अगर हमें भी सच्चे राम सेवक व भक्त बनना है तो पिफर आलस का त्याग करना ही पड़ेगा। श्री हनुमंत लाल जी राम काज को इतनी तत्परता से इसलिए भी करना चाहते हैं क्योंकि वे प्रभु को प्रसन्न करना चाहते हैं।
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रामचरितमानस मे नारी के लौकिक और अलौकिक दोनों ही रूप परिलक्षित होते हैं। एक ओर माता पार्वती और माता जानकी तो प्रणम्य हैं ही पर दूसरी ओर कौशल्या, सुमित्रा, सुनयना, कैकेयी, तारा, मैना, मंदोदरी आदि के पारिवारिक और सामाजिक चरित्र हैं, जिनके माध्यम से तुलसीदास के नारी-चितंन को समझा जा सकता है।
रामचरितमानस में दोहा है... धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।। तुलसीदास इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जब आपकी परिस्थिति ठीक न हो तो उस वक्त धीरज, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा होती है क्योंकि अच्छे वक्त में सभी लोग आपके साथ होते हैं लेकिन बुरे वक्त में जो आपका साथ देता है, वही अच्छा होता है।
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