क्या आप कभीभी सोच सकते हो कि हमारे शरीरमे जो ये स्किन का लेयर है,चमड़ी की जो परत है वो इतनी मजबूत हो जाये कि किसीभी तरह टूट न सके।एक अभेद्य अटूट किल्ला हो जाये जो कि कवच की भाती पूरे शरीर को कवर करके रखे कि छोटीसी सुई घुसभी न पाए।
जी दोस्तो में एक ऐसे इंसान को जानता हूँ,जिस पर स्वयं सूर्यदेव का आशीर्वाद ऐसा था।......जी है हम बात कर रहे है क्षत्रिय होने के बावजूद जो सूतपुत्र से जाने गए,पूरी क्षमता होने के बावजूद जिसको अपनी क्षमता पे सिद्ध होने से वंचित रखा गया,महाभारत एक ही केवल ऐतिहासिक पात्र जिसे स्वयं श्रीकृष्ण ने अग्निदाह दिया,जन्मसे ज्येष्ठ कोंन्तेय पर हमेशा बुलाया गया राधेय,साक्षात सूर्यदेव के पुत्र रश्मिरथी अंगराज दिग्विजयी कर्ण।जीवनमे हर समय कहि न कही जिनको नीचा दिखाया गया,हीन महसूस करवाया गया।फिरभी खुद पर श्रद्धा और उम्मीद के साथ सबकुछ बिना बोले करते गए।इतना यातनामय,वंचित,उपेक्षित जीवन जो पांडवो की विजयघोषणाको भी फीका बना देता है।मृत्युने भी जिसके सामने अपने हथियार डाल दिये और हार गई।मृत्यु के महाद्वार पर विजय पाने वाले कर्णकिअमरगाथा मृत्युंजय।.
में हु डॉ.सिद्धि दवे ओर आप देख रहे है,टॉप नोच बोस्ट्रिंग यानी कि केवल उपयोगी माहिती।
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