
दिल की बातें दिल में रखना और भी है
ग़म में गाना कोई नग़मा और भी है
आप की हँसती हुई सूरत के ख़ातिर
रास्तों पर घर बनाना और भी है
थक के खिड़की के दरों से झाँकने को
जी मचलने का बहाना और भी है
मंजिलें जब दूर तो परवाह क्या है
पर कदम का लड़खड़ाना और भी है
फूल गुलशन में सभी मौज़ूद हैं पर
आप का महफ़िल में आना और भी है
सब परिंदे फड़फड़ा के उड़ गए पर
अब परों के बिन यूँ उड़ना और भी है
जग रहे हैं चाँद तारे इक वज़ह से
बेवजह रातों को जगना और भी है
एक गौरव है जो तन्हा एक साक़ी
शाम को जामों का लड़ना और भी है
रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन
2122 2122 2122