Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita.
The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan.
Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.
All content for Shri Ram katha is the property of Sutradhar and is served directly from their servers
with no modification, redirects, or rehosting. The podcast is not affiliated with or endorsed by Podjoint in any way.
Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita.
The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan.
Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.
रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि अर्थात प्रथम कवि भी कहते हैं और उनके द्वारा रचितश्रीरामकथा को प्रथम महाकाव्य। देखिए कैसे मिली वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने की प्रेरणा।एक बार तपस्वी वाल्मीकि ऋषि की भेंट तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले त्रिलोकज्ञाता देवर्षि नारद ने हुई।वाल्मीकि जी ने नारद मुनि से पूछा, “देवर्षि! इस समय विश्व में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ,सत्यवादी, धर्मानुसार आचरण करने वाले, प्राणिमात्र के हितैषी, विद्वान, समर्थ, धैर्यवान, क्रोध कोवश में करने वाले, तेजस्वी, ईर्ष्या से शून्य और युद्ध में देवताओं को भी भयभीत करने वाले कौनहैं। हे महर्षि! क्या आप किसी ऐसे पुरुष को जानते हैं? कृपा कर मुझे उनके विषय में बतायें।“वाल्मीकि जी की बात सुनकर त्रिकालदर्शी नारद मुनि प्रसन्न हुए और बोले, “हे मुनिवर! आपने जिनगुणों की बात कही है, वो सभी एक पुरुष में मिलन अत्यंत दुर्लभ है। किन्तु मैं आपको ऐसे एकगुणवान पुरुष के विषय में बताता हूँ। ध्यान से सुनिए।“ऐसा कहकर नारद मुनि ने ऋषि वाल्मीकि को इक्ष्वाकु वंश में जन्मे श्रीरामचन्द्र का परिचय देते हुएहुए उनके जीवन की कथा संछिप्त में सुनाई। उन्होंने बताया किस प्रकार श्रीराम का जन्म अयोध्या मेंमहाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ, कैसे उन्होंने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के यज्ञ में उनकी सहायताकी, किस प्रकार उनका विवाह मिथिला नरेश महाराज जनक की पुत्री जानकी से हुआ और कैसे उनकोअपनी सौतेली माता कैकेयी के कारण वनवास में जाना पड़ा। नारद मुनि ने वाल्मीकि जी को रावणद्वारा सीता जी के अपहरण, सीता जी की खोज में श्रीराम और लक्ष्मण जी की हनुमान जी से भेंट,उनकी सुग्रीव से मित्रता और सुग्रीव की सहायता से सीता जी की खोज, नल द्वारा समुद्र पर पुलबंधे जाने और उसके पश्चात लंका पर आक्रमण कर दसग्रीव रावण का वध करने की कथा सुनाई।देवर्षि नारद से यह वृत्तान्त सुनने के पश्चात वाल्मीकि जी ने अपने शिष्य भारद्वाज के साथ उनकापूजन किया। उसके बाद नारद मुनि विदा लेकर अकाशमार्ग में चले गए।नारद मुनि को विदा करने के बाद वाल्मीकि ऋषि अपने शिष्य के साथ गंगा नदी से थोड़ी दूर परस्थित तमसा नदी के तट पर पहुँचे, और नदी के शीतल जल में स्नान कर वहाँ विचरण करने लगे।उसी समय वाल्मीकि जी ने वन में विहार करते हुए मधुर ध्वनि करने वाले क्रौंच पक्षी का एक जोड़ादेखा। इतने में एक बहेलिये ने उनमें से नर पक्षी को मार दिया। जिसे देखकर मादा पक्षी करुण स्वरमें विलाप करने लगी। इस प्रकार विलाप करती हुई क्रौंची को देखकर वाल्मीकि जी के मुख सेअनायास ही यह शब्द निकले –मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥अर्थात हे बहेलिये! तूने जो इस कामोन्मत्त क्रौंच पक्षी को मारा है, इसलिए अनेक वर्षों तक तू इस वनमें मत आना अथवा तुझे सुख शान्ति न मिले।
