
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 46वें सर्ग में महर्षि कश्यप और उनकी पत्नी दिति के बीच संवाद तथा इंद्र द्वारा दिति के गर्भ का विभाजन वर्णित है।
1. दिति का वरदान माँगना
दिति, जो महर्षि कश्यप की पत्नी थीं, ने उनसे एक वीर पुत्र का वरदान माँगा, जो इंद्र को पराजित कर सके। वह अपने पुत्रों (हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष) की मृत्यु से दुखी थीं और चाहती थीं कि उनका होने वाला पुत्र इंद्र का वध करे। महर्षि कश्यप ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्हें व्रत का पालन करने के लिए कहा।
2. दिति का गर्भधारण और इंद्र की चिंता
दिति ने गर्भधारण किया और कठिन तपस्या में लीन हो गईं। यह सुनकर देवराज इंद्र चिंतित हो गए कि यदि यह पुत्र जन्म लेगा, तो वह उनके लिए घातक सिद्ध होगा। इंद्र ने एक योजना बनाई और सेवा के बहाने दिति के पास रहने लगे।
3. दिति का नियम भंग और इंद्र द्वारा गर्भ विभाजन
इंद्र ने दिति की सेवा करते हुए उचित अवसर की प्रतीक्षा की। एक दिन दिति थकान के कारण गहरी नींद में सो गईं और उनके व्रत का नियम भंग हो गया। यही समय देखकर इंद्र ने अपने वज्र से दिति के गर्भ को सात टुकड़ों में विभाजित कर दिया।
4. मरुतों का जन्म
जब इंद्र गर्भ को काट रहे थे, तब प्रत्येक भाग ने “मा रुदः” (मत रोओ) कहा। अंततः इन सात टुकड़ों से सप्त मरुत (पवन देवता) उत्पन्न हुए, जिन्हें इंद्र ने अपना मित्र बना लिया। जब दिति जागीं, तो उन्होंने इंद्र को देखा और उन्हें अपने गर्भ को विभाजित करने के लिए क्षमा कर दिया।
5. कथा का सार
यह कथा दर्शाती है कि कैसे इंद्र ने अपने भय के कारण दिति के गर्भ को काट डाला, लेकिन अंततः सप्त मरुत देवताओं के रूप में उत्पन्न हुए और इंद्र के सहायक बन गए। इस कथा में तपस्या, वरदान, भय, और नियति के तत्व प्रमुख हैं।