
सर्ग 54 में राजा विश्वामित्र, महर्षि वशिष्ठ की दिव्य गाय शबला (कामधेनु) को बलपूर्वक ले जाने का प्रयास करते हैं। वशिष्ठ के मना करने पर भी जब विश्वामित्र ने अपने बल के घमंड में शबला को हांकने का प्रयास किया, तो शबला ने अपनी अद्भुत शक्तियों का प्रदर्शन किया।
शबला का करुण क्रंदन:
जब सैनिक शबला को ले जाने लगे, तो शबला अत्यंत दुःखी होकर महर्षि वशिष्ठ के पास आई और रोते हुए बोली:
“हे ब्राह्मण! आप मुझे क्यों छोड़ रहे हैं? मैं आपकी सेवा में रहना चाहती हूँ।”
वशिष्ठ की आज्ञा:
महर्षि वशिष्ठ ने शबला को समझाया कि वह अपनी दिव्य शक्तियों का प्रयोग कर सकती है। वशिष्ठ ने उसे स्वतंत्र रूप से रक्षा के लिए कहा।
शबला की शक्ति प्रदर्शन:
शबला ने अपनी अद्भुत शक्ति से विभिन्न प्रकार के योद्धाओं की उत्पत्ति की, जैसे:
• शक, यवन, पल्लव, कांबोज: विदेशी और मलेच्छ योद्धा उत्पन्न किए।
• प्रबल योद्धाओं की सेना: जिनकी संख्या अनगिनत थी।
विश्वामित्र की सेना का संहार:
शबला द्वारा उत्पन्न इन योद्धाओं ने विश्वामित्र की विशाल सेना को परास्त कर दिया। उनकी सेना का संहार इतनी तीव्रता से हुआ कि स्वयं विश्वामित्र भी असहाय हो गए।
विश्वामित्र की हार:
सभी प्रयासों के बाद भी विश्वामित्र की सेना नष्ट हो गई, और वह पराजित होकर वहाँ से चले गए।