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Stories of Singhasan Battisi : सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
Arpaa Radio
32 episodes
5 months ago
सिंहासन बत्तीसी (संस्कृत:सिंहासन द्वात्रिंशिका, विक्रमचरित) एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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सिंहासन बत्तीसी (संस्कृत:सिंहासन द्वात्रिंशिका, विक्रमचरित) एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।
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सिंहासन बत्तीसी: बाईसवीं पुतली अनुरोधवती : Anurodhvati
Stories of Singhasan Battisi : सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
7 minutes
7 years ago
सिंहासन बत्तीसी: बाईसवीं पुतली अनुरोधवती : Anurodhvati
अनुरोधवती अनुरोधवती नामक बाइसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता का सम्मान किया जाता था। चापलूसी जैसे दुर्गुण की उनके यहाँ कोई कद्र नहीं थी। यही सुनकर एक दिन एक युवक उनसे मिलने उनके द्वार तक आ पहुँचा। दरबार में महफिल सजी हुई थी और संगीत का दौर चल रहा था। वह युवक द्वार पर राजा की अनुमति का इंतज़ार करने लगा। वह युवक बहुत ही गुणी था। बहुत सारे शास्रों का ज्ञाता था। कई राज्यों में नौकरी कर चुका था। स्पष्टवक्ता होने के कारण उसके आश्रयदाताओं को वह धृष्ट नज़र आया, अत: हर जगह उसे नौकरी से निकाल दिया गया।  इतनी ठोकरे खाने के बाद भी उसकी प्रकृति तथा व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आ सका। वह द्वार पर खड़ा था तभी उसके कान में वादन का स्वर पड़ा और वह बड़बड़ाया- "महफिल में बैठे हुए लोग मूर्ख हैं। संगीत का आनन्द उठा रहे है, मगर संगीत का जरा भी ज्ञान नहीं है। साज़िन्दा गलत राग बजाए जा रहा है, लेकिन कोई भी उसे मना नहीं कर रहा है।" उसकी बड़बड़ाहट द्वारपाल को स्पष्ट सुनाई पड़ी। उसका चेहरा क्रोध से लाल हो गया। उसने उसको सम्भालकर टिप्पणी करने को कहा। उसने जब उस युवक को कहा कि महाराज विक्रमादित्य खुद महफिल में बैठे है और वे बहुत बड़े कला पारखी है तो युवक ने उपहास किया। उसने द्वारपाल को कहा कि वे कला प्रेमी हो सकते हैं, मगर कला पारखी नहीं, क्योंकि साजिन्दे का दोषपूर्ण वादन उनकी समझ में नहीं आ रहा है। उस युवक ने यह भी बता दिया कि वह साज़िन्दा किस तरफ बैठा हुआ है।  अब द्वारपाल से नहीं रहा गया। उसने उस युवक से कहा कि उसे राजदण्ड मिलेगा, अगर उसकी बात सच साबित नहीं हुई। उस युवक ने उसे सच्चाई का पता लगाने के लिए कहा तथा बड़े ही आत्मविश्वास से कहा कि वह हर दण्ड भुगतने को तैयार है अगर यह बात सच नहीं साबित हुई। द्वारपाल अन्दर गया तथा राजा के कानों तक यह बात पहुँची। विक्रम ने तुरन्त आदेश किया कि वह युवक महफिल में पेश किया जाए। विक्रम के सामने भी उस युवक ने एक दिशा में इशारा करके कहा कि वहाँ एक वादक की ऊँगली दोषपूर्ण है। उस ओर बैठे सारे वादकों की ऊँगलियों का निरीक्षण किया जाने लगा। सचमुच एक वादक के अँगूठे का ऊपरी भाग कटा हुआ था और उसने उस अँगूठे पर पतली खाल चढ़ा रखी थी।  राजा उस युवक के संगीत ज्ञान के कायल हो गए। तब उन्होंने उस युवक से उसका परिचय प्राप्त किया और अपने दरबार में उचित सम्मान देकर रख लिया। वह युवक सचमुच ही बड़ा ज्ञानी और कला मर्मज्ञ था। उसने समय-समय पर अपनी योग्यता का परिचय देकर राजा का दिल जीत लिया। एक दिन दरबार में एक अत्यंत रुपवती नर्त्तकी आई। उसके नृत्य का आयोजन हुआ और कुछ ही क्षणों में महफिल सज गई। वह युवक भी दरबारियों के बीच बैठा हुआ नृत्य और संगीत का आनन्द उठाने लगा। वह नर्त्तकी बहुत ही सधा हुआ नृत्य प्रस्तुत कर रही थी और दर्शक मुग्ध होकर रसास्वादन कर रहे थे। तभी न जाने कहाँ से एक भंवरा आ कर उसके वक्ष पर बैठ गया। नर्त्तकी नृत्य नहीं रोक सकती थी और न ही अपने हाथों से भंवरे को हटा सकती थी, क्योंकि भंगिमाएँ गड़बड़ हो जातीं। उसने बड़ी चतुरता से साँस अन्दर की ओर खींची तथा पूरे वेग से भंवरे पर छोड़ दी। अनायास निकले साँस के झौंके से भंवरा डर कर उड़ गया। क्षण भर की इस घटना को कोई भी न ताड़ सका, मगर उस युवक की आँखों ने सब कुछ देख लिया।  