Visit Our Website : www.sarvajeet.in
Email at sarvajeetchandra@gmail.com
पहलगाम: एक अधूरी यात्रा - सर्वजीत
कौन बताए परिंदे को कि साथी अब बिछड़ गया,
नया नया सा, बसा हुआ घरौंदा अब उजड़ गया।
नाम पूछ कर, निहत्थों का किया गया जो नर संहार,
ये कैसा रण है दरिंदों, कैसा साहस, कैसा हाहाकार?
बिछड़े जीवन साथी, अधूरी कहानी, ख़्वाब छोड़ गए,
दिल में तराने, उमंग लिये मुसाफ़िर, ताबूतों में लौट गए।
इंसानियत का लहू आज फिर से वादी ने पिया है,
जन्नत जहन्नुम बन गयी, जब पहलगाम जला है।
पूछें क्या हम ज़िंदगी से, कि किसका ये क़सूर था?
जो फूल लेने आए थे, उन्हें काँटों ने क्यों चूर दिया?