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"Hayat" — ज़िंदगी। सुनने में यह एक खूबसूरत सा लफ़्ज़ है। इसकी जड़ें अरबी और उर्दू से आती हैं, जिसका अर्थ होता है "जीवन" या "अस्तित्व"। यह लफ्ज़ सिर्फ सांसों का नाम नहीं, बल्कि जज़्बातों, ख्वाबों, उम्मीदों और संघर्षों का एक सिलसिला है। मगर विडंबना देखिए, इस ‘Hayat’ के नाम पर ही आज दुनिया में सबसे ज़्यादा भेदभाव हो रहा है।
इस लेख में हम बात करेंगे उन विभिन्न रूपों की जिनमें इंसानों ने ‘ज़िंदगी’ को ही एक पैमाना बना दिया है भेदभाव का — कभी रंग के आधार पर, कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर और कभी एक औरत की कोख में पल रही ‘Hayat’ के नाम पर।
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1. जन्म से पहले ही Hayat पर सवाल
क्या यह अजीब नहीं कि एक बच्ची की 'Hayat' उस वक़्त ही खतरे में पड़ जाती है जब वो गर्भ में होती है? भ्रूण हत्या एक ऐसा अपराध है जो सबसे पहला भेदभाव दर्शाता है — एक लड़की की ज़िंदगी को जन्म लेने से पहले ही रोक देना।
यह भेदभाव सिर्फ कानून का नहीं, सोच का है। क्या Hayat सिर्फ लड़कों को जीने का हक़ देती है? क्या बेटियाँ सिर्फ 'बोझ' हैं? यह सोच ही सबसे बड़ा अन्याय है ज़िंदगी के साथ।
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2. Hayat और रंगभेद
"Fair is beautiful" — ये वाक्य न जाने कितने सपनों की हत्या कर चुका है। एक सांवली लड़की की ‘Hayat’ दूसरों की तरह सामान्य क्यों नहीं मानी जाती? क्यों उसे सुंदरता के मानकों में फिट होने के लिए Fairness क्रीम की ज़रूरत होती है?
रंग के आधार पर किया गया भेदभाव इंसान के आत्मसम्मान को तोड़ देता है। Hayat जब खुदा की देन है, तो उसके रंग पर फैसले करने का हक़ किसे है?
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3. Hayat और जाति का जाल
भारत में जातिवाद एक ऐसा ज़हर है जो पीढ़ियों से Hayat को खोखला कर रहा है। कोई ब्राह्मण है तो कोई दलित, कोई ठाकुर है तो कोई पिछड़ा। मगर Hayat क्या इन तमगों से बंधी होती है?
एक बच्चा जब जन्म लेता है, वह किसी जाति का नहीं होता। उसे समाज जाति देता है, और फिर उसी जाति के आधार पर उसे अवसर, सम्मान और हक़ से वंचित किया जाता है। क्या ये Hayat के साथ सबसे बड़ा मज़ाक नहीं?
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4. Hayat और औरत — सबसे बड़ा अन्याय
औरत की ज़िंदगी हमेशा "त्याग" और "समर्पण" के दायरे में क्यों सिमटी रही है? एक लड़की की Hayat उसके सपनों की नहीं, बल्कि दूसरों की उम्मीदों की क़ैद क्यों बन जाती है?
उसे बताया जाता है कि शादी ही उसकी मंज़िल है। अगर वो शादी नहीं करती, तो लोग सवाल करते हैं — "क्यों? क्या कोई दिक्कत है?" अगर वो तलाक़ ले लेती है, तो उसकी Hayat पर दाग़ लगा दिया जाता है।
मगर एक मर्द की ज़िंदगी पर ऐसे सवाल नहीं उठते। क्यों? क्या Hayat का मूल्य सिर्फ उसके लिंग से तय होता है?
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5. Hayat और धर्म — रूह का सौदा
धर्म एक आस्था है, आत्मा की आवाज़। लेकिन जब यही धर्म Hayat पर भारी पड़ जाए, तो सवाल उठना ज़रूरी हो जाता है।
मजहब के नाम पर इंसानों को बांटा गया, मारा गया, जलाया गया। कोई मुसलमान है, कोई हिंदू, कोई सिख, कोई ईसाई। मगर क्या Hayat ने कभी खुद को किसी धर्म से जोड़ा? क्या सांसें कभी मस्जिद या मंदिर में बंटी जाती हैं?