अलौकिक पर्व है आया, ख़ुशी हर ओर छाई है।
महादेवी सदाशिव के, मिलन की रात आई है॥
धवल तन नील ग्रीवा में, भुजंगों की पड़ी माला।
सुसज्जित सोम मस्तक पर, जटा गंगा समाई है॥
सवारी बैल नंदी की, चढ़ी बारात भूतों की।
वहीँ गन्धर्व यक्षों ने, मधुर वीणा बजाई है॥
पुरोहित आज ब्रह्मा हैं, बड़े भ्राता हैं नारायण।
हिमावन तात माँ मैना, को जोड़ी खूब भाई है॥
अटारी चढ़ निहारे हैं, भवानी चंद्रशेखर को।
मिली आँखों से जब आँखें, वधू कैसी लजाई है॥
अनूठा आज मंगल है, महाशिवरात्रि उत्सव का।
सकल संसार आनंदित, बधाई है बधाई है॥
जगत कल्याण करने को, सदा तत्पर मेरे भोले।
हलाहल विष पिया हँस कर, धरा सारी बचाई है॥
नमन श्रद्धा सहित मेरा, करो स्वीकार चरणों में।
समर्पित शक्ति-औ-शिव को, ग़ज़ल ‘अवि’ ने बनाई है॥
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Lyrics - Vivek Agarwal Avi
Music & Vocal - Suno AI
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पवित्र पुण्य भारती (पञ्चचामर छंद)
भले अनेक धर्म हों, परन्तु एक धाम है।
पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥
समान सर्व प्राण हैं, विधान संविधान है।
महान लोकतंत्र है, स्वतंत्रता महान है।
तिरंग हाथ में उठा, कि आन बान शान है।
कि कोटि कंठ गूंजता, सुभाष राष्ट्र गान है।
ललाट गर्व से उठा, न शीश ये कभी झुका।
सदैव साथ देश का, स्वदेश भक्ति काम है॥
पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥
अनेक पुष्प हैं लगे, परन्तु एक हार है।
अनेक ग्रन्थ हैं यहाँ, हितोपदेश सार है।
अनेक हाथ जो मिले, प्रचंड मुष्टि वार है।
समक्ष शत्रु जो मिले, लहू सनी कटार है।
अदम्य वीर साहसी, सपूत मात के वही।
कि काट शीश जो धरे, वही रहीम राम है॥
पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥
दिपावली कि ईद हो, नमाज़ हो कि आरती।
विभिन्न पंथ पर्व से, वसुंधरा सँवारती।
अनेक भिन्न बोलियाँ, सुपुत्र को पुकारती।
निनाद नृत्य गान से, प्रसन्न भव्य भारती।
नई उड़ान है यहाँ, नया यहाँ प्रभात है।
ममत्व मातृ अंक में, मिला मुझे विराम है॥
पवित्र पुण्य भारती, प्रणाम है प्रणाम है॥
स्वरचित
विवेक अग्रवाल 'अवि'
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कथा सुनो सुभाष की, अदम्य स्वाभिमान की।
अज़ाद हिन्द फ़ौज के, पराक्रमी जवान की॥
अनन्य राष्ट्र प्रेम की, अतुल्य शौर्य त्याग की।
सहस्त्र लक्ष वक्ष में, प्रचंड दग्ध आग की॥
सशस्त्र युद्ध राह पे, सदैव वो रहा डटा।
समस्त विश्व साक्ष्य है, नहीं डरा नहीं हटा॥
असंख्य शत्रु देख के, गिरा न स्वेद भाल से।
अभीष्ट लक्ष्य के लिए, लड़ा कराल काल से॥
अतीव कष्ट मार्ग में, सुपुत्र वो नहीं रुका।
न लोभ मोह में फँसा, न शीश भी कभी झुका॥
स्वतंत्र राष्ट्र स्वप्न को, समस्त देश को दिखा।
कटार धार रक्त से, नवीन भाग्य भी लिखा॥
अभूतपूर्व शौर्य का, वृत्तांत विश्व ये कहे।
सुकीर्ति सपूत की, सुगंध सी बनी रहे॥
समान सूर्य चंद्र के, अमर्त्य दीप्त नाम है।
सुभाष चंद्र बोस को, प्रणाम है प्रणाम है॥
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Lyrics - Vivek Agarwal Avi
Music & Vocal - SunoAI
रघुपुङ्गव राघवेंद्र रामचन्द्र राजा राम।
सर्वदेवादिदेव सबसे सुन्दर यह नाम।
शरणत्राणतत्पर सुन लो विनती हमारी।
हरकोदण्डखण्डन खरध्वंसी धनुषधारी।
दशरथपुत्र कौसलेय जानकीवल्लभ।
विश्वव्याप्त प्रभु आपका कीर्ति सौरभ।
विराधवधपण्डित विभीषणपरित्राता।
भवरोगस्य भेषजम् शिवलिङ्गप्रतिष्ठाता।
सप्ततालप्रभेत्ता सत्यवाचे सत्यविक्रम।
आदिपुरुष अद्वितीय अनन्त पराक्रम।
रघुपुङ्गव राघवेंद्र रामचन्द्र राजा राम।
सर्वदेवादिदेव सबसे सुन्दर यह नाम।
महादेवादिपूजित मायामारीचहन्ता।
दीनानाथ दयासार दान्त दुःखहन्ता।
परंज्योति पराकाश परात्पर परंधाम।
सुमित्रापुत्रसेवित सर्वदेवात्मक श्रीराम।
आजानुबाहु आप अहल्याशापशमन।
जयन्तत्राणवरद के चरणों में है नमन।
