
कलम की कोख से जन्मी, मेरे मन की तू दुहिता है।
बड़ी निर्मल बड़ी निश्छल, बड़ी चंचल सी सरिता है॥
मेरे मन की व्यथा समझे, अकेलेपन की साथी है।
मेरा अस्तित्व है तुझसे, नहीं केवल तू कविता है॥
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