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BHAGWAT GITA
Janvi Kapdi
7 episodes
4 days ago
महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।आज से (सन 2022) लगभग 5560 वर्ष पहले गीता जी का ज्ञान बोला गया था|
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महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।आज से (सन 2022) लगभग 5560 वर्ष पहले गीता जी का ज्ञान बोला गया था|
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Episodes (7/7)
BHAGWAT GITA
आत्म संयम योग

अध्याय 5 – आत्मसंयम योग (कर्म संन्यास और योग)1. संन्यास और कर्मयोग में अंतर

  • अर्जुन पूछते हैं: “हे कृष्ण! कर्म त्याग (संन्यास) श्रेष्ठ है या कर्मयोग (कर्म करते हुए योग)?”

  • कृष्ण बताते हैं:

    • संन्यास: दुनिया के कर्मों से मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग।

    • कर्मयोग: दुनिया में रहते हुए, अपने कर्तव्य को बिना आसक्ति किए निभाने का मार्ग।

  • निष्काम कर्मयोग संन्यास से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें मन और इन्द्रियाँ सक्रिय रहते हुए भी स्थिर रहती हैं।

  • योगी वही है जो इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण रखता है।

  • इच्छाओं और लालसा से मुक्त रहकर जो कर्म करता है, वह सच्चा योगी है।

  • संयमित मन और आत्मा की स्थिरता से जीवन में शांति और आनंद आता है।

  • सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समभाव रखना आवश्यक है।

  • फल की चिंता छोड़कर कर्म करना ही आत्मसंयम है।

  • ऐसा व्यक्ति संसार में रहते हुए भी मोक्ष के समान स्थिति में होता है।

  • आत्मसंयम योगी के लिए ज्ञान और भक्ति दोनों आवश्यक हैं।

  • ज्ञान से मन स्थिर होता है और भक्ति से कर्म पवित्र बनता है।

  • यह योग जीवन में संतुलन, स्थिरता और मोक्ष का मार्ग दिखाता है।

  • कर्मयोग और संन्यास में सत्य आत्मसंयम सर्वोच्च है।

  • इच्छाओं और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखकर निष्काम भाव से कर्म करना ही योग है।

  • आत्मसंयम योगी दुनिया में रहते हुए भी मुक्त और शांत रहता है।

आत्मसंयम योग हमें सिखाता है कि मन, इन्द्रियों और कर्म पर नियंत्रण ही सच्चा योग है। जब हम फल की चिंता छोड़े और अपने कर्तव्य को संयम और भक्ति भाव से निभाएँ, तभी हम जीवन में स्थिरता, शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

2. आत्मसंयम और मन का नियंत्रण3. समभाव और निष्काम कर्म4. ज्ञान और भक्ति का संबंधमुख्य संदेशसारांश


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1 year ago
26 minutes 21 seconds

BHAGWAT GITA
Gyan karm sanyas yog

अध्याय 4 – ज्ञान कर्म संन्यास योग1. गीता ज्ञान की परंपरा

श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह योग अमर है।

  • पहले सूर्यदेव (विवस्वान) को, फिर मनु को, और उसके बाद राजऋषियों को यह ज्ञान दिया गया।

  • समय के साथ यह परंपरा लुप्त हो गई, इसलिए अब कृष्ण स्वयं अर्जुन को वही दिव्य ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।

कृष्ण कहते हैं:

  • “जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ।”

  • धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करना ही भगवान के अवतरण का उद्देश्य है।

  • वे जन्म और कर्म से दिव्य हैं—उन्हें जानने वाला मोक्ष को प्राप्त होता है।

  • केवल कर्म ही नहीं, केवल संन्यास भी नहीं—बल्कि ज्ञानयुक्त कर्म ही श्रेष्ठ है।

  • यज्ञ भावना से किया गया कर्म पवित्र बन जाता है।

  • कर्म को जब ईश्वर और समाज के कल्याण के लिए किया जाता है, तो वह बंधनकारी नहीं रहता।

कृष्ण विभिन्न यज्ञों का उल्लेख करते हैं:

  • ज्ञान यज्ञ

  • तपस्या यज्ञ

  • इन्द्रिय संयम यज्ञ

  • दान यज्ञ
    इनमें सबसे श्रेष्ठ ज्ञान यज्ञ है—क्योंकि ज्ञान से ही सब कुछ प्रकाशित होता है।

