
कुपवाड़ा—जहाँ बर्फ़ की चादर सुंदरता को ढकती है, लेकिन उसके नीचे छिपा होता है मौत का सन्नाटा। लेफ्टिनेंट अर्जुन राठौड़ के लिए यह ठंडी घाटी अब नया मोर्चा है—राजस्थान की तपती रेत से बिल्कुल अलग। हर सांस, हर कदम यहाँ सिर्फ़ ज़िंदा रहने की जंग है।
LOC के पास बने बेस कैंप में अर्जुन और उसके साथी सिपाही, सर्दी से जूझते हुए, दिन की शुरुआत अनुशासन और तैयारी के साथ करते हैं। दोस्ती में तंज कसता विक्रम, घबराया हुआ नया सिपाही साहिल और आदेशों से सख्त कप्तान राघव—हर एक किरदार जंग के इस रंगमंच का हिस्सा है।
लेकिन जल्द ही खामोशी टूटती है। एक घातक घात लगाकर हमला होता है। गोलियों की बौछार, बारूद की गंध और चीखती हुई चेतावनियाँ—अर्जुन और उसकी टुकड़ी मौत से दो-दो हाथ करती है। अर्जुन दुश्मन को पीछे धकेलते हुए अपने साथियों की जान बचाता है, साहिल को हिम्मत देता है, और एक जोखिम भरे कदम से मशीन गन का गढ़ नष्ट करता है।
पर हर जीत की कीमत होती है। जब लड़ाई के बाद बर्फ पर दो साथी सिपाही चुपचाप लेटे मिलते हैं, अर्जुन के दिल में एक सवाल उठता है—“क्या ये क़ीमत सही थी?” कप्तान राघव की बात उसे याद दिलाती है: “हमने मिशन पूरा किया, उनके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया।”
रात के अंधेरे में, जलती आग के पास, अर्जुन एक छोटा सा नोटबुक खोलता है और उन नामों को लिखता है जो लौटकर नहीं आए। यह सिर्फ़ एक सूची नहीं, बल्कि एक वादा है—कि वो उन्हें कभी नहीं भूलेगा।
उन्हीं ठंडी, चमकती तारों के नीचे अर्जुन एक खामोश कसम खाता है—यह तो सिर्फ़ शुरुआत है।
🎧 सुनिए एक सैनिक की बहादुरी, भाईचारे और अडिग जज़्बे की कहानी—जहाँ हर कदम मौत के साए में उठता है, लेकिन दिल में जिंदा रहता है एक उद्देश्य।