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Gaana Live Team
133 episodes
6 days ago
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Mumbai Saga Review : गैंगस्टर ड्रामा की टिपिकल मसाला बनकर रह गयी है 'मुम्बई सागा'
Gaana Live Entertainment
2 minutes 39 seconds
4 years ago
Mumbai Saga Review : गैंगस्टर ड्रामा की टिपिकल मसाला बनकर रह गयी है 'मुम्बई सागा'

शूटआउट एट लोखंडवाला, शूटआउट एट वडाला के बाद निर्देशक संजय गुप्ता एक बार फिर 80 और 90 की मुम्बई की क्राइम पृष्ठभूमि को अपनी क्राइम ड्रामा फिल्म मुम्बई सागा के लिए चुना है। फ़िल्म में कुछ फैक्ट है तो कुछ फिक्शन. यह फ़िल्म मूल रूप से अंडरवर्ल्ड के भाइयों अश्विन नाइक और अमर नाइक से प्रेरित है फिक्शन में उनकी कहानी के साथ खूब सारा ड्रामा, सस्पेंस, एक्शन और डायलॉग बाज़ी जोड़ दिया गया है लेकिन फ़िल्म में नयापन कुछ भी नहीं है. राम गोपाल वर्मा से संजय गुप्ता की मुम्बई क्राइम ड्रामा फिल्मों में ये सब पहले ही देख चुके हैं. फ़िल्म के दृश्य घिसे पिटे से हैं तो सस्पेंस चौंकाता नहीं बल्कि चूकता दिखता है.

नए बोतल में पुरानी शराब की कहावत को चरितार्थ करती इस फ़िल्म की कहानी पर आए तो अमर्त्य राव (जॉन अब्राहम) रेलवे स्टेशन पर सब्जी बेचता है और मुंबई पर गैंगस्टर गायतोंडे (अमोल गुप्ते) का राज है. वो सभी से हफ्ता वसूलता है. अमर्त्य भी चुपचाप हफ्ता देता है लेकिन एक दिन कहानी तब बदल जाती है जब हफ्ता वसूलने वाले गायतोंडे के आदमियों को अमर्त्य का छोटा भाई हफ्ता देने से इनकार कर देता है.

जिसकी वजह से गायतोंडे के लोग उसको मार मारकर अधमरा कर देते हैं. जिसके बाद अमर्त्य का रिवेंज मोड ऑन हो जाता है. वो अपने भाई का बदला लेना चाहता और गायतोंडे का खात्मा. इसमें उसका साथ नेता भाऊ (महेश मांजरेकर) देता है. यह किरदार बहुत हद तक बाल ठाकरे से प्रेरित है. भाऊ की छत्रछाया में अमर्त्य मुम्बई पर राज करने लगता है. तमाम गैंगस्टर ड्रामा की फिल्मों की तरह यहां भी एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट (इमरान हाशमी) है. जिसका मकसद अमर्त्य के गैंग को खत्म करना है.उसके बाद चोर पुलिस का खेल शुरू हो जाता है. क्या होगा कैसे होगा यही आगे की कहानी है.

कहानी में नयापन कुछ भी नहीं है.कहानी से ज़्यादा एक्शन सीक्वेंस और संवाद अदायगी पर फोकस किया गया है. फ़िल्म को आज के समय के लिहाज से बिल्कुल भी बनाने की कोशिश नहीं की गयी है.सिर्फ हनी सिंह के गाने रखने से फ़िल्म आज के दौर के दर्शकों के लिए नहीं बन जाएगी.ये निर्देशक और कहानीकार को सोचने की ज़रूरत थी.

अभिनय की बात करें तो गैंगस्टर अमृत्य राव के किरदार में जॉन अब्राहम एक बार फिर अपने मान्या सुर्वे वाले अवतार में दिखें हैं. इमोशनल सीन में हमेशा की तरह वह इस बार भी चूक गए हैं. इमरान हाशमी ने अपने किरदार के साथ बखूबी न्याय किया है। अभिनेत्री काजल अग्रवाल के पास करने को कुछ नहीं था बस गिने चुने दृश्य थे. महेश मांजरेकर,अमोल गुप्ते और रोहित रॉय अपनी भूमिका में छाप छोड़ते हैं खासकर महेश मांजरेकर की तारीफ करनी होगी, जो बाल ठाकरे की याद दिलाता है.प्रतीक बब्बर,सुनील शेट्टी और गुलशन ग्रोवर भी अपनी मिली हुई भूमिकाओं में न्याय करते हैं.

फ़िल्म की कहानी की तरह सिनेमेटोग्राफी भी कमजोर रह गयी है. कुलमिलाकर गैंगस्टर ड्रामा की टिपिकल मसाला फ़िल्म मुम्बई सागा बनकर रह गयी है.अगर आप इस जॉनर और जॉन के फैंस हैं तो ही यह फ़िल्म आपको एंटरटेन कर पाएगी.

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