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DEVINE VERSES (दिव्य श्लोक)
कीर्ति बल्लभ जोशी
70 episodes
5 days ago
"दिव्य श्लोक" एक आध्यात्मिक पॉडकास्ट है जो वाल्मीकि रामायण और अन्य पवित्र हिंदू ग्रंथों की कालातीत कहानियों और शिक्षाओं को साझा करने के लिए समर्पित है। इस श्रृंखला में, हम प्राचीन ग्रंथों की गहरी और अद्भुत कथाओं को प्रस्तुत करेंगे, उनकी ज्ञानवर्धक शिक्षाओं को समझेंगे और आज के जीवन में उनकी प्रासंगिकता को खोजेंगे। हर एपिसोड में श्रोताओं को भगवान राम, सीता, और अन्य प्रमुख पात्रों की अद्भुत कहानियों की यात्रा पर ले जाया जाएगा, जैसा कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित है। साथ ही, पॉडकास्ट में अन्य पवित्र ग्रंथों से प्रेरक चर्चाएँ और कथाएँ भी प्रस्तुत की जाएंगी, जो आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेरणा का खजाना है
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"दिव्य श्लोक" एक आध्यात्मिक पॉडकास्ट है जो वाल्मीकि रामायण और अन्य पवित्र हिंदू ग्रंथों की कालातीत कहानियों और शिक्षाओं को साझा करने के लिए समर्पित है। इस श्रृंखला में, हम प्राचीन ग्रंथों की गहरी और अद्भुत कथाओं को प्रस्तुत करेंगे, उनकी ज्ञानवर्धक शिक्षाओं को समझेंगे और आज के जीवन में उनकी प्रासंगिकता को खोजेंगे। हर एपिसोड में श्रोताओं को भगवान राम, सीता, और अन्य प्रमुख पात्रों की अद्भुत कहानियों की यात्रा पर ले जाया जाएगा, जैसा कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित है। साथ ही, पॉडकास्ट में अन्य पवित्र ग्रंथों से प्रेरक चर्चाएँ और कथाएँ भी प्रस्तुत की जाएंगी, जो आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेरणा का खजाना है
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वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सप्तपंचाश: सर्ग:
DEVINE VERSES (दिव्य श्लोक)
7 minutes 43 seconds
8 months ago
वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सप्तपंचाश: सर्ग:

वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 57वें सर्ग में राजा विश्वामित्र के घोर तपस्या और ब्रह्मर्षि बनने के दृढ़ निश्चय का वर्णन मिलता है।


प्रसंग का सारांश:

1. तपस्या का आरम्भ: महर्षि वशिष्ठ के ब्रह्मदण्ड के आगे अपने सभी दिव्यास्त्रों की विफलता देखकर राजा विश्वामित्र को यह समझ में आ जाता है कि क्षत्रिय बल और दिव्यास्त्रों की शक्ति से ब्रह्मतेज पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती।

2. राजर्षि पद की प्राप्ति: राजा विश्वामित्र घोर तपस्या में लीन हो जाते हैं। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट होते हैं और उन्हें ‘राजर्षि’ (राजा और ऋषि के गुणों से युक्त) पद से सम्मानित करते हैं।

3. ब्रह्मर्षि बनने की आकांक्षा: विश्वामित्र संतुष्ट नहीं होते, क्योंकि उनका लक्ष्य ‘ब्रह्मर्षि’ पद प्राप्त करना है, जो महर्षि वशिष्ठ के समान ही ब्रह्मज्ञान और तपस्या का सर्वोच्च स्तर होता है।

4. दृढ़ संकल्प: ब्रह्मा जी से केवल राजर्षि पद प्राप्त कर विश्वामित्र में और भी वैराग्य उत्पन्न होता है। वे निश्चय करते हैं कि जब तक वे ब्रह्मर्षि नहीं बन जाते, तब तक वे अपनी तपस्या जारी रखेंगे।

5. तपस्या की दिशा: इसके बाद, वे और भी कठोर तप करने का निश्चय करते हैं, जिससे वे अपने समस्त विकारों, क्रोध, अहंकार और सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग कर सकें।


प्रसंग की शिक्षा:


यह प्रसंग यह सिखाता है कि सच्ची आध्यात्मिक उन्नति के लिए केवल बाह्य शक्ति या यश पर्याप्त नहीं होता, बल्कि आंतरिक शुद्धता, संयम, और घोर तपस्या आवश्यक होती है। विश्वामित्र का ब्रह्मर्षि बनने का संकल्प उनकी आत्म-उन्नति और आत्म-साक्षात्कार की प्रबल इच्छा को दर्शाता है।

DEVINE VERSES (दिव्य श्लोक)
"दिव्य श्लोक" एक आध्यात्मिक पॉडकास्ट है जो वाल्मीकि रामायण और अन्य पवित्र हिंदू ग्रंथों की कालातीत कहानियों और शिक्षाओं को साझा करने के लिए समर्पित है। इस श्रृंखला में, हम प्राचीन ग्रंथों की गहरी और अद्भुत कथाओं को प्रस्तुत करेंगे, उनकी ज्ञानवर्धक शिक्षाओं को समझेंगे और आज के जीवन में उनकी प्रासंगिकता को खोजेंगे। हर एपिसोड में श्रोताओं को भगवान राम, सीता, और अन्य प्रमुख पात्रों की अद्भुत कहानियों की यात्रा पर ले जाया जाएगा, जैसा कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित है। साथ ही, पॉडकास्ट में अन्य पवित्र ग्रंथों से प्रेरक चर्चाएँ और कथाएँ भी प्रस्तुत की जाएंगी, जो आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेरणा का खजाना है