वह "वाह! वाह!" करते उठा और अपने गले की मोतियों की माला उस नर्त्तकी के गले में डाल दी। सारे दरबारी स्तब्ध रह गए। अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा हो गई। राजा की उपस्थिति में दरबार में किसी और के द्वारा कोई पुरस्कार दिया जाना राजा का सबसे बड़ा अपमान माना जाता था। विक्रम को भी यह पसंद नहीं आया और उन्होंने उस युवक को इस धृष्टता के लिए कोई ठोस कारण देने को कहा। तब युवक ने राजा को भंवरे वाली सारी घटना बता दी। उसने कहा कि बिना नृत्य की एक भई भंगिमा को नष्ट किए, लय ताल के साथ सामंजस्य रखते हुए इस नर्त्तकी ने जिस सफ़ाई से भंवरे को उड़ाया वह पुरस्कार योग्य चेष्टा थी।  उसे छोड़कर किसी और का ध्यान गया ही नहीं तो पुरस्कार कैसे मिलता। विक्रम ने नर्त्तकी से पूछा तो उसने उस युवक की बातों का समर्थन किया। विक्रम का क्रोध गायब हो गया और उन्होंने नर्त्तकी तथा उस युवक- दोनों की बहुत तारीफ की। अब उनकी नज़र में उस युवक का महत्व और बढ़ गया। जब भी कोई समाधान ढूँढना रहता उसकी बातों को ध्यान से सुना जाता तथा उसके परामर्श को गंभीरतापूर्वक लिया जाता। एक बार दरबार में बुद्धि और संस्कार पर चर्चा छिड़ी। दरबारियों का कहना था कि संस्कार बुद्धि से आते है, पर वह युवक उनसे सहमत नहीं था। उसका कहना था कि सारे संस्कार वंशानुगत होते हैं। जब कोई मतैक्य नहीं हुआ तो विक्रम ने एक हल सोचा। उन्होंने नगर से दूर हटकर जंगल में एक महल बनवाया तथा महल में गूंगी और बहरी नौकरानियाँ नियुक्त कीं। एक-एक करके चार नवजात शिशुओं को उस महल में उन नौकरानियों की देखरेख में छोड़ दिया गया। उनमें से एक उनका, एक महामंत्री का, एक कोतवाल का तथा एक ब्राह्मण का पुत्र था। बारह वर्ष पश्चात् जब वे चारों दरबार में पेश किए गए तो विक्रम ने बारी-बारी से उनसे पूछा- "कुशल तो है?" चारों ने अलग-अलग जवाब दिए। राजा के पुत्र ने "सब कुशल है" कहा जबकि महामंत्री के पुत्र ने संसार को नश्वर बताते हुए कहा "आने वाले को जाना है तो कुशलता कैसी?" कोतवाल के पुत्र ने कहा कि चोर चोरी करते है और बदनामी निरपराध की होती है।  ऐसी हालत में कुशलता की सोचना बेमानी है। सबसे अन्त में ब्राह्मण पुत्र का जवाब था कि आयु जब दिन-ब-दिन घटती जाती है तो कुशलता कैसी। चारों के जवाबों को सुनकर उस युवक की बातों की सच्चाई सामने आ गई। राजा का पुत्र निश्चिन्त भाव से सब कुछ कुशल मानता था और मंत्री के पुत्र ने तर्कपूर्ण उत्तर दिया। इसी तरह कोतवाल के पुत्र ने न्याय व्यवस्था की चर्चा की, जबकि ब्राह्मण पुत्र ने दार्शनिक उत्तर दिया। सब वंशानुगत संस्कारों के कारण हुआ। सबका पालन पोषण एक वातावरण में हुआ, लेकिन सबके विचारों में अपने संस्कारों के अनुसार भिन्नता आ गई। सभी दरबारियों ने मान लिया कि उस युवक का मानना बिल्कुल सही है।
Stories of Singhasan Battisi : सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ
सिंहासन बत्तीसी (संस्कृत:सिंहासन द्वात्रिंशिका, विक्रमचरित) एक लोककथा संग्रह है। प्रजा से प्रेम करने वाले,न्याय प्रिय, जननायक, प्रयोगवादी एवं दूरदर्शी महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। उनके इन अद्भुत गुणों का बखान करती अनेक कथाएं हम बचपन से ही पढ़ते आए हैं। सिंहासन बत्तीसी भी ऐसी ही ३२ कथाओं का संग्रह है जिसमें ३२ पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कहानी के रूप में वर्णन करती हैं।