एक शहरी का गाँव - सर्वजीत
जब गाँव हाईवे से जुड़ जाएगा
कोई भूला-भटका, वापस आएगा
दौड़ता हुआ शहरी, ग़र थमेगा कभी
अपनी जड़ों को कैसे भुला पाएगा?
बड़े सपनों को आँखों में लिए
गाँव वाला शहर गया था कभी
छोटे बचपन की यादें संजोए
माँ का घर खाली हो गया तभी
इमारतों में बसा, पत्थर सा बन रहा
शहरी सालों बाद, अपने गाँव आता है
आम के बगीचे, दोस्तों की टोली, टपरी
एक दिन में शहरी, बरसों जी जाता है
चंद घरों की बस्ती, जंगल से जुड़ी
गाँव कहाँ शुरू, ख़त्म हो जाता है
अपनी है नहर, ज़मीन, टीले, आसमां
फ्लैट में क़ैद शहरी, रिहा हो जाता है
दो ढलानों के बीच, सुंदर घाटी की सैर
फूलों की तरह, शहरी खिल सा जाता है
अपना सा पड़ोस, जहाँ है खुशी की गूंज
समय धीमा, शहरी भी थम सा जाता है
जितनी है ज़रूरत, उतना क़ुदरत ने दिया
गाँव छोटी ख़ुशियों में खुश हो जाता है
जितना है पर्याप्त है, गुजर-बसर के लिए
थका-हारा शहरी, माँ के आँगन में सो जाता है
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