शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता – द्वितीय खंड का सैंतीसवां अध्याय दक्ष प्रजापति के अंत का वर्णन करता है। वीरभद्र ने यज्ञशाला में घुसकर सभी देवताओं को परास्त किया और अंत में दक्ष का सिर काटकर यज्ञ कुंड में डाल दिया। यह प्रसंग शिवजी के अपमान और सती माता के त्याग के परिणामस्वरूप दक्ष के विनाश की कथा है।
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शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता – द्वितीय खंड, छत्तीसवाँ अध्याय
इस अध्याय में श्रीहरि विष्णु और वीरभद्र के बीच हुए भयानक युद्ध का वर्णन है। शिवजी के अपमान और देवी सती के अन्याय के कारण उत्पन्न यह संग्राम देवताओं और ऋषियों के लिए भयावह सिद्ध हुआ।
वीरभद्र और महाकाली ने अनेक देवताओं और मुनियों को दंडित किया तथा उनकी करनी के अनुसार उन्हें परिणाम भोगना पड़ा। यह अध्याय हमें सिखाता है कि शिव और सती का अपमान करने का परिणाम कितना गंभीर हो सकता है।
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शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता के पैंतीसवें अध्याय में वीरभद्र के प्रकट होने और यज्ञ मण्डप में उनके आगमन का दिव्य वर्णन है। दक्ष के अहंकार और शिव का अपमान करने के दुष्परिणामस्वरूप जब यज्ञ विनाश के कगार पर पहुँचता है, तब वीरभद्र और महाकाली अपनी विशाल सेना के साथ प्रकट होकर यज्ञशाला की ओर बढ़ते हैं। भयभीत दक्ष और देवता श्रीहरि विष्णु की शरण में जाकर रक्षा की प्रार्थना करते हैं। यह अध्याय दर्शाता है कि शिव की अवहेलना करने वाला कोई भी कर्म कभी सफल नहीं हो सकता।
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शिव पुराण श्रीरुद्र संहिता – द्वितीय खंड के इस चौंतीसवें अध्याय में, वीरभद्र और महाकाली की सेनाओं के दक्ष यज्ञ की ओर बढ़ने पर यज्ञमण्डप में फैले भय और अपशकुनों का वर्णन है। आकाशवाणी के माध्यम से दक्ष के पापों का उद्घाटन होता है और भगवान विष्णु से जीवन रक्षा की प्रार्थना की जाती है। यह कथा शिवभक्ति, धर्म और कर्मफल के गूढ़ संदेश को उजागर करती है।
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"तेँतीसवाँ अध्याय – वीरभद्र और महाकाली का यज्ञशाला की ओर प्रस्थान" इस अध्याय में भगवान शिव के आदेश पर वीरभद्र और महाकाली की विशाल सेना के साथ यज्ञ विनाश के लिए प्रस्थान का वर्णन है। शिवगणों, भूत-पिशाचों और नव दुर्गाओं सहित असंख्य शक्तियाँ भगवान शिव के अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए यज्ञशाला की ओर बढ़ती हैं। यह दृश्य शक्ति, भक्ति और न्याय का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
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इस अध्याय में शिवजी के प्रचंड क्रोध का वर्णन है। जब सती माता ने यज्ञ में अपने अपमान से दुखी होकर देह त्याग दी, तब शिवगणों ने यह समाचार शिवजी को सुनाया। शिवजी अत्यंत क्रोधित हुए, उनकी जटा से वीरभद्र और महाकाली की उत्पत्ति हुई। वीरभद्र को आदेश दिया गया कि वह दक्ष यज्ञ को विध्वंस कर दे। इस अध्याय में क्रोध, न्याय और शिव की रौद्र लीला का वर्णन है।
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रुद्राष्टकम् भगवान शिव की स्तुति में रचित एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। यह स्तुति शिव जी के निर्गुण, निर्विकल्प और परमेश्वर स्वरूप का भावपूर्ण वर्णन करती है। जो भी भक्त सच्चे मन से इसका पाठ करता है, उस पर भगवान शंकर की कृपा अवश्य होती है।
