
|| श्रीज्ञानेश्वरी ||
अध्याय : १ ओवी : २१ - २५
आतां अभिनव वाग्विलासिनी | जे चातुर्यार्थकलाकामिनी | ते श्रीशारदा विश्वमोहिनी | नमिली मियां ||२१||
मज हृदयीं सद्गुरु | जेणें तारिलों हा संसारपूरु | म्हणऊनी विशेषें अत्यादरु | विवेकावरी ||२२||
जैसें डोळ्यां अंजन भेटे | ते वेळीं दृष्टीसी फांटा फुटे | मग वास पाहिजे तेथ प्रगटे | महानिधी ||२३||
कां चिंतामणि आलिया हातीं | सदा विजयवृत्ति मनोरथीं | तैसा मी पूर्णकाम श्रीनिवृत्ति | ज्ञानदेवो म्हणे ||२४||
म्हणोनि जाणतेनें गुरु भजिजे | तेणें कृतकार्य होईजे | जैसें मूळसिंचनें सहजें | शाखापल्लव संतोषती ||२५||