
तुम्हारी जूठी चाय
काफी दिनों बाद ऐसा मेहसूस हुआ है। कुछ अलग नहीं है, लेकिन कुछ थोड़ा बेहतर है। दिन भर, हर वक़्त, हर पल ठीक ऐसा मेहसूस होता है जैसा मुझे कभी महीनों में एक बार उम्मीद से ज्यादा अच्छी चाय पीने के बाद मेहसूस होता है। गरम, अच्छी और अदरक के साथ पकी हुई चाय जब आपके होठों से गुजर कर गले से उतरती है तो एक अलग सुकून मिलता है, लगता है जैसे छाती में कुच्छ भार, थोड़ा अधूरा प्यार और बेचैन फंसी कुछ बातेँ उतर के दिल को छू कर निकल जाती है। ऐसा नहीं कि चाय और मेरा प्यार कुछ ज्यादा है, लेकिन जब चाय पीने के बहाने चाय से अच्छे हो, तो चाय से मोहब्बत की जा सकती है। में इतना खुश नहीं मगर खुद से खफा हूं, इतना कुछ होने के बाद लगता है मेरे दिल के इरादे कुछ अलग है, मैं अक्सर उसे रोकता हूं, समझाता हूं और याद दिलाता हूं सब कुछ लेकिन इस बिचारे दिल कि गलती है ही नहीं.. गलती तो उसके बेचैन दोस्त दिमाग की है, दोनों मिलकर इतनी खुराफाती हरकते करते हैं कि उसका परिणाम मुझे भुगतना पड़ता है। हमेशा कि तरह कर बैठे प्यार फिर से, इनकी आदत बिगड़ चुकी है। मैंने समझाया तो मुझे यकीन दिलाने लगे, कहने लगे कि ये काफी अलग एहसास है.. दिल और दिमाग की दोस्ती ने दावा किया कि अब कि बार जो प्यार हुआ है.. वो उनकी गलती से नहीं हुआ, मेरी बेवकूफियों से हुआ है। मैं खुद को अक्सर भूल जाता हूँ, जब भी मिलता हूँ उससे, तो हर दिन एक नया इंसान होता हूँ।
जूठे चाय के नशे में अक्षय