
इस संसार में सेवा, प्रत्येक प्राणी का नैसर्गिक धर्म है। हम सब जाने-अनजाने कहीं न कहीं, सेवा में लगे हुए है। चाहे हम सेवा प्रेम से करें या द्वेष से, सेवा तो हमें करनी ही होगी, न चाहते हुए भी। अगर हमें सेवा करनी ही है तो क्यों उसे ईश्वर के निमित्त की जाए। इस दोहे के माध्यम से यह जानने की कोशिश करते हैं।