Hindi poetry podcast hosted by Ragini Kumar.
Where Ragini shares warm, nostalgic heartfelt memories & some random yet memorable meetings.
Swift through the pages of her life's dairy, relive and re-create some emotional stories and poems.
The podcast attempts to take you to your happy place, and at the same time asks an important question; are we really living every moment or just finding an excuse to wake up another day?
So hop on this joyride that will take you down memory lane.
Tune in and turn a few pages of Zindagi Diaries with our host Ragini Kumar, starting from 10 December 2020.
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अब तक 19.. आप सभी ने दिया है ज़िन्दगी डायरीज़ के 19 पन्नों तक मेरा साथ। मैनें आपके साथ बांटी 19 कवितायें.... क्योंकि खुशी और ग़म में अक्सर 19-20 का ही फर्क रह जाता, सब कुछ होने के बाद भी खुशी नहीं मिलती, और कभी कभी थोड़ी सी खुशी में जीवन जिया जा सकता है।
जाते जाते एक अचानक से हुई मुलाक़ात, जिसे भूलना नामुमकिन हो गया... ऐसा क्या हुआ होगा इस मुलाक़ात में, सुनिये मेरे साथ… और मिलिए हमारी प्यारी सी छत वाली बिल्ली से।
प्यार की सुगंध से कैसे दूर रह सकती है ज़िन्दगी डायरीज़। इस स्वाद को अपने पन्नों पर न उतारा जाए, ऐसा मुमकिन नहीं। इस को चखना सभी के लिए ज़रूरी है, जीवनरूपी पकवान में नमक भले ही थोड़ा कम रह जाये, लेकिन प्रेम रस, भारी मात्रा में ही मिलाना चाहिए।
ज़रूरी नहीं की दर्द हर बार सतह पर दिखाई दे। और जो दिखाई नहीं देता उसका इलाज उतना ही मुश्किल हो जाता है। ऐसे दर्द, ऐसे दाग़ कभी कभी जीवन भर आपके साथ रहते हैं।
घर के दर-ओ-दीवार, हमारे जीवन के मूकदर्शक हैं। कितनी बातें, यादें, सिसकियां, दबी हुई ख़्वाहिश, सभी के गवाह यही तो हैं। कितना कुछ अपने ईंट के दिल में चुप चाप छुपाये, दबाये रखते हैं।
रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हम कई लोगों से मिलते हैं, कुछ हमारे दिल के क़रीब होते हैं तो कुछ अंजान मुलाकातें भी होती हैं। लेकिन क्या हो, अगर हमारे अंदर की आवाज़ ही हमारे लिए बिल्कुल अंजान हो।
उड़ान भले ही मासूम हो, लेकिन सपने आसमानी ज़रूर हो सकते हैं, ठान लिया जाये तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। ये कहावत भले ही हो, लेकिन इसमें जीवन का सत्य छुपा है।
अक्सर लोग अपनी सालगिरह पर जश्न मनाते हैं, दोस्तों के साथ, परिवार के साथ जुड़ते हैं, और खुशियां बांटते हैं। और क्यों न हो, साल में एक ही बार तो आता है हर किसी का जन्मदिन। लेकिन मैंने इस साल किया बिल्कुल कुछ अलग, अपने इस ख़ास दिन पर।
जब मन में खूब उमंग उछले, जो दिन रात सोचा हो वो सच हो जाए, तो वो ख़ुशी इज़हार करने से दिल डरता है, पर फिर भी कहने को मचलता है, तो कैसे सुलझेगी ये पहेली?.... किसी से न कहना!!
हर साल बरसात आती है, और हर बार एक बहुत अहम राज़ अपने साथ लेकर आती है। ये बरखा, जो साल भर सब कुछ समेट के रखती है, बरस बरस कर अपनी बात समझाती है... इस बार ज़रूर सुनिएगा।
बरसात के मौसम में, प्यार, इकरार, जुदाई, कुछ ज़्यादा ही तरसाते हैं, तुम्हारी याद भी सोने नहीं देती, न जाने क्या ज़्यादा तड़पाती है, ये बारिश, या तुम्हारी याद।
You can find Ragini Kumar on Twitter & Instagram: @kumaragini
ये कविता है नैनों से नैन मिलाने की। घंटो, दिनों, हफ़्तों तक उनकी एक झलक पाने की.... निगाहों से नज़दीकियां बढ़ाने की। जवानी के वो दिन भी क्या दिन थे। है ना ?
क्या सभी प्रेम कहानियों का ‘दी एन्ड’ खुशनुमा ही होता है? और जिन कहानियों का ‘दी एन्ड’ खुशनुमा नहीं होता, क्या उन प्रेम कहानियों में प्रेम नहीं होता या वो कहानियां सिर्फ़ किस्सा बन कर रह जाती है?
क्या कल से बहतर है आज की दुनिया, ये तो नहीं कह सकते, लेकिन बीते ज़माने से बिल्कुल अलग ज़रूर है। हमारी आज की दुनिया कुछ अलग ही तरीके से इमतिहान लेती है, जहां दूरी और नज़दीकीयों के मायने भी बिल्कुल अलग हैं।
एक साथ छुट्टी मनाई होगी, सुहाने मौसम में लंबी ड्राईव पर भी साथ में गये होंगे। एक साथ देखी होगी अपने पसंदीदा कलाकार की फ़िल्म, या साथ छलकायें होंगे कईं जाम, तो कभी एक साथ एक दूसरे के ग़म को किया होगा महसूस... लेकिन क्या आप कभी एक साथ बोर हुए हैं?
कभी कभी, निर्जीव वस्तुयें भी जीवन में एक नया, ताज़ा और अलग नज़रिया दे जाती हैं। समझा जाती हैं कुछ ऐसे सबक, दे जाती हैं कुछ ऐसे अनुभव जो कभी कभी कोई दोस्त या परिवार वाले भी न दे पायें। कुछ एसी ही थी मेरी वो पुरानी खिड़की।
मौसम बदलते हैं, लोग बदलते हैं, तो कभी कभी दोस्त भी, और एसे ही वो पीछे छूट जाते हैं, लेकिन यादों का क्या करें ? वो तो कभी साथ नहीं छोड़ती। ये है यादों की अल्मारी।
कैसा होगा आज ? वो, आपके बचपन का घर, जहां आप खेले, गिरे, और आगे बढ़े। कल्पना के परों पर, मैं लेकर चलती हूं आपको अपनी बचपन की यादों के घर में, शायद कुछ जाना पहचाना सा लगे।
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