
अपनी मर्ज़ी से कुछ चुनूँगा मैं
हर अदा पर नहीं मरूँगा मैं
वो अगर ऐसे देख ले मुझको
उसको अच्छा नहीं लगूँगा मैं
बाग़ में दिल नहीं लगा अब के
अगले मौसम नहीं खिलूँगा मैं
उससे आगे नहीं निकलना पर
उसके पीछे नहीं चलूँगा मैं
कह गए थे वो याद रक्खेंगे
याद ही तो नहीं रहूँगा मैं
- Vishal Bagh