Home
Categories
EXPLORE
True Crime
Comedy
Business
Society & Culture
History
Sports
Health & Fitness
About Us
Contact Us
Copyright
© 2024 PodJoint
00:00 / 00:00
Sign in

or

Don't have an account?
Sign up
Forgot password
https://is1-ssl.mzstatic.com/image/thumb/Podcasts124/v4/2b/83/e7/2b83e7de-f99b-dd17-a149-cd28d4047292/mza_12907053150098518720.jpg/600x600bb.jpg
Ek Geet Sau Afsane
Radio Playback India
164 episodes
3 hours ago
Every song has its own journey once it is released for the audiences but there are many back stories behind every song about which we generally remained unaware, so this series is for bringing to you all such back stories related to many favorite songs of our times, that are very much part of our life, stay tuned with Sujoy Chatterjee and Sangya Tandon for a weekly dose of Ek Geet Sau Afsane
Show more...
Music Commentary
Music
RSS
All content for Ek Geet Sau Afsane is the property of Radio Playback India and is served directly from their servers with no modification, redirects, or rehosting. The podcast is not affiliated with or endorsed by Podjoint in any way.
Every song has its own journey once it is released for the audiences but there are many back stories behind every song about which we generally remained unaware, so this series is for bringing to you all such back stories related to many favorite songs of our times, that are very much part of our life, stay tuned with Sujoy Chatterjee and Sangya Tandon for a weekly dose of Ek Geet Sau Afsane
Show more...
Music Commentary
Music
Episodes (20/164)
Ek Geet Sau Afsane
तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी हैं वर्ष 2024 की फ़िल्म ’तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ का शीर्षक गीत। राघव, असीस कौर और तनिष्क बागची की आवाज़ें; नीना माथुर और तनिष्क बागची के बोल, तथा राघव व तनिष्क बागची का संगीत। फ़िल्म की अजीब-ओ-ग़रीब कहानी के लिए गायक-संगीतकार राघव के दो दशक पुराने इस गीत के बोल कैसे सार्थक हुए? क्या सम्बन्ध है राघव का इस गीत के गीतकार नीना माथुर के साथ? राघव द्वारा रचे मूल गीत के बनने की क्या कहानी है? उस गीत के साथ इस फ़िल्मी संस्करण के बीच कैसी समानताएँ व अन्तर हैं? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
15 minutes 26 seconds

Ek Geet Sau Afsane
मिलाते हो उसी को ख़ाक में

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : रचिता देशपांडे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी हैं वर्ष 1928 में रेकॉर्ड और जारी की हुई ग़ैर-फ़िल्मी ग़ज़ल - "मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है"। पियारा साहेब की आवाज़। कलाम है दाग़ देहलवी का। मौसिक़ी पियारा साहेब की ही। इस ग़ज़ल के बहाने जानें भूले बिसरे गायक पियारा साहेब की ज़िन्दगी और उनकी गुलुकारी के बारे में। साथ ही दाग़ देहलवी की शाइरी की ख़ासियत पर एक नज़र। इस ग़ज़ल के तमाम शेरों को इस अंक में सुनते हुए महसूस कीजिए दाग़ की लेखनी की आधुनिक शैली को। जिस रेकॉर्डिंग सत्र में यह ग़ज़ल रेकॉर्ड हुई थी, उसी सत्र में पियारा साहेब ने एक अन्य ग़ज़ल भी रेकॉर्ड की थी जिसके आधार पर 1988 की फ़िल्म ’शूरवीर’ के लिए गीतकार एस. एच. बिहारी ने एक गीत लिखा था। कौन सी थी वह ग़ज़ल? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
13 minutes 28 seconds

