०
माधुर्यीं मधुरता | शृंगारीं सुरेखता | रूढपण उचितां | दिसलें भलें ||३६||
एथ कळाविदपन कळा | पुण्यासि प्रतापु आगळा | म्हणऊनि जनमेजयाचे अवलीळा | दोष हरले ||३७||
आणि पाहतां नावेक | रंगीं सुरंगतेची आगळिक | गुणां सगुणपणाचें बिक | बहुवस एथ ||३८||
भानुचेनि तेजें धवळलें | जैसें त्रेलोक्य दिसे उजळिलें | तैसें व्यासमती कवळिलें | मिरवे विश्व ||३९||
कां सुक्षेत्रीं बीज घातलें | तें आपुलियापरी विस्तारलें | तैसें भारतीं सुरवाडलें | अर्थजात ||४०||
#1minute_पाच_ओवी #माउलींच्याचरणी
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन
अध्याय : १ ओवी : ३१ - ३५
ना तरी सकळ धर्मांचें माहेर | सज्जनांचें जिव्हार | लावण्यरत्नभांडार | शारदेंचें ||३१||
नाना कथारूपें भारती | प्रकटली असे त्रिजगतीं | आविष्करोनि महामती | व्यासाचिये ||३२||
म्हणोनि हा काव्यां रावो | ग्रंथ गुरुवतीचा ठावो | एथूनी रसां झाला आवो | रसाळ - पणाचा ||३३||
तेवींचि आइका आणीक एक | एथूनी शब्धश्री सच्छास्त्रिक | आणि महाबोधीं कोंवळीक | दुणावली ||३४|
एथ चातुर्य शाहणें झालें | प्रमेय रुचीस आलें | आणि सौभाग्य पोखलें | सुखाचें एथ ||३५||
|| श्रीज्ञानेश्वरी ||
अध्याय : १ ओवी : २६-३०
का तीर्थें जियें त्रिभुवनीं | तियें घडती समुद्रा ― वगहानीं | ना तरी अमृतरसास्वादनीं | रस सकळ ||२६||
तैसा पुढतपुढती तोचि | मियां अभिवंदिला श्रीगुरुचि | जो अभिलाषित मनोरुचि | पुरविता तो ||२७||
आतां अवधारा कथा गहन | जे सकळां कौतुकां जन्मस्थान | कीं अभिनव उद्यान | विवेकतरूचें ||२८||
ना तरी सर्व सुखाची आदि | जे प्रमेयमहानिधि | नाना नवरस - सुधाब्धि | परिपूर्ण हे ||२९||
कीं परमधाम प्रकट | सर्व विद्यांचें मूळ पीठ | शास्त्रजातां वसौट | अशेषांचें ||30||
ना तरी सकळ धर्मांचें माहेर | सज्जनांचें जिव्हार | लावण्यरत्नभांडार | शारदेंचें ||३१||
|| श्रीज्ञानेश्वरी ||
अध्याय : १ ओवी : २१ - २५
आतां अभिनव वाग्विलासिनी | जे चातुर्यार्थकलाकामिनी | ते श्रीशारदा विश्वमोहिनी | नमिली मियां ||२१||
मज हृदयीं सद्गुरु | जेणें तारिलों हा संसारपूरु | म्हणऊनी विशेषें अत्यादरु | विवेकावरी ||२२||
जैसें डोळ्यां अंजन भेटे | ते वेळीं दृष्टीसी फांटा फुटे | मग वास पाहिजे तेथ प्रगटे | महानिधी ||२३||
कां चिंतामणि आलिया हातीं | सदा विजयवृत्ति मनोरथीं | तैसा मी पूर्णकाम श्रीनिवृत्ति | ज्ञानदेवो म्हणे ||२४||
म्हणोनि जाणतेनें गुरु भजिजे | तेणें कृतकार्य होईजे | जैसें मूळसिंचनें सहजें | शाखापल्लव संतोषती ||२५||
|| श्रीज्ञानेश्वरी || अध्याय : १ ओवी : १६-२०
मज अवगमलिया दोनी | मीमांसा श्रवणस्थानीं | बोधमदामृत मुनी | अली सेविती ||१६||
प्रमेयप्रवालसुप्रभ | द्वैताद्वैत तेंचि निकुंभ | सरिसेपणें एकवटती इभ | मस्तकावरी ||१७||
उपरि दशोपनिषदें | जियें उदारें ज्ञानमकरंदें | तियें कुसुमें मुगुटीं सुगंधें | शोभती भाळीं ||१८||
अकार चरणयुगुल | उकार उदर विशाल | मकार महामंडल | मस्तकाकारें ||१९||
हे तिन्ही एकवटले | तेथ शब्दब्रम्ह कवळलें | ते मियां श्रीगुरुकृपा नमिलें | आदिबीज ||२०||
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन
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पदबंध नागर || तेंची रंगाथिले अंबर | जेथ साहित्य वाणें सपूर | उजाळाचे ||६||
देखा काव्य  नाटका | जे निर्धारितां सकौतुका | त्याचि रुणझुणती शुद्रघंटिका | अर्थध्वनि ||७||
नाना प्रेमयांची परी | निपुणपणे पाहता कुसरी | दिसती उचित पदे माझारी | रत्ने भली ||८||
जेथ व्यासदिकांची मती | तेंचि मेखळा मिरवती | चोखाळपणे झळकती | पल्लवसडका ||९||
देखा षडदर्शने म्हणिपती | तेंचि भुजांची आकृती | म्हणऊनी विसंवादे धरिती | आयुधे हाती ||१०||
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