
श्लोक का निहितार्थ (सारांश):
श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह परम रहस्य उन व्यक्तियों को नहीं बताना चाहिए जो तपस्वी नहीं हैं, भक्ति से रहित हैं, सेवा करने की प्रवृत्ति नहीं रखते, या जो मुझ पर दोषारोपण करते हैं।
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