
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 50वें सर्ग में श्रीराम, लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र का मिथिला पुरी पहुंचने का वर्णन किया गया है। इस सर्ग में राजा जनक द्वारा अतिथियों का स्वागत और विश्वामित्र से उनका परिचय प्राप्त करने का प्रसंग है।
श्रीराम का मिथिला पुरी पहुंचना
अहल्या के उद्धार के पश्चात, श्रीराम, लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र मिथिला की ओर बढ़े। मिथिला नगरी अपनी समृद्धि, शांति और भव्यता के लिए प्रसिद्ध थी। जब वे नगर के समीप पहुंचे, तो जनकपुरी के नागरिक उनकी दिव्य आभा देखकर मोहित हो गए।
राजा जनक का स्वागत
राजा जनक को जब ज्ञात हुआ कि महान तपस्वी विश्वामित्र अपने साथ दो तेजस्वी राजकुमारों को लेकर आए हैं, तो वे स्वयं नगर के प्रमुखों और मंत्रियों के साथ उनका स्वागत करने पहुंचे। राजा जनक ने विश्वामित्र के चरण स्पर्श कर उनका अभिवादन किया और उचित आतिथ्य सत्कार किया।
विश्वामित्र से परिचय प्राप्त करना
राजा जनक ने विनम्रता से ऋषि विश्वामित्र से पूछा:
“महर्षि! ये दोनों दिव्य पुरुष कौन हैं, जिनकी आभा सूर्य और चंद्रमा के समान दमक रही है? ये अपने बल और तेज में अद्वितीय प्रतीत होते हैं। कृपया मुझे इनका परिचय दें।”
विश्वामित्र द्वारा परिचय
ऋषि विश्वामित्र ने राजा जनक को बताया:
• ये दोनों राजकुमार अयोध्या के महाराज दशरथ के पुत्र हैं।
• बड़े भाई का नाम श्रीराम है और छोटे भाई लक्ष्मण हैं।
• ये महाबलशाली, धर्मपरायण और विनम्र हैं।
• ये ताड़का, सुबाहु और मारीच जैसे राक्षसों का संहार कर चुके हैं।
• इन्हें मैं विशेष उद्देश्य से यहाँ लेकर आया हूँ, ताकि ये आपके धनुष-यज्ञ में भाग लें।
राजा जनक की प्रसन्नता
राजा जनक यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने श्रीराम और लक्ष्मण का स्वागत किया और उन्हें अपने महल में आदरपूर्वक ठहराया।
सर्ग का महत्व
यह सर्ग श्रीराम और लक्ष्मण के तेज, शौर्य और मर्यादा का परिचय कराता है। साथ ही, राजा जनक की धर्मनिष्ठा और ऋषि विश्वामित्र के प्रति उनका सम्मान भी दर्शाता है। यह कथा उस महत्त्वपूर्ण क्षण की भूमिका बांधती है, जब श्रीराम शिव के धनुष को उठाने और सीता स्वयंवर में भाग लेने वाले हैं।