Ek Geet Sau Afsane
मैं हूँ तेरे लिए, तू है मेरे लिए

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : शिवम मिश्रा

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1983 की फ़िल्म ’एक बार चले आओ’ का गीत "मैं हूँ तेरे लिए, तू है मेरे लिए"। आशा भोसले और नितिन मुकेश की आवाज़ें, अनजान के बोल, और चाँद परदेसी का संगीत। फ़िल्म के गीतकारों के इर्द-गिर्द किस तरह के संशय विद्यमान हैं? कितना जानते हैं हम कमचर्चित संगीतकार चाँद परदेसी के बारे में? लोकप्रिय होने के सारे गुणों के होते हुए इस गीत में क्या कमी रह गई? आख़िर क्या थी इस फ़िल्म की कहानी? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
14 minutes 45 seconds

Ek Geet Sau Afsane
छोड़ आकाश को सितारे, ज़मीं पर आये

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : श्री शर्मा

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1932 की फ़िल्म ’माया मच्छिन्द्र’ का गीत "छोड़ आकाश को सितारे, ज़मीं पर आये"। गोविन्दराव टेम्बे की आवाज़, कुमार के बोल, और गोविन्दराव टेम्बे का संगीत। सवाक फ़िल्मों के दौर के शुरू-शुरू में बनने वाली इस फ़िल्म के तमाम पहलुओं के बारे में जानें। गोविन्दराव टेम्बे के कलात्मक सफ़र की दास्तान भी है आज के इस अंक में। साथ ही प्रस्तुत गीत से सम्बधित कुछ बातें। ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
12 minutes 34 seconds

Ek Geet Sau Afsane
आयी बरखा बहार, पड़े बून्दन फुहार

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : अनुज श्रीवास्तव

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1951 की फ़िल्म ’शोख़ियाँ’ का गीत "आयी बरखा बहार, पड़े बून्दन फुहार"। लता मंगेशकर, प्रमोदिनी देसाई और साथियों की आवाज़ें, किदार शर्मा के बोल, और जमाल सेन का संगीत। बड़ी बजट की फ़िल्म होते हुए भी किदार शर्मा ने संगीत का भार अनुभवहीन नये संगीतकार जमाल सेन को क्यों सौंपा? फ़िल्म के गीत-संगीत से जुड़ी क्या-क्या उल्लेखनीय बातें रहीं? प्रस्तुत गीत का फ़िल्म में कैसा अवस्थान है? यह गीत किस दृष्टि से ट्रेण्डसेटर रहा? कितना जानते हैं आप गायिका प्रमोदिनी देसाई को? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
15 minutes 36 seconds

Ek Geet Sau Afsane
इस काल काल में हम तुम करें धमाल

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 2005 की फ़िल्म ’काल’ का गीत "इस काल काल में हम तुम करें धमाल"। कुणाल गांजावाला, कैरालिसा मोन्टेरो, रवि खोटे और सलीम मर्चैण्ट की आवाज़ें, शब्बीर अहमद के बोल, और सलीम-सुलेमान का संगीत। इस फ़िल्म के गीतों के फ़िल्मांकन और फ़िल्म में उनके अवस्थान की क्या ख़ासियत है? इस फ़िल्म के गीत-संगीत के लिए कैसे चुनाव हुआ सलीम-सुलेमान और शब्बीर अहमद का? इस आइटम नम्बर के लिए सारी सम्भावनायें सुखविन्दर सिंह की होने के बावजूद कुणाल गांजावाला को शाहरुख़ ख़ान के प्लेबैक के लिए क्यों चुना गया? गीत में अतिरिक्त आवाज़ों की क्या भूमिका है? इस गीत के लिए शाहरुख़ ख़ान को कैसी तैयारियाँ करनी पड़ी? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
14 minutes 12 seconds

