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लाख पढ़ लो किताबें नहीं कुछ असर,जब तक न हो गुरु की करुणा नज़र; पास बैठो तो आती है याद ए खुदा, ऐसे सतगुरु की सोहबत बड़ी चीज़ है अपने मुर्शिद की उल्फत बड़ी चीज़ है . . .
"निगाह ए मस्त मिलाई तो मय पिला के उठे; जहां वो बैठ गए, मयकदा बना के उठे!” _ "सर दीने जो बूंद मिले इक, तो भी जानूं सस्ती। पिला दे ओ साकी! हरि नाम की मस्ती।।"
साधु! हरि गुरू अंतर नाही। मो मन एक रहाई। हरि ही गुरू, गुरू में हरि कहिए गुरू में हरि समाई। हरि गुरू में जो अंतर समझे ते नर नरक गिराई। साधु! हरि गुरू अंतर नाही।
हरि ही गुरू होए अवतरे है जीव जगावन आई। चेतन देव सदा शुद्ध कहिए छिन्न-भिन्न कुछ नाही, साधु! हरि गुरू अंतर नाही।
जो जाने सो जाने यह गति, निज निश्चय यह मन भाई। आपा छोड़ आप में परखे तो भ्रम ग्रन्थि मिट जाई। साधु! हरि गुरू अंतर नाही।
‘देवनाथ’ है शुद्ध सन्यासी जिन यह बूटी पाई। ‘मानसिंह’ सपने नहीं दूजा एक रूप दरसाई। साधु! हरि गुरू अंतर नाही।
Guru is required at the stage when we seriously intend to enter into the waters of bliss. He only trains us to first swim and then dive deep inside. अगर है शौक़ मिलने का तो शरण ले संत सत्गुरु की, तरीका यार से मिलाने का इन्हें खूब आता है . . .
You have granted me an inner joy which stays intact, no matter I get anything of the world or not. मेरी तनख्वाह भी कुछ कम नहीं . . .कुछ मिले न मिले गम नहीं...