आज की गुफ्तुगू गोपाल दस नीरज की तरफ से। सुनिए उनकी रचना छिप छिप अश्रु बहाने वालों और उनके जीवन के बारे मे। और सुनिए एक मज़ेदार किस्सा जब नीरज को डाकू मान सिंह, बीहड़ के जंगलों में अपहरण कर के ले गया था।Yeh Kavita un sab logon ke liye hain jo mushkil samay se gujar rahe hain aur shayad haunsala kho chuke hain. Yek Kavita ek haunsala aur motivation deti hai.
Yeh Kavita un sab logon ke liye hain jo mushkil samay se gujar rahe hain aur shayad haunsala kho chuke hain. Yek Kavita ek haunsala aur motivation deti hai.
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालोंकुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है! Doston, jeevan main kabhi kisi mod par nirasha ka saamna karna pada hai, to apni motivation , apni drive , apni jeene ki iccha ko mat khoye.आत्मा के सौंदर्य का शब्द-रूप है काव्यमानव होना भाग्य है, कवी होना सौभाग्य।
#hindikavita #urdushayari #kavita #shayari
Original Poet - Gopal Das Neeraj
आज की गुफ्तुगू गोपाल दस नीरज की तरफ से। सुनिए उनकी रचना छिप छिप अश्रु बहाने वालों और उनके जीवन के बारे मे। और सुनिए एक मज़ेदार किस्सा जब नीरज को डाकू मान सिंह, बीहड़ के जंगलों में अपहरण कर के ले गया था।Yeh Kavita un sab logon ke liye hain jo mushkil samay se gujar rahe hain aur shayad haunsala kho chuke hain. Yek Kavita ek haunsala aur motivation deti hai.छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ लुटाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
Yeh Kavita un sab logon ke liye hain jo mushkil samay se gujar rahe hain aur shayad haunsala kho chuke hain. Yek Kavita ek haunsala aur motivation deti hai.सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है! Doston, jeevan main kabhi kisi mod par nirasha ka saamna karna pada hai, to apni motivation , apni drive , apni jeene ki iccha ko mat khoye.आत्मा के सौंदर्य का शब्द-रूप है काव्यमानव होना भाग्य है, कवी होना सौभाग्य।
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आज की गुफ्तुगू गुलज़ार साहब की तरफ से। सुनिए उनकी रचना पहाड़ और उनके जीवन के बारे में @kavyaguftugu के साथ.
पिछली बार भी आया था
तो इसी पहाड़ ने
नीचे खड़ा था
मुझसे कहा था
तुम लोगों के कद क्यूँ छोटे रह जाते हैं ? आओ, हाथ पकड़ लो मेरा
पसलियों पर पांव रखो ऊपर आ जाओ
आओ ठीक से चेहरा तो देखूं?
तुम कैसे लगते हो
जैसे meri चींटियों को तुम अलग अलग पहचान नहीं सकते
मुझको भी तुम एक ही जैसे लगते हो सब
एक ही फर्क है
मेरी कोई चींटी जो बदन पर चढ़ जाए
तो चुटकी से पकड़ के फेक उसको मार दिया करते हो तुम
मैं ऐसा नहीं करता
मेरे समोवार देखो,
कितने उचें उचें कद हैं इनके
तुमसे सात गुना तो होंगे?
कुछ तो दस या बारह गुना हैं
उम्रे देखो उसकी तुम,
कितनी बढ़ी हैं, सदियों जिंदा रहते हैं
कह देते हो कहने को तुम
लेकिन अपने बड़ों की इज्ज़त करते नहीं तुम
इसीलिए तुम लोगों के कद
इतने छोटे रह जाते हैं
इतना अकेला नहीं हूँ मैं
तुम जितना समझते हो
तुम ही लोग ही भीड़ में रहकर भी
तनहा तनहा लगते हो
भरे हुए जब काफिले बादलों के जाते हैं
झप्पियाँ डाल के मिल कर जाते हैं मुझसे
दरिया भी उतरते हैं तो पांव छू के विदा होते हैं
मौसम मेहमान है आते हैं तो महीनों रह कर जाते हैं
अज़ल अज़ल के रिश्ते निभाते हैं
तुम लोगों की उम्रें देखता हूँ
देखता हूँ कितनी छोटी छोटी उम्रों में तुममिलते और बिछड़ते हो
ख्व्याइशें और उम्मीदें भी
बस छोटी छोटी उम्रों जितनी
इसीलिए क्या
तुम लोगों के कद इतने छोटे रह जाते हैं #hindikavita #urdushayari #kavita #shayariFollow the Kavya Guftugu on:Twitter: Kavya Guftugu (@KGuftugu) / Facebook: https://www.facebook.com/Gaurav-Sachdeva-Storyteller-182761851445Instagram: https://www.instagram.com/kavyaguftugu/email: kavyaguftugu@gmail.com
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This podcast is about reciting and narrating Poetry, Kavita, Nazm, Ghazal & Shayari majorly in Hindi & Urdu.
Content would be of legend poets/Author but voice and style is absolutely mine :)