
|| श्रीज्ञानेश्वरी || अध्याय : १ ओवी : १६-२०
मज अवगमलिया दोनी | मीमांसा श्रवणस्थानीं | बोधमदामृत मुनी | अली सेविती ||१६||
प्रमेयप्रवालसुप्रभ | द्वैताद्वैत तेंचि निकुंभ | सरिसेपणें एकवटती इभ | मस्तकावरी ||१७||
उपरि दशोपनिषदें | जियें उदारें ज्ञानमकरंदें | तियें कुसुमें मुगुटीं सुगंधें | शोभती भाळीं ||१८||
अकार चरणयुगुल | उकार उदर विशाल | मकार महामंडल | मस्तकाकारें ||१९||
हे तिन्ही एकवटले | तेथ शब्दब्रम्ह कवळलें | ते मियां श्रीगुरुकृपा नमिलें | आदिबीज ||२०||