"मोहन और मस्तों के दिल का मिलता है कहीं कुछ राज़ नहीं। लड़ते और झगड़ते हैं, रूठते और मचलते हैं, मुख कमल से लेकिन जाहिर होते नाराज़ नहीं। विरह वेदना की चोटें दिल भेद भेद कर जाती हैं, आंखों से आंसू बहते हैं पर होते कहीं दूर दराज नहीं।।"
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"मोहन और मस्तों के दिल का मिलता है कहीं कुछ राज़ नहीं। लड़ते और झगड़ते हैं, रूठते और मचलते हैं, मुख कमल से लेकिन जाहिर होते नाराज़ नहीं। विरह वेदना की चोटें दिल भेद भेद कर जाती हैं, आंखों से आंसू बहते हैं पर होते कहीं दूर दराज नहीं।।"
इश्क इस जहान में तब तक मुकम्मल नहीं होता जब तक कि खुदा से नहीं होता और जो करते हैं इश्क खुदा से उनके जैसा फिर कोई आशिक नहीं होता! __ Listen to a live sequence of being in Suroor at Nidhivan - https://soundcloud.com/braj-rasik-vinod-agarwal/nidhivan-2010
Kamaal e maeykashi
"मोहन और मस्तों के दिल का मिलता है कहीं कुछ राज़ नहीं। लड़ते और झगड़ते हैं, रूठते और मचलते हैं, मुख कमल से लेकिन जाहिर होते नाराज़ नहीं। विरह वेदना की चोटें दिल भेद भेद कर जाती हैं, आंखों से आंसू बहते हैं पर होते कहीं दूर दराज नहीं।।"