'श्री शिव रुद्राष्टकम' स्तुति का पाठ, जानिए इसका हिंदी अर्थ और महत्व
भावपूर्ण उच्चारण के साथ रुद्राष्टकम् का पाठ प्रस्तुत किया गया है। नियमित रूप से इसका श्रवण करने से मानसिक शांति, ऊर्जा और भक्तिभाव की अनुभूति होती है।
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अध्याय नाम: एकतीसवां अध्याय – आकाशवाणी
इस अध्याय में शिव पुराण के अनुसार उस महान यज्ञ में उत्पन्न हुए संकट के समय हुई दिव्य आकाशवाणी का वर्णन किया गया है। यह आकाशवाणी दक्ष के अहंकार, भगवान शिव और माता सती के अपमान, और धर्म विरोधी कृत्यों की कड़ी निंदा करती है। इसमें बताया गया है कि शिव एवं सती के अपमान से समस्त ब्रह्मांड के लिए विनाशकारी परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। यह अध्याय सती की महानता, शिव की सर्वोच्चता और यज्ञ के विध्वंस का स्पष्ट संकेत देता है।
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शिव पुराण हिंदी अनुवाद
शिव और सती की प्रेम कथा
सती का योगाग्नि में देह त्याग | दक्ष यज्ञ का विध्वंस और शिवगणों का क्रोध | शिव पुराण कथा
इस भावुक और अत्यंत मार्मिक अध्याय में जानिए कैसे माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर योगाग्नि में अपनी देह का त्याग किया। शिवगणों का भीषण आक्रमण, यज्ञ स्थल पर युद्ध, और सृष्टि में मचे हाहाकार ने पूरे ब्रह्मांड को हिला दिया।
यह कथा हमें भक्ति, सम्मान और अहंकार के विनाश का गहन संदेश देती है। देखिए कैसे सती के बलिदान ने आगे के घटनाक्रम की नींव रखी और शिव तांडव का आरंभ हुआ।
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"सती का आत्मदाह | दक्ष यज्ञ में शिव का अपमान और सती का त्याग | शिव पुराण कथा"
इस भावुक और अत्यंत मार्मिक अध्याय में जानिए कैसे माता सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का घोर अपमान देखा और आहत होकर अपने प्राण त्यागने का कठोर निर्णय लिया। शिव निंदा का परिणाम, सती का क्रोध और आत्मदाह, और आगे आने वाली महाविनाश की शुरुआत — इस अध्याय में छिपा है भक्ति, सम्मान और धर्म की सच्ची गहराई का संदेश। देखिए कैसे सती का त्याग पूरे सृष्टि में हलचल मचा देता है।
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"सती का यज्ञ में जाना | शिवजी का मना करना और सती का हठ | शिव पुराण कथा"
इस अध्याय में जानिए कैसे माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाने का निर्णय लेती हैं, जबकि शिवजी उन्हें रोकते हैं। अपनी जिद पर अड़ी सती, शिवजी का आशीर्वाद लेकर, भव्य श्रृंगार और शिवगणों के साथ यज्ञ स्थल की ओर प्रस्थान करती हैं। मार्ग में गूंजते शिव के जयकार, और सती की महान भक्ति का यह अध्याय हमें अहंकार, प्रेम और धर्म का गहरा संदेश देता है। देखिए कैसे इस निर्णय ने आगे चलकर पूरे ब्रह्मांड में हलचल मचा दी।
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"दक्ष प्रजापति का यज्ञ | भगवान शिव का अपमान और दधीचि का शाप | शिव पुराण की दिव्य कथा"
इस भावुक और धर्ममयी कथा में जानिए कैसे प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव को अपने महायज्ञ से निमंत्रण नहीं दिया, जिससे शिव का अपमान हुआ। महर्षि दधीचि का क्रोध, ऋषियों का त्याग, और अंततः ब्रह्मा और विष्णु द्वारा यज्ञ को पूरा करने का प्रयास—यह अध्याय धर्म, अहंकार और सच्चे श्रद्धा की गहराइयों को छूता है।
देखिए शिव पुराण के इस अध्याय में कैसे एक यज्ञ विवाद का कारण बन गया, और क्या हुआ दक्ष के यज्ञ का भविष्य?
