
किसी अजीब सी खामोशी में डूबा शिविर… बर्फ़ की रज़ाई, मंद अलाव, टूटे-फटे हथियार — सब कुछ गहरी शांति और भारी बोझ लिए खड़ा था। बीचोंबीच बैठा अर्जुन राठौड़, विक्रम का लाल-पीला स्कार्फ हाथ में लिए, गहराई तक खोया हुआ।
सुबह की चाय के बाद हुई फॉलो‑अप पाट्रोलिंग में सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन बर्फ़ीली गलियों में अचानक घात लग गया। गांव घुलमर्ग के पास सैनिकों को अचानक जुर्मों से घेर लिया गया। गोलीबारी में सब उखड़ गए — अचानक एक रॉकेट ब्लास्ट, रास्ता बंद, और शिविर फंस गया।
लेकिन विक्रम ने अपनी जान की परवाह नहीं की — उसने ग्रेनेड फेंककर दुश्मन की घुसपैठ रोक दी। उसकी वीरता ने सबको सुरक्षित निकाला, लेकिन वह खुद वापस नहीं लौटा।
अर्जुन ने उसे ढूंढ़ा — ख़ून से लथपथ, मगर गरिमामय । अर्जुन की आवाज़ टूट गई:
“हम वादा किए थे… बताओ वो कहाँ चला गया?”
रात के अलाव के पास, अर्जुन ने अपना दिल खोला और कहा:
“कुछ लोग सब कुछ दे जाते हैं, बस अपनी एक विरासत छोड़ जाते हैं… और उसकी कहानी हमें ज़िंदा रखती है।”
कैप्टन राघव ने कहा:
“विक्रम ने अपनी जान दी ताक़त देने के लिए। उसकी याद हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देगी। सीखो, इस बलिदान से, और पूरा करो हमारा मकसद।”
और अर्जुन ने फैसला किया:
“हम जियेंगे. लड़ेंगे. और कभी नहीं भूलेंगे।”
❄️ इस कशमकश, दर्द और सीख से भरे अध्याय में सुनिए उस अदम्य आत्मा की कहानी, जिसने मौत का सामना किया — ताकि बाकी लोग ज़िंदा रह सकें।
🎧 “Losses and Lessons” के साथ जुड़ें — जहाँ बलिदान सिखाता है असली बहादुरी की परिभाषा।