Home
Categories
EXPLORE
True Crime
Comedy
Society & Culture
Business
Sports
TV & Film
Health & Fitness
About Us
Contact Us
Copyright
© 2024 PodJoint
00:00 / 00:00
Sign in

or

Don't have an account?
Sign up
Forgot password
https://is1-ssl.mzstatic.com/image/thumb/Podcasts211/v4/2c/e4/b7/2ce4b78f-3cd8-6b50-4e8a-9050d5bbe0d5/mza_1063762806772070791.jpg/600x600bb.jpg
Movies Philosophy
Movies Philosophy
100 episodes
2 months ago
Show more...
TV & Film
RSS
All content for Movies Philosophy is the property of Movies Philosophy and is served directly from their servers with no modification, redirects, or rehosting. The podcast is not affiliated with or endorsed by Podjoint in any way.
Show more...
TV & Film
https://pbcdn1.podbean.com/imglogo/ep-logo/pbblog20166988/imgi_228_fc5ea186e284b540e066ed2bd649a23e.jpg
The Kashmir Files: Full Movie Recap, Iconic Dialogues & Explained in Hindi
Movies Philosophy
8 minutes 17 seconds
3 months ago
The Kashmir Files: Full Movie Recap, Iconic Dialogues & Explained in Hindi
https://moviesphilosophy.com/the-kashmir-files-full-movie-recap-iconic-quotes-hidden-facts/ द कश्मीर फाइल्स (2022) - विस्तृत मूवी रीकैप निर्देशक: विवेक अग्निहोत्रीनिर्माता: ज़ी स्टूडियोज, अभिषेक अग्रवाल आर्ट्सकलाकार: अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी, चिन्मय मांडलेकर, पुनीत इस्सरसंगीत: रोहित शर्माशैली: ऐतिहासिक ड्रामा, राजनीतिक थ्रिलर भूमिका "द कश्मीर फाइल्स" भारतीय सिनेमा की सबसे संवेदनशील और विवादित फिल्मों में से एक मानी जाती है। यह फिल्म 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन और उनके खिलाफ हुए नरसंहार की घटनाओं पर आधारित है। फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे इस समुदाय को अपनी मातृभूमि से जबरदस्ती बाहर निकाला गया और कैसे उनका दर्द वर्षों तक अनदेखा किया गया। अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती और दर्शन कुमार जैसे कलाकारों ने दमदार परफॉर्मेंस दी, जो फिल्म को और ज्यादा प्रभावी बनाती है। कहानी प्रारंभ: वर्तमान और अतीत का टकराव फिल्म की शुरुआत 2020 के समय में होती है, जहां कृष्णा पंडित (दर्शन कुमार) एक आधुनिक युवा है, जो जेएनयू (JNU) में पढ़ाई कर रहा है। वह कश्मीर की सच्चाई को लेकर उलझन में है, क्योंकि उसकी परवरिश एक अलग दृष्टिकोण के साथ हुई है। उसके दादा, पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर), जो कश्मीरी पंडितों के पलायन के समय के जीवित गवाह हैं, उसे असली सच्चाई बताने के लिए तैयार हैं। संवाद: "तुम्हें पता है, हम कश्मीरी पंडितों ने क्या खोया?" फ्लैशबैक: 1990 – आतंक का काल फिल्म हमें 1990 के कश्मीर में लेकर जाती है, जब वहां आतंकवाद अपने चरम पर था। स्थानीय कश्मीरी पंडितों को धमकियां मिल रही थीं, "रालिव, गालिव, या चालिव" – यानी इस्लाम कबूल करो, मर जाओ या कश्मीर छोड़ दो। हिन्दू परिवारों को रातों-रात अपने घर छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया। पुष्कर नाथ पंडित और उनके परिवार पर भी आतंकवादियों का कहर टूट पड़ा। गाना: "हम देखेंगे" – दर्द और त्रासदी को दर्शाने वाला गीत। बर्बरता और पलायन फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे कश्मीरी पंडितों को उनके ही घरों से निकाल दिया गया और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। निर्दोष बच्चों और महिलाओं को मौत के घाट उतार दिया गया, और उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लिया गया। पुष्कर नाथ पंडित के बेटे को सरेआम गोलियों से भून दिया गया और उनकी बहू का बलात्कार हुआ। हजारों परिवार अपने ही देश में शरणार्थी बन गए और उन्हें टेंट्स में रहने को मजबूर होना पड़ा। संवाद: "हम अपने ही देश में शरणार्थी क्यों बने?" वर्तमान में कृष्णा का सत्य की खोज वर्तमान में, कृष्णा को पढ़ाई के दौरान यह सिखाया गया था कि कश्मीर का मसला एक राजनीतिक संघर्ष था, न कि धार्मिक या जातीय हिंसा। लेकिन जब वह कश्मीर जाता है और अपने दादा के अनुभवों को जानता है, तो उसकी पूरी सोच बदल जाती है। उसे महसूस होता है कि वर्षों तक सच को छिपाया गया था और इस त्रासदी को राजनीतिक कारणों से दबा दिया गया था। वह अपनी सोच में बदलाव लाता है और इस सच को दुनिया के सामने लाने की कसम खाता है। संवाद: "इतिहास वो नहीं है, जो हमें सिखाया गया, इतिहास वो है जो हमने जिया है!" क्लाइमैक्स – न्याय की खोज कृष्णा अपने दादा की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए उनके अस्थि-विसर्जन के लिए कश्मीर जाता है। उसे एहसास होता है कि इस समुदाय को न्याय नहीं मिला और उनकी त्रासदी को सिर्फ एक "पॉलिटिकल एजेंडा" के रूप में इस्तेमाल किया गया। अंत में, वह अपनी विचारधारा बदलकर अपने समुदाय के लिए लड़ने का फैसला करता है। संवाद: "सच को कोई कितना भी छिपाने की कोशिश करे, एक न एक दिन वो बाहर आ ही जाता है!" फिल्म की खास बातें 1. अनुपम खेर की करियर-बेस्ट परफॉर्मेंस उनका किरदार पुष्कर नाथ पंडित एक भावनात्मक केंद्रबिंदु था, जिसने दर्शकों को रुला दिया। उनके डायलॉग्स और एक्सप्रेशंस ने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को बेहद प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। 2. विवेक अग्निहोत्री का सशक्त निर्देशन फिल्म को पूरी तरह से दस्तावेजों, साक्षात्कारों और शोध पर आधारित बनाया गया। उन्होंने फिल्म को बिना ज्यादा मेलोड्रामा के एक डॉक्यूमेंट्री-जैसा प्रभाव दिया। 3. ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर करना फिल्म ने 1990 के पलायन की वास्तविक घटनाओं को बिना किसी संशोधन के प्रस्तुत किया। यह दर्शाता है कि कैसे प्रशासन, मीडिया और राजनीति ने इस त्रासदी पर चुप्पी साधी। 4. शानदार सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की लोकेशंस, खासकर कश्मीर के बर्फीले पहाड़ और उजड़े घर, माहौल को और भी प्रभावशाली बनाते हैं। संगीत और बैकग्राउंड स्कोर भावनाओं को और भी गहराई से महसूस कराते हैं। 5. राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म देना फिल्म न
Movies Philosophy