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Iss episode mai Jon Elia ki ek Kavita, jo unki baaki nazmon aur ghazlon ki tarah bina kisi title ki hai. Khaer, ye uske sher hain- तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ ये कैसी तन्हाई है,
तेरे साथ तिरी याद आई क्या तू सच-मुच आई है?
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का,
मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है|
उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रिफ़ाक़त का एहसास,
जब उस के मल्बूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है|
हुस्न से अर्ज़-ए-शौक़ न करना हुस्न को ज़क पहुँचाना है
हम ने अर्ज़-ए-शौक़ न कर के हुस्न को ज़क पहुँचाई है
हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़-ए-रक़ाबत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है |
हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच ये तू ने कैसी शक्ल बनाई है |
इशक़-ए-पेचाँ की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है|
हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पेशा हुस्न-परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है|
आज बहुत दिन बा'द मैं अपने कमरे तक आ निकला था
जूँ ही दरवाज़ा खोला है उस की ख़ुश्बू आई है|
एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है|
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