महाबाहो महायोगी पुण्डरीकलोचन।
भक्तवत्सल प्रभु कीजिये पापमोचन।
रघुपुङ्गव राघवेंद्र रामचन्द्र राजा राम।
सर्वदेवादिदेव सबसे सुन्दर यह नाम।
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Lyrics, Prompt Engineering, Production - Vivek Agarwal Avi
Vocal - Suno AI
श्री राम नवमी - (हरिगीतिका छंद)
श्री राम नवमी पर्व पावन, राम मंदिर में मना।
संसार पूरा राममय है, राम से सब कुछ बना॥
संतों महंतों की हुई है, सत्य सार्थक साधना।
स्त्री-पुरुष बच्चे-बड़े सब, मिल करें आराधना॥
नीरज नयन कोदंड कर शर, सूर्य का टीका लगा।
मस्तक मुकुट स्वर्णिम सुशोभित, भाग्य भारत का जगा॥
आदर्श का आधार हो तुम, धैर्य का तुम श्रोत हो।
चिर काल तक जलती रहेगी, धर्म की वह ज्योत हो॥
तन मन वचन सब कुछ समर्पित, जाप हर पल नाम का।
अब राम ही अपना सहारा, आसरा बस राम का॥
श्रद्धा सहित समर्पित
सुर - डॉ सुभाष रस्तोगी
गीतकार - विवेक अग्रवाल "अवि"
मूल संगीत - उषा मंगेशकर
संयोजन - अमोल माटेगांवकर
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समापन है शिशिर का अब, मधुर मधुमास आया है।
सभी आनंद में डूबे, अपरिमित हर्ष छाया है॥
सुनहरे सूत को लेकर, बुना किरणों ने जो कम्बल।
ठिठुरते चाँद तारों को, दिवाकर ने उढ़ाया है॥
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समर्पित काव्य चरणों में, बनाई छंद की माला।
नमन है वागदेवी को, सुमन ‘अवि’ ने चढ़ाया है॥
गीतकार - विवेक अग्रवाल "अवि"
स्वर - श्रेय तिवारी
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बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने
जुदाई को हमदम बनाया है हमने
तेरा अक्स आँखों में हमने छिपाया
तभी तो न आँसू भी हमने बहाए
तेरा नूर दिल में अभी तक है रोशन
'अक़ीदत से तुझको इबादत बनाकर
लबों पर ग़ज़ल सा सजाया है हमने..
बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने
सबब आशिक़ी का भला क्या बतायें
ये दिल की लगी है तो बस दिल ही जाने
न सोचा न समझा मोहब्बत से पहले
सुकूं चैन अपना मेरी जान सब कुछ
तेरी जुस्तुजू में गँवाया है हमने
बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने
बड़ा टूट कर दिल लगाया है हमने
जुदाई को हमदम बनाया है हमने
Lyrics - Vivek Agarwal "Avi"
Guitar & Vocal - Randhir Singh
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तुम को देखा तो ये ख़याल आया।
प्यार पाकर तेरा है रब पाया।
झील जैसी तेरी ये आँखें हैं।
रात-रानी सी महकी साँसें हैं।
झाँकती हो हटा के जब चिलमन,
जाम जैसे ज़रा सा छलकाया।
तुम को देखा ……
देखने दे मुझे नज़र भर के।
जी रहा हूँ अभी मैं मर मर के।
इस कड़ी धूप में मुझे दे दे,
बादलों जैसी ज़ुल्फ़ की छाया।
तुम को देखा ……
ज़िंदगी भर थी आरज़ू तेरी।
तू ही चाहत तू ज़िंदगी मेरी।
पास आकर भी दूर क्यूँ बैठे,
चाँद सा चेहरा क्यूँ है शरमाया।
तुम को देखा ……
तुम को देखा तो ये ख़याल आया।
प्यार पाकर तेरा है रब पाया।
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एक किताब सा मैं जिसमें तू कविता सी समाई है,
कुछ ऐसे ज्यूँ जिस्म में रुह रहा करती है।
मेरी जीस्त के पन्ने पन्ने में तेरी ही रानाई है,
कुछ ऐसे ज्यूँ रगों में ख़ून की धारा बहा करती है।
एक मर्तबा पहले भी तूने थी ये किताब सजाई,
लिखकर अपनी उल्फत की खूबसूरत नज़्म।
नीश-ए-फ़िराक़ से घायल हुआ मेरा जिस्मोजां,
तेरे तग़ाफ़ुल से जब उजड़ी थी ज़िंदगी की बज़्म।
सूखी नहीं है अभी सुर्ख़ स्याही से लिखी ये इबारतें,
कहीं फ़िर से मौसम-ए-बाराँ में धुल के बह ना जायें।
ए'तिमाद-ए-हम-क़दमी की छतरी को थामे रखना,
शक-ओ-शुबह के छींटे तक इस बार पड़ ना पायें।
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ये आज़ादी मिले हमको हुए हैं साल पचहत्तर।
बड़ा अच्छा ये अवसर है जरा सोचें सभी मिलकर।
