
Written by Amber Arondekar & Narrated by Dinesh Mani
पहले सहिष्णु था, नरम था, अब सख्त हूं,
तुम चाहे जो कह लो मैं भक्त हूं अंधभक्त हूँ।
तुमने कहा हिंदी चीनी भाई भाई,
तुम्हीं ने गंगा-जमनी तहज़ीब सिखाई,
जो कट चुका हूँ कई बार मैं वो ही दरख़्त हूं।
तुम चाहे जो कह लो मैं भक्त हूं हां अंधभक्त हूँ।
अहिंसा का पाठ बस मुझे ही पढ़ाया गया,
मेरे देश में मुझे ही रेफ्यूजी बनाया गया।
नाकारा कई बैठते रहे मुझपर मैं दिल्ली का तख्त हूं
तुम चाहे जो कह लो मैं भक्त हूं हां अंधभक्त हूँ।
राम के अस्तित्व को तुमने नकारा,
अकेले रहीम को तुमने दुलारा,
बरसों बरस तक हमको दुत्कारा,
जो देर से सही मगर बदला है वो वक्त हुं,
तुम चाहे जो कह लो मैं भक्त हूं हां अंधभक्त हूँ।
शीश अक्सर मेरे कटे, खेत खलिहान मेरे लुटे,
आक्रांताओं के हाथ तुम लोग बिके,
जो बह रहा है कश्मीर और बंगाल में
मैं वही हिंदू शोणित हुं रक्त हूं,
तुम चाहे जो कह लो मैं भक्त हूं हां अंधभक्त हूँ।
तुम चाहते हो हम फिर बंट जाएं,
तुम चाहते हो हम फिर कट जाएं
तुम्हारे स्वार्थ पथ से,
महाराणा और वीर शिवाजी के वंशज हट जाएं
अपने राष्ट्र से अपनी पहचान से आसक्त हूं
तुम चाहे जो कह लो मैं भक्त हूं हां अंधभक्त हूँ।
अब परदे हमारी आंखों से हट गये हैं,
इसीलिए तुम्हारी आंखों में खटक गये हैं।
अब अहिंसा और झूठे भाईचारे से विरक्त हूँ
तुम्हारे साथ या तुम्हारे बिना मैं भक्त हूँ, हां मैं अंधभक्त हूँ।
- एक अंध अनन्य भक्त