
| श्री ज्ञानेश्वरी वाचन |
अध्याय 1
ओवी 56-60
जैसें शारदी - चिये चंद्रकळे | माजीं अमृतकण कोंवळे | ते वेंचिती मनें मवाळें | चकोरतलगें ||५६||
तियांपरी श्रोतां | अनुभवावी हे कथा | अतिहळुवारपण चित्ता | आणूनियां ||५७||
हे शब्देंविण संवादिजे | इंद्रियां नेणता भोगिजे | बोलाआदि झोंबिजे | प्रमेयासी ||५८||
जैसे भ्रमर परागु नेती | परी कमळदळें नेणती | तैसी परी आहे सेवितीं | ग्रंथीं इये ||५९||
का आपुला ठावो न सांडितां | आलिंगिजे चंद्र प्रकटतां | हा अनुराग भोगितां | कुमुदिनी जाणे ||६०||