
ना तरी शब्दब्रह्मब्धि | मथियला व्यसबुद्धि | निवडिलें निरवधि | नवनीत हें ||५१||
मग ज्ञानाग्निसंपर्कें कडासिलें विवेकें | पद आले परिपाकें | आमोदासी ||५२||
जें अपेक्षिजे विरक्तीं | सदा अनुभविजे संतीं | सोहंभावें पारंगतीं | रमिजे जेथ ||५३||
जें आकर्णिजे भक्तीं | जें आदिवंद्य त्रिजगतीं | तें भीष्मपर्वीं संगती | सांगिजेल ||५४||
जें भगवदीता म्हणिजे | जे ब्रह्येशांनीं प्रशंजिसे | जे सनकादिकीं सेविजे | आदरेंसीं ||५५||