Ek Geet Sau Afsane
क्या हमने बिगाड़ा है, क्यों हमको सताते हो

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : श्वेता पांडेय

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1944 की फ़िल्म ’भँवरा’ का गीत "क्या हमने बिगाड़ा है, क्यों हमको सताते हो"। कुन्दनलाल सहगल और अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ें, किदार शर्मा के बोल, और खेमचन्द प्रकाश का संगीत। इस गीत के बहाने जाने इस फ़िल्म के कॉमिक रोमान्टिसिज़्म के बारे में। फ़िल्म के गीतों के गायक कलाकारों के नामों में किस प्रकार का संशय विद्यमान है? इस गीत में एक तीसरी आवाज़ किस गायिका की समझी जाती है? कैसी बड़ी ग़लती के. एल. सहगल ने इस गीत में कर डाली है? तीन हल्के-फुल्के शेरों के माध्यम से किदार शर्मा ने छेड़-छाड़ के प्रसंग को किस प्रकार व्यक्त किया है? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
14 minutes 44 seconds

Ek Geet Sau Afsane
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : सुमेधा अग्रश्री

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1994 की फ़िल्म ’1942: A Love Story’ का गीत "कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो"। गीत के दो संस्करण हैं, ए क कुमार सानू की आवाज़ में, और एक लता मंगेशकर की आवाज़ में। जावेद अख़्तर के बोल, और राहुल देव बर्मन का संगीत। पंचम द्वारा बनाये गये इस गीत की धुन को सुन कर विधु विनोद चोपड़ा क्यों बौखला गए थे? इस गीत की रेकॉर्डिंग के बाद आर. डी. बर्मन ने कुमार सानू पर गालियों की बारिश क्यों की? गीत के female version को लेकर किस तरह के संशय और विवाद उत्पन्न हुए? कविता कृष्णमूर्ति के साथ यह गीत किस तरह से जुड़ा हुआ है? ये सब आज के इस अंक में?

Show more...
1 year ago
15 minutes 17 seconds

Ek Geet Sau Afsane
चले आना सनम, उठाये क़दम

परिकल्पना : सजीव सारथी ।।

आलेख : सुजॉय चटर्जी ।।

स्वर : रचिता देशपांडे ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।

नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला।

दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1963 की फ़िल्म ’देखा प्यार तुम्हारा’ का गीत " चले आना सनम, उठाये क़दम"। आशा भोसले की आवाज़, मजरूह सुल्तानपुरी के बोल,और राज रतन का संगीत। क्या है इस फ़िल्म का पार्श्व, इसकी विषयवस्तु, इससे जुड़े लोग और कलाकार? फ़िल्म की कहानी में किस तरह यह गीत फ़िट होता है? इस गीत के बहाने जाने इस गीत व इस फ़िल्म से जुड़ी वो बातें जिन पर शायद अब वक़्त की धूल चढ़ चुकी है।

 

Show more...
1 year ago
14 minutes 18 seconds

Ek Geet Sau Afsane
ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी है साल 1915 में रेकॉर्ड की हुई ग़ज़ल "ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो, मुबारक हो"। जानकी बाई की आवाज़। उन्हीं का यह कलाम है और उन्हीं की मौसिक़ी। इस मुबारकबादी मुजरे के बहाने जाने ग्रामोफ़ोन रेकॉर्डिंग के शुरुआती मशहूर कलाकारों में एक, जानकी बाई के जीवन की कहानी। इस ग़ज़ल की रेकॉर्डिंग से चार वर्ष पहले ब्रिटिश शासन के किस महत्वपूर्ण समारोह के परिप्रेक्ष्य में इसकी रचना करवाई गई थी? उस सजीव प्रस्तुति में जानकी बाई के साथ किस मशहूर गायिका ने इस ग़ज़ल में आवाज़ मिलायी थी? क्यों जानकी बाई को "छप्पन-छुरी" वाली कहा जाता है? इस रेकॉर्ड के तीस साल बाद, किस फ़िल्मी गीत में इस ग़ज़ल के मतले की पहली लाइन का प्रयोग गीतकार अहसान रिज़्वी ने किया? ये सब आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
14 minutes 5 seconds