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दक्ष का यज्ञ, भगवान शिव का अपमान और श्रापों का महा संग्राम | शिव पुराण कथा"
इस रोमांचक कड़ी में जानिए प्राचीन शिव पुराण की वह कथा जब प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया गया। शिव का अपमान, सती का विरोध, और नंदी व दक्ष के बीच श्रापों का आदान-प्रदान – यह सब बनता है इस अध्याय का मुख्य आकर्षण।
श्रद्धा, अहंकार, और धर्म के टकराव को दर्शाने वाली यह कथा हमें नीति, मर्यादा और भक्ति का गहन संदेश देती है।
देखिए कैसे ब्रह्मा, विष्णु और देवगण भी इस धर्मसंकट में उलझ जाते हैं, और क्या होता है दक्ष यज्ञ का परिणाम।
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“पच्चीरावाँ अध्याय: ‘श्रीराम का सती के संदेह को दूर करना’—इस अध्याय में श्रीरामचन्द्र जी द्वारा माता सती को यह कथा सुनाकर उनके हृदय से संदेह और मोह दूर किए जाते हैं। शंकर–सती के पारस्परिक प्रेम एवं उनकी परिक्षा का भावपूर्ण विवरण, स्तुति–लीला के स्वरूपों को उजागर करता है।”
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शिव पुराण
पच्चीरावाँ अध्याय
श्रीराम सती संदेह
देवी सती कथा
शंकर लीला
राम–कथा पुराण
शिव–पार्वती कथा
सती का मनोबल
पुराण अध्याय सार
हिन्दू धर्म ग्रंथ
इस अध्याय में सती द्वारा श्रीराम की परीक्षा लेने की कथा वर्णित है। जब सती को भगवान शिव की बातों पर संदेह हुआ, तब उन्होंने स्वयं सीता का रूप धारण कर श्रीराम की परीक्षा ली। इस परीक्षा के बाद श्रीराम ने सती को पहचान लिया, जिससे सती का भ्रम दूर हुआ। उन्होंने श्रीराम की महिमा को स्वीकार किया और उनके चरणों में प्रणाम किया। यह प्रसंग भक्तिरस, विनम्रता और आत्म-ज्ञान का बोध कराता है।
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इस अध्याय में देवी सती भगवान शिव से ज्ञान और मोक्ष की महिमा के बारे में जानने की इच्छा प्रकट करती हैं।
भगवान शिव, भक्तिपूर्वक उनकी जिज्ञासा शांत करते हुए भक्ति, ज्ञान, मोक्ष और उनके आपसी संबंधों का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हैं।
वे श्रद्धा, प्रेम, सेवा, आत्मसमर्पण जैसे नौ अंगों की भक्ति को श्रेष्ठ बताते हैं और यह स्पष्ट करते हैं कि बिना भक्ति के ज्ञान अधूरा है और बिना ज्ञान के भक्ति भी फलदायक नहीं होती।
अंत में देवी सती सभी शास्त्रों का सार पूछती हैं और भगवान शिव उन्हें विभिन्न शास्त्रों—तंत्र, यंत्र, इतिहास, ज्योतिष, वैदिक धर्म—की महत्ता समझाते हैं।
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इस अध्याय में देवी सती की इच्छा पर भगवान शिव उन्हें हिमालय पर्वत पर विहार के लिए ले जाते हैं। वर्षा ऋतु का सुहावना वातावरण देखकर देवी सती का मन प्रकृति में रमण करने को होता है। भगवान शिव उनकी भावना को समझते हुए उन्हें हिमालय लेकर जाते हैं। वहां दोनों कुछ समय प्रसन्नतापूर्वक विहार करते हैं और फिर अपने निवास स्थल कैलाश लौट आते हैं। यह अध्याय शिव-सती के प्रेम, सौंदर्य, अनुराग और दांपत्य जीवन के सौम्य पक्ष को दर्शाता है।
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शिव सती हिमालय
शिव सती का प्रेम
शिव सती विहार
शिव सती की कथा
शिव सती विवाह के बाद
शिव पुराण हिंदी
शिव सती यात्रा
हिमालय में शिव सती
शिव कथा अध्याय 22
शिव सती का प्रेममय जीवन
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इस अध्याय में भगवान शिव और देवी सती के विवाह के पश्चात उनके कैलाश पर्वत पर आगमन, विदाई के प्रसंग, और उनके एकांत विहार का सुंदर चित्रण किया गया है। सती की तपस्या और शिवजी के प्रति उनका प्रेम, साथ ही शिवजी की प्रसन्नता व सती के सौंदर्य पर मोहित होना, दोनों के मिलन का एक भावुक और पूजनीय चित्र प्रस्तुत करता है।
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कैलाश पर्वत
शिव सती प्रेम
शिवजी का सान्निध्य
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इस अध्याय में भगवान शिव और देवी सती के विवाह के पश्चात उनके कैलाश लौटने की कथा वर्णित है। विदाई के समय दक्ष द्वारा सम्मानपूर्वक आशीर्वाद, देवताओं द्वारा स्तुति, शिव-सती की शोभायात्रा और विवाह के महात्म्य का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह अध्याय विवाह के धार्मिक महत्व और शिवभक्तों के लिए इस कथा के पुण्यफल की व्याख्या करता है।
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"इस अध्याय में ब्रह्मा जी नारद जी को बताते हैं कि दक्ष द्वारा भगवान शिव को अनेक उपहार प्रदान किए गए। विष्णु भगवान भी लक्ष्मी जी के साथ भगवान शिव की भक्ति भाव से आराधना करते हैं।
वे शिवजी को संपूर्ण सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता और रक्षक बताते हैं। सभी देवता और ऋषि मुनि भगवान शिव के गुणगान में स्तुति करते हैं और संसार के कल्याण की कामना करते हैं।"
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