
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के 48वें सर्ग में ऋषि विश्वामित्र, श्रीराम और लक्ष्मण के साथ विशाला पुरी पहुँचते हैं। वहाँ का राजा सुमति उनका आदरपूर्वक स्वागत करता है। राजा सुमति को ज्ञात होता है कि श्रीराम और लक्ष्मण स्वयं दशरथ नंदन हैं और ऋषि विश्वामित्र के साथ हैं, तो वह अत्यंत प्रसन्न होता है। वह उन्हें आतिथ्य सत्कार प्रदान करता है और वे उस रात विशाला पुरी में ही ठहरते हैं।
अगले दिन मिथिला की ओर प्रस्थान
प्रातःकाल होने पर श्रीराम, लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र मिथिला की ओर प्रस्थान करते हैं। मार्ग में चलते समय श्रीराम आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं और उत्सुकतावश ऋषि से पूछते हैं, “हे मुनिवर! यह वनक्षेत्र किसका है? यहाँ इतनी दिव्यता क्यों प्रतीत हो रही है?”
अहल्या के शाप की कथा
तब ऋषि विश्वामित्र उन्हें महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहल्या की कथा सुनाते हैं:
महर्षि गौतम और अहल्या
महर्षि गौतम एक सिद्ध तपस्वी थे, जो अपनी पत्नी अहल्या के साथ इसी आश्रम में रहते थे। अहल्या, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्ट एक अनुपम सुंदरी थीं, जिनका विवाह महर्षि गौतम से हुआ था।
इंद्र का छल
देवताओं के राजा इंद्र, अहल्या की अप्रतिम सुंदरता पर मोहित हो गए और उन्होंने छल का सहारा लिया। एक दिन, जब महर्षि गौतम गंगा स्नान के लिए गए हुए थे, इंद्र ने महर्षि का रूप धारण कर लिया और अहल्या के कक्ष में प्रवेश किया। अहल्या इंद्र के वास्तविक स्वरूप को जान गईं, फिर भी वे उसके छल में फंस गईं।
महर्षि गौतम का क्रोध और शाप
महर्षि गौतम ने तपोबल से इस छल को देख लिया और तुरंत ही आश्रम लौट आए। उन्होंने इंद्र को अपनी पत्नी के साथ देखकर क्रोधित होकर इंद्र को शाप दिया:
• इंद्र के शरीर पर सहस्र (हज़ार) योनियों के चिह्न उत्पन्न हो गए, जिससे वह ‘सहस्रयोनि’ कहलाने लगे।
• अहल्या को भी उन्होंने शाप दिया कि वह तपस्विनी के रूप में पत्थर की भांति इस आश्रम में पड़े रहेंगी, जब तक श्रीराम उनके उद्धार के लिए नहीं आएंगे।
अहल्या का तप और उद्धार की प्रतीक्षा