Ek Geet Sau Afsane
शकील बदायूंनी के लिखे तीन होली गीत

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक ख़ास है। ख़ास इसलिए कि यह सप्ताह होली त्योहार का सप्ताह है। और जब बात होली की चलती है, तब बात आती है हुड़दंग की, एक दूसरे पर रंग डालने की, जी भर के झूमने-गाने और ख़ुशियाँ मनाने की। और इन पहलुओं और भावनाओं को साकार करने में हमारी फ़िल्मी गीतों का ख़ास योगदान रहा है। बोलती फ़िल्मों के शुरुआती दौर से ही फ़िल्मी होली गीतों की अपनी अलग जगह रही है, अपना अलग पहचान रहा है। और होली गीतों के इस इतिहास को ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक कड़ी में समेटना असम्भव है। इसलिए आज के इस विशेषांक के लिए हम फ़िल्मी होली गीतों के समुन्दर में से चुन लाये हैं केवल एक ही गीतकार, शकील बदायूंनी के लिखे तीन बेहतरीन होली गीतों से सम्बन्धित कुछ बातें।

Show more...
1 year ago
13 minutes 13 seconds

Ek Geet Sau Afsane
भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शहनीला नजीब

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों,आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1943 की फ़िल्म ’राम राज्य’ का गीत "भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं"। राम आप्टे और मधुसुदन जानी की आवाज़ें, रमेश गुप्त के बोल, और शंकरराव व्यास का संगीत। ’प्रकाश पिक्चर्स’ के स्थापक विजय भट्ट और शंकरभाई भट्ट का किस तरह से संगीतकार शंकरराव व्यास से सम्पर्क हुआ और कैसे ये इस बैनर की धार्मिक व पौराणिक फ़िल्मों के संगीतकार बने? इस गीत के पार्श्वगायकों को लेकर किस तरह का भ्रम वर्षों तक विद्यमान रहा और इसका कारण क्या था? अस्सी के दशक में यह भ्रम कैसे दूर हुआ? फ़िल्म में इस गीत का अवस्थान और इसका पूरा वृत्तान्त, आज के इस अंक में। साथ ही जानिये कि इसी गीत से मिलता-जुलता रामानन्द सागर द्वारा रचित टीवी धारावाहिक ’रामायण’ में वह प्रसिद्ध गीत कौन सा था?

Show more...
1 year ago
14 minutes 43 seconds

Ek Geet Sau Afsane
चिट्ठी आयी है वतन से...

परिकल्पना : सजीव सारथी ।।

आलेख : सुजॉय चटर्जी ।।

वाचन : रचिता देशपांडे ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।


नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला।

दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1986 की फ़िल्म ’नाम’ का गीत "चिट्ठी आयी है वतन से चिट्ठी आयी है"। पंकज उधास और साथियों की आवाज़ें, आनन्द बक्शी के बोल, और लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल का संगीत। निर्माता राजेन्द्र कुमार को पंकज उधास से इस फ़िल्म में यह आइटम गीत गवाने का ख़याल कैसे आया? पंकज उधास ने इस गीत को गाने का न्योता स्वीकारते हुए राजेन्द्र कुमार से माफ़ी क्यों मांगी? इस गीत की रेकॉर्डिंग करते समय संगीतकार लक्ष्मीकान्त ने फ़िल्मी गीत के रेकॉर्डिंग तकनीक की कौन सी प्रचलित परम्परा को तोड़ी? सिबाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बावजूद इस गीत को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार क्यों नहीं मिल पाया? BBC Radio की ओर से इस गीत को कैसा सम्मान मिला? ये सब, आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
14 minutes 18 seconds

Ek Geet Sau Afsane
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...

राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...फिल्म : नमकीन

परिकल्पना : सजीव सारथी ।।

आलेख : सुजॉय चटर्जी।।

वाचन : शुभ्रा ठाकुर ।।

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।।


नमस्कार दोस्तों,

’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1982 की फ़िल्म ’नमकीन’ का गीत "राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं"। किशोर कुमार की आवाज़, गुलज़ार के बोल, और राहुल देव बर्मन का संगीत।

क्या थी ’नमकीन’ की कहानी और कैसे यह गीत रचा-बसा है इस कहानी में? नवाब वाजिद अली शाह के किस शेर का आधार गुलज़ार ने इस गीत के मुखड़े को बनाया? भारत के स्वाधीनता संग्राम के सन्दर्भ में इस शेर का क्या महत्व रहा है? और किन किन फ़िल्मी गीतकारों ने भी इस शेर का सहारा लिया? पंचम ने अपने किस पुराने गीत की एक धुन का प्रयोग इस गीत के अन्तराल संगीत में किया? इस गीत के साथ इस फ़िल्म के दो अलग अन्त की क्या विडम्बना रही है? ये सब, आज के इस अंक में।

 

Show more...
1 year ago
15 minutes 29 seconds

Ek Geet Sau Afsane
ये ज़िन्दगी उसी की है...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : शुभ्रा ठाकुर

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1953 की फ़िल्म ’अनारकली’ का गीत "ये ज़िन्दगी उसी की है, जो किसी का हो गया"। लता मंगेशकर की आवाज़, राजेन्द्र कृष्ण के बोल, और सी. रामचन्द्र का संगीत। शुरू-शुरू में संगीतकार बसन्त प्रकाश इस फ़िल्म के संगीतकार होने के बावजूद बीच में ही संगीतकार क्यों बदलना पड़ा? इस गीत के साथ ’मुग़ल-ए-आज़म’ फ़िल्म के "जब प्यार किया तो डरना क्या" गीत की तुलना में कौन सी ग़लत धारणा आम लोगों में बनी हुई है? प्रस्तुत गीत के साथ फ़िल्म के क्लाइमैक्स सीन तथा ’मुग़ल-ए-आज़म’ फ़िल्म के क्लाइमैक्स के बीच कैसा अन्तर है? उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान और पंडित जसराज के बीच इस गीत के संदर्भ में कौन सी दिलचस्प घटना मशहूर है? ये सब, आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
16 minutes 32 seconds

Ek Geet Sau Afsane
क्या मौसम आया है...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : जया शुक्ला

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1993 की फ़िल्म ’अनाड़ी’ का गीत "क्या मौसम आया है"। साधना सरगम और उदित नारायण की आवाज़ें, समीर के बोल, और आनन्द-मिलिन्द का संगीत। क्या है इस फ़िल्म के निर्माण का पार्श्व? नायक-नायिका पर फ़िल्माये गए इस ख़ुशनुमा युगल गीत में प्रेम प्रसंग क्यों नहीं है? गीतकार समीर ने स्थान-काल-पात्र को ध्यान में रखते हुए इस गीत को किस तरह पूर्णता प्रदान की? इस फ़िल्म में नायिका के लिए उस दौर की चर्चित पार्श्वगायिकाओं में से साधना सरगम का ही चुनाव क्यों हुआ? ये सब, आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
15 minutes 23 seconds

Ek Geet Sau Afsane
कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे...

परिकल्पना : सजीव सारथी

आलेख : सुजॉय चटर्जी

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1961 की फ़िल्म ’भाभी की चूड़ियाँ’ का गीत "कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे"। आशा भोसले और मुकेश की आवाज़ें, पंडित नरेन्द्र शर्मा के बोल, और सुधीर फड़के का संगीत। फ़िल्म की कहानी के प्रवाह में क्या है इस गीत की भूमिका? इस गीत के सन्दर्भ में यह फ़िल्म अपनी मूल मराठी फ़िल्म से किस प्रकार भिन्न है? पंडित नरेन्द्र शर्मा और सुधीर फड़के के कौन से आयाम इस गीत में झलक पाते हैं? ये सब, आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
16 minutes 17 seconds

Ek Geet Sau Afsane
कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : रीतेश खरे

