यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.78 का अंश है। इसमें संजय कहते हैं:
"जहाँ योगेश्वर श्री कृष्ण हैं और जहाँ अर्जुन जैसे धनुर्धर (बाण चलाने वाले) हैं, वहाँ निश्चित रूप से श्री (समृद्धि), विजय, ऐश्वर्य, स्थिरता और नीति (सिद्धांत) हैं। यह मेरी राय है।"
संजय यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि जहां भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन होते हैं, वहाँ हमेशा विजय और सफलता होती है। उनका यह कथन यह भी दर्शाता है कि जब धर्म, नीति और ज्ञान के प्रतीक भगवान श्री कृष्ण साथ होते हैं, तो वहाँ हर कार्य में सफलता और समृद्धि मिलती है।
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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.77 का अंश है। इसमें संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं:
"राजन! उस अद्भुत रूप को बार-बार स्मरण करते हुए, भगवान श्री कृष्ण के रूप की महिमा को याद करके मुझे अत्यधिक विस्मय और आनंद हो रहा है। बार-बार मुझे उस रूप का स्मरण करने पर हर्षित अनुभव हो रहा है।"
संजय यहाँ भगवान श्री कृष्ण के दिव्य रूप की अद्भुतता और उसकी महिमा का वर्णन कर रहे हैं। उनके रूप की भव्यता और दिव्यता को स्मरण करते हुए संजय को विस्मय और संतोष प्राप्त हो रहा है।
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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.76 का अंश है। इसमें संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं:
"राजन! इस अद्भुत संवाद को बार-बार स्मरण करते हुए, मैं केशव और अर्जुन के बीच के इस पुण्यपूर्ण संवाद को सुनकर आनंदित हो रहा हूँ और बार-बार हर्षित हो रहा हूँ।"
संजय यह व्यक्त कर रहे हैं कि भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद अत्यंत दिव्य और पुण्यकारी है, जिसे स्मरण करने से उन्हें खुशी और संतोष मिल रहा है। यह संवाद उनके लिए अत्यंत प्रेरणादायक है और वे इसे बार-बार याद करते हैं।
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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.75 का अंश है। इसमें संजय कहते हैं:
"मैंने इस अद्भुत और गूढ़ योग के ज्ञान को श्री कृष्ण से स्वयं सुनकर, उनके द्वारा बताए गए इस परम रहस्यमय उपदेश को व्यास जी की कृपा से सुना है।"
संजय यहाँ यह बता रहे हैं कि उन्होंने यह दिव्य ज्ञान भगवान श्री कृष्ण से स्वयं सुना है, और यह ज्ञान उन्हें व्यास जी के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है। संजय भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों की गहराई और महिमा को समझते हुए, इसका वर्णन करते हैं।
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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.74 का अंश है। इसमें संजय ने धृतराष्ट्र से कहा:
"इस प्रकार मैं ने वासुदेव (भगवान श्री कृष्ण) और महात्मा अर्जुन के बीच का संवाद सुना, जो अत्यंत अद्भुत और रोमांचक था।"
यह श्लोक संजय द्वारा वर्णित किया गया है, जो घटनाओं को धृतराष्ट्र को सुनाते हैं। वह इस संवाद को सुनकर आश्चर्यचकित होते हैं, क्योंकि वह अत्यधिक गहन और दिव्य था। संजय भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद को देखकर चकित हैं और उनके विचारों की गहराई से प्रभावित होते हैं।
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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.73 का अंश है। इसमें अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं:
"हे अच्युत! मेरा मोह समाप्त हो चुका है, और स्मृति प्राप्त हुई है। आपके प्रसाद से मेरा संदेह दूर हो गया है। अब मैं स्थिर हूं और जो आप कहेंगे, वही करूंगा।"
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों को पूरी तरह से समझ लिया है और उनका अज्ञान और भ्रम समाप्त हो चुका है। अब वह अपने संदेहों को छोड़कर श्री कृष्ण के निर्देशों का पालन करने के लिए तैयार हैं।
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यह श्लोक श्री भगवद गीता के 3.72 का अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से पूछते हैं:
"क्या तुमने जो कुछ सुना है, उसे अपनी एकाग्रचित्तता से स्वीकार किया है? क्या तुम्हारा अज्ञान और मोह समाप्त हो गया है, हे धनंजय?"
