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ये मटकी देख रहे है आप?
इसमें जल रखा जाता है,
जल जो शुद्ध रहता है,
शीतल रहता है,
जल जो प्यास बुझाता है।
सोचिये,
यदि इस मटकी की माटी ठीक ना हो,
यदि इसे भली प्रकार रौंधा ना गया हो,
आकार देकर इसे अग्नि में ठीक से
पकाया ना गया हो तो क्या होगा? यही मन के साथ भी होता है।
क्योंकि यदि प्रेम ये जल है तो इसकी मटकी है मन,
मन रुपी पात्र में यदि विश्वास की माटी ना हो,
यदि आंसुओं से उसे भिगोया ना गया हो,
समय रुपी कुम्हार ने उसे आकार ना दिया हो
और परीक्षा की अग्नि में उसे पकाया ना गया हो
तो प्रेम मन में नहीं ठहर सकता। तो यदि प्रेम को पाना है तो हृदय पर काम करना होगा
और मन से कहना होगा
राधे-राधे!