ऐसा कहने के बाद वाल्मीकि जी ने सोचा इस पक्षी के शोक से शोकाकुल होकर उनके मुख से यहक्या निकल गया और उन्होंने अपने शिष्य भारद्वाज को भी यह बताया और कहा, “देखो, शोकाकुलहोकर मेरे मुख से यह क्या निकला? इसमें चार पाद हैं और प्रत्येक पाद में समान अक्षर हैं और यहवीणा पर भी गाया जा सकता है। शोक के कारण मेरे मुख से निकलने के कारण इसे श्लोक कहाजाएगा और इसके कारण मेरा यश बढ़ेगा।“ भारद्वाज ने अति प्रसन्न होकर वह श्लोक कंठाग्र करलिया और दोनों गुरु-शिष्य आश्रम वापस आ गए।एक दिन जगत-पितामह ब्रह्मदेव वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में पधारे। ब्रह्मदेव को देखकर वाल्मीकिजी ने उनका आदर-सत्कार किया और उनका यथोचित पूजन कर उनको आसन ग्रहण करने के लिएकहा। ब्रह्मदेव ने वाल्मीकि जी को अपने समीप आसन पर विराजने को कहा। उस समय भीवाल्मीकि जी क्रौंच के कष्ट से व्याकुल होकर बहेलिये के लिए निकले शब्द ही सोच रहे थे। उनकोइस प्रकार चिंताग्रस्त देखकर ब्रह्मदेव ने कहा, “ऋषिश्रेष्ठ! यह तो तुमने श्लोक ही बना दिया। मेरीही प्रेरणा से यह आपके मुख से निकल है। अब इसके मध्यम से ही तुमने नारद के मुख से जोरामकथा सुनी है, उसका वर्णन करो। मेरी कृपा से श्रीरामचन्द्र, लक्ष्मण जी और जानकी जी के प्रत्यक्षतथा गुप्त सभी वृत्तान्त तुमको प्रत्यक्ष ही दिखेंगे और इस काव्य में तुम्हारे द्वारा कही गयी कोई भइबात मिथ्या नहीं होगी। जब तक इस धरती में पहाड़ और नदियां रहेंगी, तब तक इस लोक मेंश्रीरामचन्द्र की कथा का प्रचार रहेगा।“ ऐसा कहकर ब्रह्मदेव वाल्मीकि जी को आशीर्वाद देकर वहाँ सेअंतर्ध्यान हो गए।उसके बाद महर्षि वाल्मीकि ब्रह्मदेव के आशीर्वाद से योगबल द्वारा श्रीराम के जीवन को इस प्रकारदेखने लगे मानो वह उनके समक्ष ही घटित हो रहा हो। इस प्रकार वाल्मीकि जी ने चौबीस हजारश्लोक और पाँच सो सर्ग की रचना की। अपनी रचना सम्पूर्ण करने के बाद महर्षि सोचने लगे कीअब यह महाकाव्य किसे सुनाएं। महर्षि वाल्मीकि ऐसा सोच ही रहे थे कि कुश और लव ने आकरउनके चरण स्पर्श किये। वाल्मीकि जी ने उन दोनों बालकों को अपने द्वारा रचित वह काव्य कंठस्थकराया और उन्होंने उसका नाम “पौलस्त्यवध” रखा।कुश और लव ऋषियों और संतों के समक्ष वह काव्य अत्यंत मधुर वाणी में गाते, जिसे सुनकर वोभाव-विभोर हो जाते। एक बार राजमार्ग से जाते हुए श्रीरामचन्द्र ने उनको देखा और अपने साथराजमहल ले आए। उसके बाद उन्होंने राजसभा में अपने भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा सभीमंत्रीगणों के समक्ष उनका गीत गाने के लिए कहा।और इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य को श्रीराम के ही पुत्रों ने भरी सभामें उनके ही समक्ष प्रस्तुत किया।
Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
Shri Ram katha
Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita.
The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan.
Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen.