
मेरे आईने का एक टुकड़ा खो गया
उस हिस्से का चेहरा अब नहीं दिखता
मेरे चेहरे का अंदाजा है
और उस टुकड़े की कमी
आँखों को देखता देखा है मैने
में मुस्कराता हुआ अब नहीं दिखता
दिन का वक़्त अक्सर बाहर गुज़रता है
रातों को आईना नजर नहीं आता
मुझे अब आइने की जरूरत नहीं शायद
टुकड़े की तलाश है
रातों को डरता हूं
कहीं आईने का वो टुकड़ा चुभ ना जाए
दिन में अब ढूँढने का वक़्त नहीं
अंदाजा है मुझे मेरे हाल का
अब मेरी नज़रों से नज़रे कोई मिलाता नहीं
मेरे आइने में कुछ कमी है
शायद वो अब मुझे भाता नहीं
- अक्षय एस. पोद्दार