  • अज्ञान से मनुष्य मोह और बंधन में फँसता है।

  • ज्ञान सूर्य के समान है, जो अज्ञान के अंधकार को मिटा देता है।

  • गुरु की शरण लेकर, प्रश्न पूछकर और सेवा से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।

  • भगवान समय-समय पर अवतार लेकर धर्म की स्थापना करते हैं।

  • ज्ञान और कर्म का संतुलन ही वास्तविक योग है।

  • यज्ञ और तपस्या से भी ऊपर है ज्ञान यज्ञ।

  • गुरु से प्राप्त सच्चा ज्ञान ही अज्ञान को नष्ट करके आत्मा को मुक्त करता है।

ज्ञान कर्म संन्यास योग हमें सिखाता है कि जीवन में केवल कर्म या केवल त्याग नहीं, बल्कि ज्ञानयुक्त कर्म ही मुक्ति का मार्ग है। जब हम ईश्वर को समर्पित होकर कर्म करते हैं और गुरु से प्राप्त ज्ञान को आत्मसात करते हैं, तब जीवन बंधनमुक्त और पूर्ण हो जाता है।

2. अवतार का रहस्य3. कर्म और ज्ञान का संतुलन4. यज्ञ के विविध रूप5. ज्ञान का महत्वमुख्य संदेशसारांश


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2 years ago
13 minutes 28 seconds

BHAGWAT GITA
Karm yog

अध्याय 3 – कर्म योग (निष्काम कर्म का योग)1. अर्जुन का प्रश्न

अर्जुन पूछते हैं – “हे कृष्ण! यदि ज्ञान (सांख्य) को श्रेष्ठ मानते हैं, तो मुझे युद्ध (कर्म) के लिए क्यों प्रेरित करते हैं?”
यहाँ अर्जुन का भ्रम है कि क्या केवल ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है या कर्म भी आवश्यक है।

कृष्ण स्पष्ट करते हैं:

  • केवल कर्म-त्याग से मुक्ति नहीं मिलती।

  • हर कोई कर्म करने को बाध्य है, क्योंकि प्रकृति हमें कर्म करने के लिए प्रेरित करती है।

  • बिना कर्म किए जीवन असंभव है—even शरीर का निर्वाह भी कर्म से ही होता है।

  • मनुष्य को अपना कर्तव्य करना चाहिए, लेकिन फल की आसक्ति छोड़कर।

  • कर्म न करने पर समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

  • श्रेष्ठ पुरुष को चाहिए कि वह स्वयं भी कर्म करे और दूसरों को प्रेरित करे।

  • कर्म को यज्ञ भाव से करना चाहिए—अर्थात ईश्वर के लिए समर्पित भाव से।

  • यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं, और प्रकृति संतुलित रहती है।

  • स्वार्थी कर्म बंधन लाते हैं, जबकि यज्ञभाव कर्म मुक्ति दिलाते हैं।

  • मनुष्य के पतन का सबसे बड़ा कारण काम (अत्यधिक इच्छा) और उससे उत्पन्न क्रोध है।

  • यह आत्मा का शत्रु है, इसलिए इसे वश में करना आवश्यक है।

  • इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण रखकर ही व्यक्ति इच्छाओं को जीत सकता है।

  • केवल ज्ञान या केवल कर्म पर्याप्त नहीं, बल्कि निष्काम भाव से कर्म ही सर्वोच्च मार्ग है।

  • कर्म करते हुए भी मनुष्य ईश्वर को समर्पित भाव से रहे तो वह बंधन से मुक्त हो जाता है।

  • इच्छाओं और क्रोध पर नियंत्रण ही सच्चे योग का आधार है।

कर्म योग हमें यह सिखाता है कि जीवन का हर कार्य हमें कर्तव्यभाव और समर्पण के साथ करना चाहिए। जब हम फल की आसक्ति छोड़कर कर्म करते हैं, तो वही कर्म योग है—और यही मुक्ति का मार्ग है।

2. कृष्ण का उत्तर3. कर्म का महत्व4. यज्ञ भावना5. काम और क्रोधमुख्य संदेशसारांश


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3 years ago
13 minutes 39 seconds