यह श्लोक अर्जुन के मन की स्थिति और उसकी समझ को स्पष्ट करने के लिए है। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से यह जानना चाहते हैं कि क्या वह उनके उपदेशों को अपने मन में ठीक से समझ पाया है और क्या उसका अज्ञान और भ्रम दूर हो चुका है।
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श्लोक का निहितार्थ (सारांश):
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो श्रद्धालु और दोषदृष्टि से रहित व्यक्ति इस संवाद (गीता) को सुनेगा, वह भी पवित्र होकर मुक्त हो जाएगा और पुण्यात्माओं के लोकों को प्राप्त करेगा।
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श्लोक का निहितार्थ (सारांश):
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति हमारे इस धर्मयुक्त संवाद (गीता के उपदेश) को पढ़ेगा, वह मेरे लिए ज्ञानयज्ञ के माध्यम से पूजनीय होगा। यह मेरा दृढ़ मत है।
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श्लोक का निहितार्थ (सारांश):
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति इस गीता के ज्ञान को दूसरों को बताएगा, वह मेरे लिए सभी मनुष्यों में सबसे प्रिय होगा। पृथ्वी पर ऐसा कोई अन्य व्यक्ति नहीं होगा जो मुझे उससे अधिक प्रिय हो।
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श्लोक का निहितार्थ (सारांश):
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो यह परम रहस्य (गीता का ज्ञान) मेरे भक्तों को सुनाएगा, वह मेरी परम भक्ति प्राप्त करेगा और निश्चय ही मेरे पास आएगा।
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श्लोक का निहितार्थ (सारांश):
श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह परम रहस्य उन व्यक्तियों को नहीं बताना चाहिए जो तपस्वी नहीं हैं, भक्ति से रहित हैं, सेवा करने की प्रवृत्ति नहीं रखते, या जो मुझ पर दोषारोपण करते हैं।
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श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सभी धर्मों और कर्तव्यों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। चिंता मत करो।
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भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपने प्रति पूर्ण समर्पण, भक्ति और प्रेम का मार्ग दिखाते हुए कहते हैं कि मन, भक्ति, और कर्म से मेरे प्रति निष्ठावान रहो। यदि तुम मेरा स्मरण करोगे, मेरी पूजा करोगे और मुझसे प्रेम करोगे, तो निश्चित ही तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह मेरा वचन है, क्योंकि तुम मुझे प्रिय हो।
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श्लोक: सर्वगुह्यतमं भूय: शृणु मे परमं वच: |
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् || 64||
यह श्लोक भगवद्गीता (अध्याय 18, श्लोक 64) का है।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"मैं तुम्हें पुनः सबसे गोपनीय और परम उपदेश सुनाने जा रहा हूँ, क्योंकि तुम मेरे लिए अत्यंत प्रिय हो। यह उपदेश तुम्हारे कल्याण के लिए है।"
सर्वगुह्यतमं:
भगवान यहाँ "सबसे गोपनीय" ज्ञान की बात कर रहे हैं, जो सर्वोच्च भक्ति और आत्म-समर्पण से जुड़ा है।
इष्टोऽसि मे दृढम्:
भगवान अर्जुन को "अत्यंत प्रिय" कहते हैं। यह स्नेह और दिव्य संबंध को दर्शाता है।
हितम्:
भगवान अर्जुन के हित में उन्हें वह ज्ञान देने को तत्पर हैं, जो आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाएगा।
यह श्लोक भगवान के दिव्य प्रेम और करुणा का प्रतीक है। यह ज्ञान, भक्ति और आत्म-समर्पण के महत्व को प्रकट करता है, जो जीवन को मोक्ष और शांति की ओर ले जाता है।
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जय श्री कृष्णा! 🙏 श्री भगवद गीता के 18वें अध्याय के 63वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके सभी प्रश्नों का उत्तर देने के बाद आत्मनिर्णय का मार्ग प्रदान कर रहे हैं। इस श्लोक में उन्होंने ज्ञान के रहस्यों को उजागर किया और अर्जुन को स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया। इस श्लोक में हम जानेंगे: भगवान द्वारा अर्जुन को दिया गया परम ज्ञान। आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता का महत्व। जीवन में सही चुनाव करने का महत्व। भगवद गीता का यह संदेश हर व्यक्ति को अपनी क्षमता और विवेक से जीवन के निर्णय लेने की प्रेरणा देता है। वीडियो को अंत तक देखें और इस अमूल्य ज्ञान को अपनाएं। #Hashtags: #BhagavadGita #Chapter18 #GeetaSlok #DivineWisdom #KrishnaTeachings #SelfDecision #SpiritualGrowth #GeetaGyan #ShlokExplained #LifeChoices #Bhakti #Arjuna Tags (Comma-separated): Bhagavad Gita, Chapter 18, Slok 63, Krishna teachings, Divine Wisdom, Spiritual Freedom, Hindu Scriptures, Geeta Saar, Self Decision, Bhagavad Gita Explanation, Geeta in Hindi, Param Gyaan, Shri Krishna, Life Choices, Spirituality, Self Determination, Geeta Shlok Meaning
तमेव शरणं गच्छ - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 62 | Shrimad Bhagavad Gita 18.62
Description:
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "हे भारत (अर्जुन)! पूरी भावना और समर्पण से मेरी शरण में आओ। मेरी कृपा से तुम परम शांति और शाश्वत धाम को प्राप्त करोगे।" यह श्लोक समर्पण, आस्था, और ईश्वर की कृपा पर जोर देता है।
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ईश्वरः सर्वभूतानां - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 61 | Shrimad Bhagavad Gita 18.61
Description:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "हे अर्जुन! परमेश्वर सभी जीवों के हृदय में विराजमान हैं और अपनी दिव्य माया से उन्हें यंत्र पर चढ़े हुए प्राणियों की तरह संचालित करते हैं।" यह श्लोक ब्रह्मांड की परम शक्ति और जीवों के साथ उसके अटूट संबंध को दर्शाता है।
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स्वभावजेन कौन्तेय - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 60 | Shrimad Bhagavad Gita 18.60
Description:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "हे कौन्तेय! तुम अपने स्वभाव के अनुसार अपने कर्मों से बंधे हुए हो। मोहवश जो कार्य करने की इच्छा नहीं रखते, वह भी तुम्हें अवश्य करना पड़ेगा, क्योंकि प्रकृति तुम्हें उससे बांधती है।" यह श्लोक कर्तव्य, स्वभाव, और नियति की अपरिहार्यता को दर्शाता है।
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अहम् का मोह और प्रकृति का प्रभाव - भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 59 | Shrimad Bhagavad Gita 18.59
Description:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: "यदि तुम अहंकार के प्रभाव में आकर सोचते हो कि युद्ध नहीं करोगे, तो यह तुम्हारा मिथ्या विचार है। प्रकृति के नियमों से बंधे हुए तुम अवश्य वही करोगे, जो तुम्हारी प्रकृति द्वारा निर्धारित है।" यह श्लोक कर्तव्य, अहंकार के भ्रम और प्रकृति के अटल नियमों को समझाता है।
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