
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 61वें सर्ग में मुनि विश्वामित्र की तपस्या का वर्णन किया गया है। इस सर्ग में बताया गया है कि जब राजा त्रिशंकु को स्वर्ग में भेजने का प्रयास विफल हो गया और देवताओं ने उसे स्वर्ग से गिरा दिया, तब मुनि विश्वामित्र ने अपनी तपस्या को और भी कठोर बना लिया।
त्रिशंकु की घटना के बाद, विश्वामित्र अत्यंत क्रोधित और दुखी हो गए। वे सोचने लगे कि उन्हें अपनी तपस्या को और अधिक प्रबल बनाना होगा ताकि वे देवताओं के समान ही शक्ति प्राप्त कर सकें। इस उद्देश्य से वे पश्चिम दिशा की ओर चले गए और पवित्र पुष्कर तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या करने लगे।
उन्होंने कई वर्षों तक कठोर व्रतों का पालन किया और घोर तप किया। इस तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और विश्वामित्र से वरदान मांगने को कहा। विश्वामित्र ने उनसे ब्रह्मर्षि पद की याचना की, परंतु ब्रह्मा जी ने कहा कि यद्यपि वे महान तपस्वी बन चुके हैं, फिर भी उन्हें अभी ब्रह्मर्षि नहीं कहा जा सकता। इसके लिए उन्हें ऋषियों और विशेष रूप से वशिष्ठ ऋषि की मान्यता प्राप्त करनी होगी।
पुष्कर तीर्थ में कठोर तप – विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके अपनी शक्ति को और बढ़ाया।
ब्रह्मा जी की कृपा – उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें महर्षि की उपाधि दी, लेकिन ब्रह्मर्षि नहीं माना।
वशिष्ठ ऋषि की मान्यता आवश्यक – ब्रह्मर्षि पद प्राप्त करने के लिए वशिष्ठ ऋषि की स्वीकृति अनिवार्य थी।
पुष्कर तीर्थ में तपस्यासर्ग की प्रमुख बातें