BHAGWAT GITA
Sankhya yog part 2

सांख्य योग – भाग 2 (अध्याय 2 का उत्तरार्ध)1. निष्काम कर्म का सिद्धांत (Karma Yoga का बीज)

कृष्ण अर्जुन से कहते हैं –
👉 “तेरा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों पर कभी नहीं।”

  • कर्म करना मनुष्य का कर्तव्य है।

  • फल की आसक्ति (लालच या भय) मन को बाँध लेती है।

  • जब हम केवल कर्म पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो मन स्थिर और शांत होता है।

कृष्ण बताते हैं कि स्थितप्रज्ञ पुरुष (जिसका ज्ञान स्थिर हो गया हो) कैसा होता है –

  • सुख-दुख में समान रहता है।

  • क्रोध, लोभ और मोह से मुक्त होता है।

  • इन्द्रियों को वश में रखता है, बाहर की इच्छाओं में नहीं भटकता।

  • ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञान में स्थित होकर शांति और आनंद पाता है।

  • इन्द्रियाँ मनुष्य को बाहर की इच्छाओं की ओर खींचती हैं।

  • यदि मन उन पर नियंत्रण न रखे तो वे ज्ञान को नष्ट कर देती हैं।

  • जो साधक अपने मन और इन्द्रियों को संयमित करता है, वही स्थिर चित्त होकर योग में स्थित रह सकता है।

कृष्ण समझाते हैं –

  • इन्द्रियों का विषयों में आसक्ति → इच्छा → क्रोध → मोह → स्मृति का नाश → बुद्धि का नाश → और अंततः पतन।

  • जबकि इन्द्रियों का संयम → मन की स्थिरता → आत्मज्ञान → और अंत में परम शांति।

  • सच्चा योग वही है जिसमें व्यक्ति केवल अपने कर्तव्य को करता है, लेकिन परिणाम से जुड़ा नहीं रहता।

  • स्थितप्रज्ञ बनना ही जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है।

  • जब इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि संतुलित होते हैं, तब मनुष्य मोह और दुख से मुक्त होकर परम शांति को प्राप्त करता है।

सांख्य योग का दूसरा भाग हमें निष्काम कर्म और स्थितप्रज्ञ जीवन की ओर ले जाता है। कृष्ण अर्जुन को यह समझाते हैं कि युद्ध का निर्णय परिणाम के डर या मोह से नहीं, बल्कि धर्म और कर्तव्य के आधार पर होना चाहिए।

2. स्थितप्रज्ञ (Stithaprajna) पुरुष का स्वरूप3. इन्द्रिय और मन का नियंत्रण4. मोह और शांति का संबंधमुख्य संदेश (Part 2 का निष्कर्ष)सारांश


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3 years ago
24 minutes 35 seconds

BHAGWAT GITA
Sankhya yog

अध्याय 2 – सांख्य योग (ज्ञान योग)स्थिति

अर्जुन युद्ध न करने का निश्चय कर चुके हैं और अपने धनुष को नीचे रखकर श्रीकृष्ण से कहते हैं –
"हे कृष्ण! मैं आपका शिष्य बनकर आपसे पूछता हूँ, कृपया मुझे निश्चित रूप से बताइए कि मेरे लिए क्या श्रेयस्कर है।"

यहीं से कृष्ण उन्हें दिव्य ज्ञान देना प्रारम्भ करते हैं।

  1. आत्मा अमर है

    • आत्मा (आत्मन्) न जन्म लेती है और न मरती है।

    • शरीर नश्वर है लेकिन आत्मा शाश्वत है।

    • मृत्यु केवल पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करने के समान है।

  2. कर्तव्य (धर्म) का पालन

    • एक क्षत्रिय का सर्वोच्च धर्म है धर्मयुद्ध करना।

    • युद्ध से भागना अपयश और पाप का कारण होगा।

    • सफलता और असफलता में समभाव रखो और अपने कर्तव्य का पालन करो।

  3. सांख्य और योग का परिचय

    • सांख्य का अर्थ है – विवेकपूर्ण ज्ञान से आत्मा और शरीर के भेद को समझना।

    • योग का अर्थ है – निष्काम कर्म करना, यानी फल की आसक्ति छोड़े बिना कर्तव्य निभाना।