सही है क्या गलत है क्या मुनासिब क्या है वाजिब क्या।
आज़ादी का सही मतलब चलो समझें ज़रा बेहतर।
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न सुकून है न ही चैन है; न ही नींद है न आराम है।
मेरी सुब्ह भी है थकी हुई; मेरी कसमसाती सी शाम है।
न ही मंज़िलें हैं निगाह में; न मक़ाम पड़ते हैं राह में,
ये कदम तो मेरे ही बढ़ रहे; कहीं और मेरी लगाम है।
कि बड़ी बुरी है वो नौकरी; जो ख़ुदी को ख़ुद से ही छीन ले,
यहाँ पिस रहा है वो आदमी; जो बना किसी का ग़ुलाम है।
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शाइर - विवेक अग्रवाल 'अवि'
आवाज़ - नरेश नरूला
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
साहिर उस दौर के शायर थे जब शायरी ग़म-ए-जानाँ तक न सिमट ग़म-ए-दौराँ की बात करने लगी थी। इस ग़ज़ल का मतला भी ऐसा ही है जो न सिर्फ खुद के गम पर हालात के गम का ज़किर भी करता है। आज इसी ग़ज़ल में कुछ और अशआर जोड़ने की हिमाकत की है। मुलाइज़ा फरमाइयेगा।
तू आग थी मैं आब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
तू ज़िन्दगी मैं ख़्वाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
उधर भी आग थी लगी इधर भी जोश था चढ़ा,
नया नया शबाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
जो सुर्ख़ प्यार का निशाँ तिरी निगाह में रोज था,
मिरे लिये गुलाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
ख़मोश लब तिरे रहे हमेशा उस सवाल पर,
वही तिरा जवाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
ख़ुशी व ग़म का बाँटना मिरे लिए वो प्यार था,
तिरे लिए हिसाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
दिलों में गाँठ क्यूँ पड़ी ये आज तक नहीं पता,
वो वक़्त ही ख़राब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
अलग अलग है रास्ता अलग अलग हैं मंज़िलें,
कोई न हम-रिकाब था न तू ग़लत न मैं ग़लत।
शाइर - विवेक अग्रवाल 'अवि'
सुर और संगीत - रणधीर सिंह
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का।
सवाल ना जवाब ना, न वक़्त इंतिज़ार का।
क्यों छोड़ कर चले गए, ये आज तक नहीं पता।
मिली मुझे बड़ी सजा, मेरी भला थी क्या ख़ता।
कि आज भी जिगर में है, वो अक्स मेरे यार का।
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का।
मिले थे आखिरी दफा, न कुछ सुना न कुछ कहा।
नजर से बस नजर मिला, न अश्क़ भी कहीं बहा।
न देख तू यहाँ वहाँ, ये वक़्त है इज़्हार का।
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का।
लबों पे रख चला गया, निदा तेरे ही नाम की।
उसेक पल में पी गया, शराब लाख जाम की।
कि आज तक चढ़ा हुआ, नशा उसी ख़ुमार का।
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का।
पता नहीं मुझे तेरे, मिज़ाज का ख़िसाल का।
नसीब में है क्या लिखा, तेरे मेरे विसाल का।
नहीं ख़याल है मुझे, उसूल का वक़ार का।
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का।
ये जिंदगी का मोड़ वो, कि बस समय है प्यार का।
सवाल ना जवाब ना, न वक़्त इंतिज़ार का।
सब कहते हैं हम अब स्वतंत्र हैं
पर सच कहूँ तो लगता नहीं
निज भाषा का तिरस्कार देखता हूँ
स्वदेशी पोशाकों को होटल, क्लब से
निष्काषित होते देखता हूँ
सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी में
मी लार्ड को टाई न पहनने के ऊपर
फटकार लगाते देखता हूँ
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आओ बच्चों आज तुमको, एक पाठ नया पढ़ाता हूँ।
प्रकृति हमको क्या सिखलाती, ये तुमको बतलाता हूँ।
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कलम की कोख से जन्मी, मेरे मन की तू दुहिता है।
बड़ी निर्मल बड़ी निश्छल, बड़ी चंचल सी सरिता है॥
मेरे मन की व्यथा समझे, अकेलेपन की साथी है।
मेरा अस्तित्व है तुझसे, नहीं केवल तू कविता है॥
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