
तो अच्छा है (To Achha Hai): यह कविता आत्म-प्रेम (self-love) और स्वयं को स्वीकारने की यात्रा है। जब दुनिया की उम्मीदें और ख़ुद के अधूरेपन का बोझ ख़त्म हो जाता है, तब कवि यह पाता है कि वह जैसा है, ठीक वैसा होना ही सबसे अच्छा है। यह बाहर की भीड़ को ख़ुश करने की दौड़ को छोड़कर, अपनी अद्वितीय पहचान (unique identity) में शांति ढूँढने का संकल्प है। यह उन तमाम आलोचनाओं और सवालों का जवाब है जो हम ख़ुद से पूछते हैं—और जवाब सिर्फ़ इतना है: "मैं जैसा हूँ, तो अच्छा है।"