  4. समत्व योग (Equanimity)

    • सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय में सम रहना ही योग है।

    • फल की चिंता किए बिना केवल कर्म करना ही श्रेष्ठ है।

  • जीवन में सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि आत्मा नष्ट नहीं होती, केवल शरीर बदलता है।

  • जो भी कर्तव्य हमें मिला है, उसे बिना मोह और परिणाम की चिंता के करना ही धर्म है।

  • यही दृष्टिकोण हमें आंतरिक शांति और सच्चे योग की ओर ले जाता है।

सांख्य योग हमें सिखाता है कि जीवन का रहस्य आत्मा की अमरता को समझने और अपने कर्तव्य को निष्काम भाव से निभाने में है। जब हम सुख-दुख, लाभ-हानि और जीवन-मरण से ऊपर उठकर कर्म करते हैं, तभी वास्तविक योगी बनते हैं।

कृष्ण का उपदेशमुख्य संदेशसारांश


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3 years ago
26 minutes 44 seconds

BHAGWAT GITA
Arjun vishad yog

स्थिति:
महाभारत युद्ध शुरू होने वाला है। दोनों सेनाएँ कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने खड़ी हैं। अर्जुन अपने रथ पर खड़े होकर जब युद्धभूमि को देखते हैं, तो उन्हें अपने ही गुरु, बंधु, कुटुंब और मित्र शत्रु पक्ष में दिखाई देते हैं।

क्या हुआ:
अर्जुन अपने धनुष को थामे खड़े हैं, परंतु उनका हृदय करुणा और मोह से भर जाता है।

  • वे सोचते हैं कि जिनके लिए युद्ध करना है, यदि वही लोग मारे गए तो राज्य, सुख और विजय का क्या मूल्य होगा?

  • उन्हें भय है कि इस युद्ध में परिवार और कुल-परंपरा नष्ट हो जाएगी।

  • अर्जुन के भीतर गहरा द्वंद्व (conflict) पैदा होता है—कर्तव्य (धर्म) और करुणा (भावना) के बीच।

अर्जुन के भाव:

  • शरीर कांपना, मुख सूखना, धनुष हाथ से छूट जाना।

  • युद्ध की इच्छा समाप्त हो जाना।

  • मन में शोक, मोह और दुविधा का छा जाना।

  • अंततः वे कहते हैं: “हे कृष्ण! मैं युद्ध नहीं करूंगा।”

मुख्य संदेश:

  • यह अध्याय हमें दिखाता है कि जीवन में जब मोह, करुणा और व्यक्तिगत भावनाएँ कर्तव्य के मार्ग में बाधा बनती हैं, तो मनुष्य भ्रमित हो जाता है।

  • अर्जुन विषाद योग केवल अर्जुन की समस्या नहीं है, बल्कि हर इंसान के जीवन का दर्पण है—जब हम किसी कठिन निर्णय के सामने खड़े होते हैं, तो मन डगमगाने लगता है।

  • यही “विषाद” (शोक और दुविधा) आगे चलकर “योग” (ज्ञान और समाधान) का मार्ग खोलता है।

सार:
गीता की शुरुआत शोक और दुविधा से होती है, क्योंकि बिना समस्या के समाधान की आवश्यकता नहीं होती। अर्जुन का विषाद ही आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का कारण बनता है।


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3 years ago
28 minutes 12 seconds

BHAGWAT GITA
Shree mad bhagwat geeta

🎙️ “नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका इस पॉडकास्ट में। आज हम बात करेंगे उस दिव्य ग्रंथ की, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर अर्जुन को सुनाया था – श्रीमद्भगवद्गीता। इसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, और हर अध्याय जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर गहरी शिक्षा देता है। आने वाले एपिसोड्स में मैं आपको इन्हीं 18 अध्यायों के बारे में विस्तार से बताऊँगी—किस अध्याय में क्या संदेश है, और वे हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में किस तरह मार्गदर्शन कर सकते हैं।”


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4 years ago
23 seconds

BHAGWAT GITA
महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।आज से (सन 2022) लगभग 5560 वर्ष पहले गीता जी का ज्ञान बोला गया था|