नजर भर देख ले मुझको शरण में तेरी आया हूं
कोई माता पिता बंधु सहायक है नहीं मेरा
काम और क्रोध दुश्मन से बहुत दिन से सताया हूं
भुलाकर याद को तेरी पड़ा दुनिया के लालच में
माया के जाल में चारों तरफ से मैं फंसाया हूं
कर्म सब नीचे हैं मेरे तुम्हारा नाम है पावन
तार संसार सागर से गहन जल में डुबाया हूं
छुड़ाकर जन्म बंधन से चरण में राख ले अपने
वो ब्रह्मानंद में मन में यही आशा लगाया हूं
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
शरण में रख दिया जब माथ तो किस बात की चिंता
शरण में रख दिया जब माथा तो किस बात की चिंता
किया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंता
किया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंता
किया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंता
किया करते हो तुम दिन रात क्यों बिन बात की चिंता
तेरे स्वामी,
तेरे स्वामी को रहती है, तेरे हर बात की चिंता
तेरे स्वामी को रहती है, तेरे हर बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
न खाने की, न पीने की, न मरने की, न जीने की
न खाने की, न पीने की, न मरने की, न जीने की
न खाने की, न पीने की, न मरने की, न जीने की
रहे हर स्वास
रहे हर स्वास में भगवान के प्रिय नाम की चिंता
रहे हर स्वास में भगवान के प्रिय नाम की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
विभीषण को अभय वर दे किया लंकेश पल भर में
विभीषण को अभय वर दे किया लंकेश पल भर में
विभीषण को अभय वर दे किया लंकेश पल भर में
उन्ही का हा, उन्ही का हा
उन्ही का हा कर रहे गुण गान तो किस बात की चिंता
उन्ही का हा कर रहे गुण गान तो किस बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
हुई भक्त पर किरपा बनाया दास प्रभु अपना
हुई भक्त पर किरपा बनाया दास प्रभु अपना
हुई भक्त पर किरपा बनाया दास प्रभु अपना
उन्ही के हाथ,
उन्ही के हाथ में अब हाथ तो किस बात की चिंता
उन्ही के हाथ में अब हाथ तो किस बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
हमारे साथ श्री रघुनाथ तो किस बात की चिंता
शरण में रख दिया जब माथ तो किस बात की चिंता
शरण में रख दिया जब माथ तो किस बात की चिंता
किस बात की चिंता, अरे किस बात की चिंता
मैं तो उन संतन का दास जिन्होंने मन मार लिया
मन मारा तन बस करा रे हुवा भरम सब दूर
बाहर तो कछु दीखत नाहीं अन्दर चमके नूर
काम क्रोध मद लोभ मार के मिटी जगत की आस
बलिहारी उन संत की रे प्रकट करा है प्रकास
आपो त्याग जगत में बैठे नहीं किसी से काम
उनमें तो कछु अंतर नाही संत कहो चाहे राम
नरसीजी के सतगरू स्वामी दिया अमीरस पाय
एक बूंद सागर में मिल गयी क्या तो करेगा जमराज
साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे पैगम्बर मरिहैं
मरि हैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी
चंदा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहैं धरणि आकासा
चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं
इन्हूं की का आसा
नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं
मरि हैं सहज अठ्ठासी
तैंतीस कोट देवता मरि हैं
बड़ी काल की बाजी
नाम अनाम अनंत रहत है
दूजा तत्व न होइ
कहत कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो ना कोई
siya ram jay ram jay jay ram
Nahi chale unke ghar rishwat nahi chale chalaki.....
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर, नाग नथइया ।
कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो।
आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
राजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे।
कटि किंकिणी काछनी काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो।
अका बका कागासुर मार्यो॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई।
मूसर धार वारि वर्षाई॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो।
गोवर्धन नख धारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥
कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा।
सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहार्यो।
कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।
उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये षट दश सहसकुमारी॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा।
जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो।
भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥
दीन सुदामा के दुख टार्यो।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्यो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखी प्रेम की महिमा भारी।
ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
भारत के पारथ रथ हांके।
लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।
भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी।
शालीग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो।
उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करि तत्काला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहि वसन बने नंदलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हइया।
डूबत भंवर बचावइ नइया॥
'सुन्दरदास' आस उर धारी।
दया दृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै।
बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥
Om namo bhavate vasudevay vasudevay hari vasudevay
This is another master piece by Ankit Batra
जिस सुख की चाहत में तू, दर दर को भटकता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है अनमोल है हरपल, तेरी जिंदगानी का, कब अंत हो जाए, तेरी कहानी का, जिस पावन गंगाजल से, जीवन ये सुधरता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है।।
जैसे भरा पानी, सागर में खारा है, वैसे भरा दुःख से, जीवन हमारा है, जिस अमृत को पिने को, संसार तरसता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है।।
ना कर भरोसा तू, ‘सोनू’ दीवाने पर, तू देख ले जाकर, इसके ठिकाने पर, वो सावन जो धरती की, तक़दीर बदलता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है जिस सुख की चाहत में तू, दर दर को भटकता है, वो श्याम के मंदिर में, दिन रात बरसता है, जिस सुख की चाहत में तु, दर दर को भटकता है।।
Ankit batra has sung this song so beautifully listen to it.