प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2001 की फ़िल्म ’लज्जा’ का गीत "कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ"। लता मंगेशकर की आवाज़, प्रसून जोशी के बोल, और इलैयाराजा का संगीत। फ़िल्म में समीर और अनु मलिक गीतकार-संगीतकार होते हुए भी इस गीत के लिए अलग गीतकार-संगीतकार की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? क्यों चुनाव हुआ प्रसून जोशी और इलैयाराजा का? इस गीत की रेकॉर्डिंग से जुड़ी कैसी यादें हैं प्रसून जोशी की? लता मंगेशकर के आख़िरी दिनों में वे प्रसून जोशी के साथ एक गीत पर काम कर रही थीं। वह कौन सा गीत था और उसके साथ फ़िल्म ’लज्जा’ के इस गीत की क्या समानता है? ये सब, आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
14 minutes 55 seconds

Ek Geet Sau Afsane
आशा भोसले के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ

आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : दिलीप बैनर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक है ख़ास क्योंकि आज हम आ पहुँचे हैं इस सीरीज़ के 150-वें अंक पर। यानी कि आज है ’एक गीत सौ अफ़साने’ का हीरक-स्वर्ण-जयन्ती अंक। इस अंक को ख़ास बनाने के लिए हमने चुना है संगीतकार ओ. पी. नय्यर साहब को जिनकी 28 जनवरी को ण्यतिथि थी। जी नहीं, हम उनके संगीतबद्ध किसी गीत के बनने की कहानी नहीं सुनाने जा रहे हैं आज। ऐसा तो हम अपने सामान्य अंकों में करते ही हैं। आज के इस ख़ास मौके के लिए हमने चुना है नय्यर साहब के गीतों का एक ख़ास पहलू। दोस्तों, ओ. पी. नय्यर एक ऐसे संगीतकार हुए जो शुरु से लेकर अन्त तक अपने उसूलों पर चले, और किसी के भी लिए उन्होंने अपना सर नीचे नहीं झुकाया, फिर चाहे उनकी हाथ से फ़िल्म चली जाए या गायक-गायिकाएँ मुंह मोड़ ले। करियर के शुरुआती दिनों में ही एक ग़लत फ़हमी की वजह से उन्होंने लता मंगेशकर से किनारा कर लिया था। और अपने करियर के अन्तिम चरण में अपनी चहेती गायिका आशा भोसले से भी उन्होंने सारे संबंध तोड़ दिए। आइए आज हम नज़र डाले उन पार्श्वगायिकाओं द्वारा गाये नय्यर साहब के गीतों पर जो बने आशा भोसले से अलग होने के बाद।ye nahi padhna hai

Show more...
1 year ago
33 minutes 21 seconds

Ek Geet Sau Afsane
मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां...

आलेख : सुजॉय चटर्जी

वाचन : मातृका

प्रस्तुति : संज्ञा टंडननमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1955 की फ़िल्म ’आब-ए-हयात’ का गीत "मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां"। हेमन्त कुमार की आवाज़, हसरत जयपुरी के बोल, और सरदार मलिक का संगीत। किस तरह से फ़िल्मिस्तान ने इस फ़िल्म की योजना बनाई? फ़िल्म के निर्देशक, संगीतकार और गीतकार चुनने के पीछे कौन सी रणनीति अपनायी गई? किस तरह से हसरत जयपुरी ने कहानी के निचोड़ और नायक के चरित्र व व्यक्तित्व को साकार किया गीत के तीनों अन्तरों में? ’आब-ए-हयात’ जुमले का क्या इतिहास है? फ़िल्मिस्तान की अन्य फ़िल्म ’शबिस्तान’ के साथ ’आब-ए-हयात’ की क्या समानता है? ये सब, आज के इस अंक में।

Show more...
1 year ago
15 minutes 32 seconds

Ek Geet Sau Afsane
Every song has its own journey once it is released for the audiences but there are many back stories behind every song about which we generally remained unaware, so this series is for bringing to you all such back stories related to many favorite songs of our times, that are very much part of our life, stay tuned with Sujoy Chatterjee and Sangya Tandon for a weekly dose of Ek Geet Sau Afsane