
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 56वें सर्ग में महर्षि वशिष्ठ और राजा विश्वामित्र के बीच एक महत्वपूर्ण घटना का वर्णन मिलता है। इस प्रसंग में राजा विश्वामित्र अपने अहंकार और शक्ति के मद में महर्षि वशिष्ठ के ऊपर नाना प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते हैं, किंतु महर्षि वशिष्ठ अपने ब्रह्मदण्ड (ब्रह्मा का दिया हुआ एक दिव्य दण्ड) के माध्यम से सभी अस्त्रों को निष्फल कर देते हैं।
प्रसंग का सारांश:
1. विश्वामित्र का आगमन: राजा विश्वामित्र महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में आते हैं और महर्षि के दिव्य कामधेनु गाय नन्दिनी को पाने की इच्छा व्यक्त करते हैं।
2. नन्दिनी का आग्रह: विश्वामित्र नन्दिनी को बलपूर्वक ले जाने का प्रयास करते हैं, लेकिन नन्दिनी अपनी दिव्य शक्तियों से विश्वामित्र के सैनिकों को पराजित कर देती है।
3. दिव्यास्त्रों का प्रयोग: राजा विश्वामित्र क्रोधित होकर महर्षि वशिष्ठ के ऊपर अपने समस्त दिव्यास्त्रों का प्रयोग करते हैं, जिनमें अग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, वायवास्त्र, पर्वतास्त्र, पाशुपतास्त्र, और अन्य अनेक शक्तिशाली अस्त्र शामिल होते हैं।
4. ब्रह्मदण्ड की शक्ति: महर्षि वशिष्ठ अपने हाथ में ब्रह्मदण्ड धारण करते हैं। ब्रह्मदण्ड से निकली ब्रह्मतेज की शक्ति के आगे सभी दिव्यास्त्र निष्क्रिय हो जाते हैं।
5. विश्वामित्र की पराजय: सभी अस्त्र विफल हो जाने पर राजा विश्वामित्र हताश हो जाते हैं और यह समझ जाते हैं कि क्षत्रिय बल से ब्रह्मतेज के आगे कुछ नहीं कर सकते।
6. राजा का संकल्प: इस घटना से प्रेरित होकर राजा विश्वामित्र अपने क्षत्रिय धर्म का त्याग कर तपस्या के माध्यम से ब्रह्मर्षि बनने का संकल्प लेते हैं।
प्रसंग की शिक्षा:
इस प्रसंग से यह संदेश मिलता है कि भौतिक शक्ति और अस्त्र-शस्त्र की शक्ति से अधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक शक्ति और तप का बल होता है। महर्षि वशिष्ठ का ब्रह्मदण्ड ब्रह्मज्ञान और सत्य की शक्ति का प्रतीक है, जो सभी नकारात्मक शक्तियों को निष्क्रिय कर देता है।