
श्री ज्ञानेश्वरी वाचन
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पदबंध नागर || तेंची रंगाथिले अंबर | जेथ साहित्य वाणें सपूर | उजाळाचे ||६||
देखा काव्य नाटका | जे निर्धारितां सकौतुका | त्याचि रुणझुणती शुद्रघंटिका | अर्थध्वनि ||७||
नाना प्रेमयांची परी | निपुणपणे पाहता कुसरी | दिसती उचित पदे माझारी | रत्ने भली ||८||
जेथ व्यासदिकांची मती | तेंचि मेखळा मिरवती | चोखाळपणे झळकती | पल्लवसडका ||९||
देखा षडदर्शने म्हणिपती | तेंचि भुजांची आकृती | म्हणऊनी विसंवादे धरिती | आयुधे हाती ||१०||
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