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सत्संग माधुरी
Niraj Kumar 'Pathak'
7 episodes
5 days ago
यह सत्संग माधुरी श्रृंखला, कई दोहो क संग्रह है। इन दोहों को मैंने स्वयं के अनुभव, गुरूजनों के उपदेश तथा शास्त्र के आधार पर संकलित किया है। इसमें अध्यात्मक के विषयों को दोहों के माध्यम से आसान बनाकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके लिखने तथा वाचन का प्रमुख उद्येश्य स्वयं का आध्यात्मिक उत्थान, जन-कल्याण और ईश्वर सेवा की भावना निहित है। आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आएगा।
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यह सत्संग माधुरी श्रृंखला, कई दोहो क संग्रह है। इन दोहों को मैंने स्वयं के अनुभव, गुरूजनों के उपदेश तथा शास्त्र के आधार पर संकलित किया है। इसमें अध्यात्मक के विषयों को दोहों के माध्यम से आसान बनाकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके लिखने तथा वाचन का प्रमुख उद्येश्य स्वयं का आध्यात्मिक उत्थान, जन-कल्याण और ईश्वर सेवा की भावना निहित है। आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आएगा।
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Episodes (7/7)
सत्संग माधुरी
दोहा 07:- मण, माणिक, मुक्ता उपजे, सर्प, पर्वत, गज माथ। शोभा ग्रंथन तब कहें, जब सुने-सुनायें मिल साथ।।

ग्रंथों का अपने जीवन में किस प्रकार उपयोग किया जाए, वह इस दोहे के माध्यम से प्रस्तुत है। 

Written & Recited by © Copyright नीरज कुमार 'पाठक'

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6 years ago
1 minute 41 seconds

सत्संग माधुरी
दोहा 06:- दूसरों में दोष देखना, हो जाता है पाप। स्वयं मन मैला करें, दूजों में रहे डाल।।

इस दोहे के माध्यम से यह ज्ञात होता है कि हमें दूसरों के दोषों को देखने एवं सुनने से बचना चाहिए और दूसरों के दोषों के देखने से पहले अपने दोषों को देखना चाहिए। जिससे कि स्वयं का आत्मिक विकास संभव हो सके।

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6 years ago
3 minutes 17 seconds

सत्संग माधुरी
दोहा 05:- भव-सागर अमृत-विष निकले, दोनो का है मान। संत पुरूष अमृत जैसे, दुष्ट दारूण विष समान।।

इस दोहे में दुष्टों और सज्जनों की तुलना की गई है और बताया गया कि किस प्रकार सज्जन व्यक्ति हमारे जीवन विकास में सहायक होते हैं।

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6 years ago
2 minutes 56 seconds

सत्संग माधुरी
दोहा 04: अगर न जा पाओ, काशी, मथुरा, अगर न कर पाओ गंग-स्नान। संत-प्रयाग सर्व-सुलभ है, डुबकी मार, हो कल्याण।

आइए जानते है कि गंगा स्नान या तीर्थ भ्रमण करने से कैसे लाभ हो सकता है।

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6 years ago
2 minutes 53 seconds

सत्संग माधुरी
दोहा 03: पारसपर्श लौह कुन्दन बनें, शोभा तन निखार। दुर्जन सत्संग सज्जन बनें, सेवा समाज सुधार।।

इस दोहे के माध्यम से समाज में फैले बुराईयों पर प्रकाश डालेगें सा‍थ ही इसके कारण एवं निवारण पर चर्चा करेगें, कैसे इस समाज का कल्याण संभव है?

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6 years ago
4 minutes 15 seconds

सत्संग माधुरी
दोहा 02:- व्यास, वाल्मिीकि, तुलसी सम, सागर सेतु बनाए । सहज, सुलभ भव पार कर सकें हम, बिना श्रम लगाए।।

इस दोहे के माध्यम से हम संतों  एवं सज्जनों की महत्व को जानेगें और जानेगें कि वो क्यों और कैसे हमारी मदद करते है?

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6 years ago
4 minutes 56 seconds

सत्संग माधुरी
दोहा 01:- सेवा करनी हर-हाल में, माया कि या राम। माया सेवा नरक मिलें, राम सेवा निज धाम।।

इस संसार में सेवा, प्रत्येक प्राणी का नैसर्गिक धर्म है। हम सब जाने-अनजाने कहीं न कहीं, सेवा में लगे हुए है। चाहे हम सेवा प्रेम से करें या द्वेष से, सेवा तो हमें करनी ही होगी, न चाहते हुए भी। अगर हमें सेवा करनी ही है तो क्यों उसे ईश्वर के निमित्त की जाए। इस दोहे के माध्यम से यह जानने की कोशिश करते हैं।


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6 years ago
4 minutes 28 seconds

सत्संग माधुरी
यह सत्संग माधुरी श्रृंखला, कई दोहो क संग्रह है। इन दोहों को मैंने स्वयं के अनुभव, गुरूजनों के उपदेश तथा शास्त्र के आधार पर संकलित किया है। इसमें अध्यात्मक के विषयों को दोहों के माध्यम से आसान बनाकर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके लिखने तथा वाचन का प्रमुख उद्येश्य स्वयं का आध्यात्मिक उत्थान, जन-कल्याण और ईश्वर सेवा की भावना निहित है। आशा है आपको मेरा यह प्रयास पसंद आएगा।